23 जुलाई। पंजाब में धान और गेहूं की रोपाई तथा कटाई के लिए आने वाले ‘पुरबिया'(पूरब की ओर से आने वाले) प्रवासी मजदूर बाढ़ के चलते वापस लौटने को मजबूर हैं। लेकिन राज्य के सियासी दलों को इससे कोई मतलब ही नहीं। सिर्फ इसलिए है, क्योंकि वे पक्के वोट बैंक नहीं हैं? कोई अधिकारी, राजनेता इस पर गंभीरता से बात करने को तैयार नहीं। क्या उनकी सीमित सोच में यह नहीं आता, कि अगर पूरब से श्रमिक यहाँ न आएं, तो कृषि के साथ-साथ उद्योग का भी भट्ठा बैठ जाएगा।
मौजूदा वक्त में पंजाब के 19 जिले और हजारों गाँव बाढ़ की चपेट में हैं। रोजी-रोटी की तलाश में पंजाब आने वाले पुरबिया मजदूर एक बार फिर गहरी पशोपेश में हैं। पंजाब में बाढ़ फसल के एक बड़े हिस्से को निगल गई है। कई लोगों के जान गंवाने की खबर है। जानवरों के मारे जाने का आकलन होना भी बाकी है। सरकारी विसंगतियों की वजह से हालात का तथ्यात्मक पूर्वानुमान नहीं हो सका और प्रशासन तब जागा, जब जगह-जगह तटबंध टूटने लगे। गाँवों का संपर्क शेष दुनिया से कट गया और इश्तिहारों में दावे किए जा रहे हैं कि हालत गंभीर तो है लेकिन नियंत्रण में है!
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