गांधी-विनोबा-जेपी विरासत बचाओ अभियान ने क्या किया?

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14 अगस्त। गांधी-विनोबा-जेपी विरासत बचाओ अभियान को 12 अगस्त को एक खतरनाक सच का सामना करना पड़ा है। केंद्र की स‌रकार ने सैकड़ों पुलिसवालों के बल पर अपने बुलडोजर से सर्व सेवा संघ परिसर का ध्वंस कर दिया। ऐसी बर्बरता विदेशी शासन में भी नहीं की गई थी। गांधी जी की विचारधारा से भयभीत मौजूदा सत्ताधारी जमात की ओर से मुट्ठीभर चापलूस अफसरों का इस्तेमाल करके गांधी विचार के प्रकाशन और प्रसारण के राष्ट्रीय केंद्र को बुलडोजर से ध्वस्त करने का दुस्साहस आजाद भारत की सबसे निंदनीय घटना है। यह कायर झुंड जर्मनी के हिटलर और इटली के मुसोलिनी और इंग्लैंड के चर्चिल से भी नीचे गिर गया है।

इससे पहले सरकार ने 15 मई को इसी परिसर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित गांधी विद्या संस्थान को कब्जे में लेकर आरएसएस के एक वरिष्ठ व्यक्ति द्वारा संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंप दिया था। जबकि संस्थान का मसला न्यायालय में विचाराधीन है। इसके सात सप्ताह बाद गांधी विद्या संस्थान को दूसरी संस्था को गैरकानूनी तरीके से सौंपने के खिलाफ गांधी -जेपी समर्थकों द्वारा चलाए जा रहे सत्याग्रह की अनदेखी करते हुए 22 जुलाई को सर्व सेवा संघ के दशकों से संचालित प्रकाशन केंद्र पर कब्जा करते हुए करोड़ों रुपए की कीमत की 1500 से अधिक पुस्तकों की हजारों प्रतियों को कूड़ा ढोने की गाड़ियों में भरकर परिसर से निकाल बाहर किया गया। जबकि इस विश्वविख्यात केंद्र का आवंटन 1960 के दशक में राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद व संत विनोबा के आग्रह और रेलमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री व श्री जगजीवन राम के अनुमोदन से और सर्व सेवा संघ की ओर से आवश्यक शुल्क जमा करने के आधार पर हुआ था।

इस दबंगई का अहिंसक तरीके से विरोध प्रकट करने वाले गांधीजनों को हिरासत में ले लिया गया। मीडिया को नजदीक आने से रोका गया।

गांधी-जेपी विरासत पर इस बर्बर हमले के दो दिन पहले ही 9 और 10 अगस्त को सर्व सेवा संघ और लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान ने एक राष्ट्रीय प्रतिरोध सम्मेलन और विशाल जनसभा का आयोजन किया था। यह समागम देश की लोकशक्ति का संगम जैसा था। राष्ट्रीय आंदोलनों के प्रभावशाली प्रतिनिधियों के समर्थन वक्तव्यों से चिरस्मरणीय बन गई जनसभा में हजारों स्त्री-पुरुषों ने अपने सांसद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति अविश्वास प्रस्ताव पारित किया था। क्या गांधी-विनोबा-जयप्रकाश की विचारधारा के राष्ट्रीय स्रोत के ध्वस्तीकरण का इस आयोजन से कोई संबंध है? क्योंकि ऐसी हरकत राजशाही की बौखलाहट का संकेत देती है। इस तुगलकी ध्वंस के मुकाबले हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण में जुटे लोग हैं। इसलिए राजशक्ति और लोकशक्ति में आमने-सामने का मुकाबला अनिवार्य हो गया है।

गांधी-जेपी विरासत बताओ अभियान ने गांधी विचार को ध्वस्त करने की इस नादिरशाही कोशिश के खिलाफ शुरू के 48 घंटों में क्या किया? सबसे पहले अगली कतार के नायक-नायिका, बुलडोजर चलवाकर सर्व सेवा संघ परिसर ध्वस्त करने के खिलाफ, सामने आए और निडर होकर गिरफ्तारी दी। समर्थन में जुटे लोग आगे के प्रतिरोध की योजना बनाने में जुटे। सोशल मीडिया का असरदार उपयोग शुरू किया। 12 घंटों के अंदर 45 केंद्रों के 95 प्रतिनिधि आभा‌सी संवाद के लिए जुट गए। एक सप्ताह तक पूरे देश में प्रतिरोध आयोजन का आवाहन किया गया। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह को इस प्रतिरोध अवधि से अलग रखा गया है।

12 अगस्त को रात में सुबह से बंदी बनाकर पुलिस हिरासत में रखे गए नेताओं की रिहाई कर दी गई। उधर अनेकों साथी अपनी जगह से वाराणसी के लिए चल पड़े। । इसके फलस्वरूप 13 अगस्त को वाराणसी में तीन उल्लेखनीय विरोध प्रदर्शन हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गोद लिये गांव नागेपुर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से जुड़ी लोकसमिति ने बाबा साहेब डा अम्बेडकर की प्रतिमा पर दिनभर धरना दिया। लोकबंधु राजनारायण के जन्मक्षेत्र राजातालाब में मनरेगा महिला संगठन की एक सभा को विरासत बचाओ अभियान के संयोजक मंडल ने संबोधित किया। शाम को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर भारी पुलिस तैनाती के बीच सर्व सेवा संघ परिसर को सरकार द्वारा मटियामेट करने के खिलाफ सभा आयोजित की गई। ऐसी ही सभाओं के आयोजन की पहल अनेकों जिले में की गई।

दूसरे दिन सर्व सेवा संघ की ओर से राष्ट्रीय विचार-विमर्श का आयोजन, कदमकुआं पटना से राजघाट वाराणसी तक की प्रतिरोध यात्रा और गांधी समाधि दिल्ली से सर्व सेवा संघ परिसर वाराणसी तक की यात्रा के निर्णयों को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। 14 अगस्त को देश में वाराणसी समेत कई स्थानों पर गांधीजी की प्रतिमा पर ज्योति अर्पण का कार्यक्रम आयोजित किया गया। गांधी विचार पर किए गए इन आघातों के मुकाबले में गांधीजी के समर्थक व्यक्तियों और संगठनों को स्थानीय स्तर पर एकजुट करने के लिए वाराणसी में एक समिति बनाई गई। उधर देशभर के लोगों को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आगामी जयंती की तिथि 11 अक्टूबर को वाराणसी में एक महापंचायत के लिए जुटाने के सुझाव को भी सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।

– आनंद कुमार

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