16 अगस्त। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका जाकर कहते हैं लोकतंत्र हमारी रगों में है। वह और उनकी पार्टी समेत पूरा संघ परिवार भारत को “मदर ऑफ डेमोक्रेसी” मनवाने का प्रचार अभियान भी चलाते रहते हैं। लेकिन यह प्रचार कितना खोखला है यह इसी से समझा जा सकता है कि अपने संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करना दिनोदिन मुश्किल होता जा रहा है। इसका एक ताजा उदाहरण यह है कि बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस) ने तीस्ता सीतलवाड़ का तय व्याख्यान ऐन वक्त पर नहीं होने दिया।
शिक्षकों और विद्यार्थियों ने ‘सांप्रदायिक सद्भाव और न्याय’ (‘कम्युनल हार्मनी एंड जस्टिस’) विषय पर तीस्ता सीतलवाड़ के साथ एक संवाद का आयोजन किया था। यह संवाद 16 अगस्त बुधवार को होना था। लेकिन संस्थान के अधिकारियों ने ऐन वक्त पर बताया कि यह कार्यक्रम नहीं हो सकता, इसकी इजाजत नहीं है। कोई बीस-पचीस नागरिकों को संस्थान के गेट से ही लौटा दिया गया।
संस्थान के सुरक्षाकर्मियों के पास तीस्ता सीतलवाड़ का फोटो था और वे इस पर अड़े हुए थे कि इन्हें परिसर में घुसने नहीं देंगे। लेकिन कुछ प्रोफेसर और विद्यार्थी भी अडिग रहे और आखिरकार तीस्ता सीतलवाड़ को परिसर के भीतर लिवा जाने में कामयाब हो गये। अलबत्ता जो संवाद आयोजित था वह तय स्थान पर नहीं हो पाया। संवाद एक कैंटीन के बाहर खुले स्थान पर हुआ जो शाम पौने छह बजे से आठ बजे तक चला। इसमें लगभग चालीस विद्यार्थियों और दस प्रोफेसरों ने भागीदारी की।