कर्पूरी जी को ऐसे तो नहीं मरना था

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— विनोद कोचर —

(स्व कर्पूरी ठाकुर के बारे में यह छोटा-सा लेख उनके निधन के बाद श्रद्धांजलि के तौर पर लिखा गया था, और यह मार्च 1988 में ‘प्रतिपक्ष’ में छपा था, जिसके प्रधान संपादक जार्ज फर्नांडीज थे।)

बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके, हिंदुस्तानी समाजवादी आंदोलन के एक तेजस्वी और प्रमुख आधारस्तंभ कर्पूरी जी(कर्पूरी ठाकुर) के आकस्मिक देहावसान से, गांधी-लोहिया और जयप्रकाश की विचार परंपरा में दीक्षित हिंदुस्तानी बेहद दुखी हैं।

आरएसएसवादियों ने समाजवादी आंदोलन की खिल्ली ही उड़ाई है और हमेशा इस आंदोलन को विदेशी जड़ों से उगा हुआ पौधा बताकर, पिछले 63 सालों से जनता को गुमराह कर रखा है।

इन्हें ये मालूम ही नहीं कि चित्रकूट में रामायण मेले की कल्पना में डॉ लोहिया के हिंदुस्तानी विचारों की ही खुशबू समाई हुई थी। उनके ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन जैसे खालिस हिंदुस्तानी आंदोलन के जवाब का कोई आंदोलन, है क्या आरएसएस के इतिहास में?

समाजवादियों और आरएसएसवादियों में एक बुनियादी अंतर यह है कि समाजवादी दिमाग के पुजारी हैं और आरएसएसवादी दिमाग नहीं, सिर्फ दिल के पुजारी हैं।

5000 से भी जादा साल पुरानी, सारी दुनिया में बेमिसाल, हमारी हिंदुस्तानी कहानी के भावना प्रधान पन्नों का संकलन करके, उनके शोधन से निचोड़ी हुई मदिरा पिलाकर, हिंदुस्तानी दिमाग को बरगलाने का काम कर रहे हैं ये आरएसएस वाले।

लेकिन कर्पूरी जी जैसे फूल जब तक हिंदुस्तानी समाजवादी आंदोलन के चमन में खिलते रहेंगे, तब तक आरएसएसवादियों द्वारा फैलाए जा रहे ऐसे कुप्रचार से आंदोलन को कोई खतरा नहीं है।

लोग कहते हैं कि समाजवादी आंदोलन का सूरज उगा और बिना चढ़े ही डूब गया, समाजवादी लक्ष्यभ्रष्ट हो गए और सत्ता की मेनका के दीवाने होकर ही रह गए हैं।

लेकिन कर्पूरी जी जैसे समाजवादी, ऐसे लोगों से, दिनकर जी की जुबान में ये कह सकते हैं कि –
दुनिया कहकर चली गई क्यों ध्वजा गिरी तेरे कर से?
पूछा नहीं अनल यह कैसा फूट रहा तेरे स्वर से?
गिरि श्रृंगों पर अभय आज भी, शंख फूंकता चलता हूँ।
बुझा कहाँ मैं? मध्यसूर्य के आलिंगन में जलता हूँ!

अफसोस सिर्फ इतना ही है कि अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक, एक तांत्रिक के चक्कर में फॅंसकर, कर्पूरी जी अपनी कीमती जान गॅंवा बैठे। वह तांत्रिक फरार हो गया है। लगता है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत उनकी हत्या की गई है।

या फिर हो सकता है कि मौत को, शायद इसी बहाने से कर्पूरी जी से मिलना रहा हो! कर्पूरी जी की योग में निष्ठा थी लेकिन वे किसी गलत आदमी के चक्कर में फॅंसकर मर गए, ऐसा मानने को जी नहीं चाहता।
कर्पूरी जी जिंदाबाद!

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