भारत की अर्थव्यवस्था को कितने रोजगार सृजन की आवश्यकता है?

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— अरुण कुमार —

रकार से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े अर्थशास्त्री तर्क दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में पर्याप्त रोजगार पैदा होने से बेरोजगारी ज्यादा नहीं है। इसके अलावा, उनका तर्क है कि सालाना रोजगार की मांग की मात्रा बहुत बड़ी नहीं है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख श्री बिबेक देबरॉय (बीडी) ने ‘ए टॉप-डाउन कोड’ (इंडियन एक्सप्रेस, 11 मई, 2023) शीर्षक वाले एक लेख में इन पंक्तियों के साथ तर्क दिया है। उनका कहना है कि विश्लेषक जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट को नजरअंदाज कर रहे हैं। वह पहले 1.5% थी और अब (संभवतः) 0.8% हो गई है। वह पूछते हैं, ‘…भारत को हर साल कितनी नौकरियां पैदा करने की जरूरत है?’ आगे वह कहते हैं, ‘जब कोई 10 मिलियन या 12 मिलियन जैसे आंकड़ों की बात करता है, तो उसे अक्सर यह एहसास नहीं होता है कि ये दिनांकित आंकड़े हैं, … लगभग 2003 -04 के हैं। उनका सुझाव है, ‘ये आंकड़ा 5-8 मिलियन हो सकता है।’

श्रम बल

जिस ओहदे पर बीडी असीन हैं उसको देखते हुए उनका बयान सरकार की सोच को दर्शाता है और उसका उचित विश्लेषण आवश्यक है। सबसे पहले, वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर देश में श्रम बल में वर्तमान वृद्धि के लिए कैसे प्रासंगिक है? श्रम बल में 15-64 आयु वर्ग (आईएलओ परिभाषा) के लोग शामिल हैं जो काम की तलाश में हैं। वर्तमान जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव श्रम शक्ति पर 15 साल बाद पड़ेगा जब इस वर्ष जनमे लोग संभावित रूप से श्रम बल में शामिल होंगे।

इसलिए, भले ही बीडी ने 2003-04 का जिक्र मजाक के तौर पर किया है, लेकिन उस साल के आसपास पैदा हुए बच्चे बिल्कुल वही हैं जो हाई स्कूल की डिग्री प्राप्त करने के बाद 2018-19 से श्रम बल में प्रवेश कर रहे हैं। 2020-21 में इंटरमीडिएट डिग्री प्राप्त करके वो शामिल हो सकते थे और 2023-24 में अंडर ग्रेजुएट डिग्री आदि प्राप्त करने के बाद शामिल हो सकते थे।

इसके अलावा, काफी सारे युवा डिग्री प्राप्त करने के बाद भी, श्रम बल में शामिल नहीं हो रहे हैं क्योंकि वे विभिन्न परीक्षाओं – पुलिस, सेना, सिविल सेवाओं, बैंकों आदि की तैयारी करते हैं। अंततः, एक ना एक दिन, वे सभी श्रम बल में शामिल हो जाएंगे। गरीब और निम्न आय वर्ग के बच्चे लंबे समय तक बेरोजगार नहीं रह सकते। मध्यम वर्ग के बच्चों को भी काम करना शुरू करना पड़ता है क्योंकि उनको बढ़ते सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है। पूंजी और कौशल की आवश्यकता को देखते हुए, जो बहुत कम लोगों के पास है, यहां तक ​​कि मध्यम वर्ग में भी, बहुत कम युवा उद्यमी बन पाते हैं ।

कितनों को काम की जरूरत है?

दूसरा, आज श्रम बल में कितने लोग शामिल हो रहे हैं इसके लिए प्रासंगिक है जन्म दर, न कि जनसंख्या वृद्धि की दर। जनसंख्या वृद्धि दर होती है, आज कितने जन्म हुए उसमें से घटा दें कितनी मृत्यु हुईं। अधिकांश मौतें कम उम्र में नहीं बल्कि बाद की उम्र में होती हैं। अब, भारत में 70 वर्ष से ऊपर की दीर्घायु के साथ, अधिकांश जनता की मृत्यु 50 वर्ष की आयु के बाद होती है। बच्चों में मृत्यु दर भी अधिक होती है। इसलिए, हम किसी दिए गए वर्ष में जन्मों की संख्या से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु को घटा सकते हैं। इसके बाद हम ये मान कर चल रहे हैं कि 5 से 50 वर्ष की आयु में नगण्य संख्या में लोग मरते हैं। इसलिए, श्रम बल में प्रवेश करने वाले लोगों की संख्या के लिए, मृत्यु दर ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है।

किसी दिए गए वर्ष की जन्म दर को उस साल की जनसंख्या से गुणा करने से उस वर्ष में जन्मों की संख्या प्राप्त होती है। उसमें से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु को घटा दें। इससे उन युवाओं की संभावित संख्या का अनुमान लगता है जो 15 साल बाद (15 वर्ष की आयु में) श्रम बल में शामिल हो सकते हैं। तो, 2000 में, वृद्धि 28,061,890 निकलती है, 2002 में यह आंकड़ा 27,990,015 था, 2005 में यह 27,783,231 था, 2007 में यह 27,456,018 था और 2022 में वृद्धि 24,167,206 थी।

इन वर्षों को ऊपर क्यों चुना गया है? वे बताते हैं कि 2000 से 2022 की अवधि में संभावित युवा जो श्रम बल में जुड़ सकते हैं उनकी संख्या 24 से 28 मिलियन हर साल की दर से बढ़ रही है। इसके अलावा, ये वर्ष इसलिए भी प्रासंगिक हैं क्योंकि ये वे वर्ष हैं जिनमें 2022 में बच्चे हाई स्कूल, इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करके संभवत: काम की तलाश में बाहर निकले होंगे और वे संभावित रूप से श्रम बल में प्रवेश किये होंगे। शिक्षा के आंकड़े हमें बताते हैं कि इनमें से प्रत्येक डिग्री के लिए प्रासंगिक आयु समूह का कितना प्रतिशत नामांकन करता है। मतलब, जो लोग शिक्षा के लिए नामांकन नहीं करा रहे हैं वे संभावित रूप से श्रम बल में शामिल होंगे।

इस तरह से गणना करने पर (तालिका 2), 2022 में श्रम बल में शामिल होने वाले संभावित लोगों की संख्या 2007 में पैदा हुए लोगों में से 17,928,780 होगी; 2005 से 2,583,841; 2002 से 5,598,003 और 2000 से 1,403,095. कुल मिलाकर संख्या 27,513,718 होती है।

विभिन्न सामाजिक कारणों से कम महिलाएँ श्रम बल में शामिल होती हैं, इसलिए उपरोक्त संख्या को महिलाओं और पुरुषों के बीच बांटना होगा। 2022 में प्रति 1000 महिलाओं पर 1068 पुरुष थे। इसका मतलब है कि उपरोक्त कुल संख्या में 48.35% महिलाएं होंगी, यानी 13,304,50. मान लें कि उनमें से 25% सामाजिक कारणों से काम नहीं कर पाएंगी।

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि 24,187,591 युवा संभवतः 2022 में श्रम बल में प्रवेश कर सकते हैं। उनमें से कुछ विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करेंगे। लेकिन, पहले के वर्षों के वे लोग जो पहले ही परीक्षाओं की तैयारी में वर्षों बिता चुके हैं, श्रम बल में शामिल होंगे। दरअसल, यदि पर्याप्त काम उपलब्ध होता, तो उनमें से भी अधिकांश बार-बार कई परीक्षाओं में हिस्सा नहीं लेते। कुछ युवा काम और/या पढ़ाई के लिए विदेश जाते हैं लेकिन कुल की तुलना में उनकी संख्या थोड़ी ही है। यदि पर्याप्त काम उपलब्ध होता तो उनमें से भी कई विदेश नहीं जाते।

असंगठित क्षेत्र

संगठित क्षेत्र ज्यादातर यंत्रीकृत और स्वचालित है और इसलिए बहुत कम नौकरियाँ पैदा करता है। यही कारण है कि 94% श्रम शक्ति असंगठित क्षेत्र में है, जो बड़े पैमाने पर कम वेतन पर काम करती है। ई-श्रम पोर्टल पर 28 करोड़ नवंबर 2022 तक पंजीकृत हुए थे और उनमें से 94% ने अपनी आय प्रतिमाह 10,000 रुपये से कम लिखाई है। एक और जरूरी बात है, जब असंगठित क्षेत्र की कीमत पर संगठित क्षेत्र की वृद्धि होती है तब बेरोजगारी बढ़ती है।

बेरोजगारी 4 प्रकार की होती है : 1) बेरोजगार, जिनके पास कोई काम नहीं है। 2) अल्प नियोजित बेरोजगार, जिनको हफ्ते में पूरा काम नहीं मिलता है। 3) प्रच्छन्न बेरोजगार, और 4) वे लोग जिन्होंने काम की तलाश ही बंद कर दी है। सरलीकृत धारणा के आधार पर उचित कार्य की आवश्यकता वाले लोगों का आंकड़ा 286 मिलियन (28.6 करोड़) निकलता है; ये सभी असंगठित क्षेत्रों से हैं। केवल 332 मिलियन (33.2 करोड़) के पास कुछ उचित काम है और उनमें से भी अधिकांश असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं।

अर्थव्यवस्था में अधिक काम कैसे उत्पन्न किया जाए इसके लिए एक और लेख की आवश्यकता है। लेकिन, उपरोक्त यह स्पष्ट करता है कि यदि नीति निर्माता 5-8 मिलियन युवाओं के लिए काम पैदा करने की बात करते हैं तो इससे भारत की बेरोजगारी की समस्या पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
स्रोत: भारत जन्म दर 1950-2022। मैक्रोट्रेंड्स।

(देश बचाओ अभियान द्वारा गठित ‘रोजगार और बेरोजगारी पर जन आयोग’ की रिपोर्ट के आधार पर। रिपोर्ट 11 अक्टूबर, 2022 को जारी की गई थी। लेखक उपरोक्त जन आयोग के अध्यक्ष थे।)

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