# झारखंड में ज्यादातर किसान साल में एक ही फसल लेते हैं और इस बार पूरे प्रदेश में केवल 60 प्रतिशत धान की रोपाई हो पाई है
— आनंद दत्त —
भूख तो छूछ का, नींद तो खरहट का।” झारखंड के लोहरदगा जिले के किसान अब्दुल रशीद को ये बाद उनकी मां ने कही थी। इस कहावत का अर्थ है भूख में आदमी कुछ भी खा सकता है, नींद अगर लगी तो जमीन पर भी सोने को मजबूर होता है। रशीद कहते हैं, इसी बात को मान अब हमलोग अगला एक साल काटने वाले हैं।
झारखंड में एक बार फिर सुखाड़ के हालात पैदा हो गए हैं। क्योंकि बीते 6 सितंबर तक पूरे राज्य में मात्र 15.56 प्रतिशत बारिश हुई है। जबकि धान की बुआई पूरे राज्य में मात्र 59.42 प्रतिशत ही हो सकी है।
राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जो पूरे साल में केवल एक ही फसल उगाते हैं। खासकर खेतिहर मजदूर, जिनके पास एक से चार एकड़ तक की जमीन है। जिससे वह साल भर का चावल अपने लिए रख, बचे हुए को बेचकर दाल, तेल, नमक की खरीददारी करते हैं। बाकी समय मजदूरी करने जिला और राज्य से बाहर जाते हैं।
अब्दुल रशीद छोटे किसान हैं। घर में रखे बीज से बिचड़ा उगाया। कुछ दिन की बारिश और कुओं से पानी लाकर बिचड़ा तो लगा दिया, लेकिन अब उस बिचड़े की जगह बड़े घास उग चुके हैं।
वह कहते हैं, “आज की तारीख में गांव में कुछ भी नहीं है। मेहनत मजदूरी करके गुजारा करना है। हम 11 लोगों के संयुक्त परिवार में रहते हैं। जहां एक किलो चावल बनता था, अभी से 750 ग्राम चावल बना रहे हैं। पिछले साल का जो स्टॉक था, वह दिसंबर तक खत्म हो जाएगा। आगे का इंतजाम मजदूरी मिली तो होगा, नहीं तो नहीं।”
अब्दुल कहते हैं, “बोरिंग और नलकूप में अभी तक पानी नहीं है। धान की जगह किसी और फसल के बारे में सोचेंगे भी तो कैसे। लोहरदगा में मजदूरी नहीं मिलती है। मेरा छोटा भाई हर दिन ट्रेन से रांची जाता है मजदूरी करने। आप ये मानिए कि सरकारी राशन कार्ड से ही जीवन थोड़ा बहुत चल पाएगा।”
रांची के कटमकुली गांव के राजेश महतो दो एकड़ में खेती करते हैं। इसी खेती की कमाई से वह अपनी बड़ी बेटी को एमबीए और छोटी बेटी को इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करा रहे हैं। वो कहते हैं, चेकडैम से पानी लेकर किसी तरह बिचड़ा लगाए, लेकिन वो भी अब पीला पड़ गया है। जो पूंजी थै, सब लगा चुके हैं। अब मेरे पास मजदूरी करने के अलावा कोई चारा नहीं है।
रांची के रातू इलाके के किसान मुबारक हुसैन भी इसी दर्द से गुजर रहे हैं। डाउन टू अर्थ से वह कहते हैं, ढाई एकड़ में हम धान उगाते हैं। घर में साल भर के लायक, बाकी धान बेच दिए कोआपरेटिव में। कौन जानता था कि ऐसी नौबत आएगी। पिछली बार फसल बीमा का 3,500 रुपया आया था। लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर भी नहीं है। पीएम सम्मान निधि से प्रति चार महीने पर 2,000 रुपया मिलता था। बीते एक साल से वो भी नहीं मिल रहा है। अधिकारी कहते हैं कि लैंड सीडिंग हो गया है। अब ये क्या होता है, हम जानते ही नहीं हैं।
राज्य में बारिश और बुआई की स्थिति
राज्य सरकार की ओर से जारी 6 सितंबर तक के आंकड़े को देखें तो अब तक 235.5 मिमी अनुमानित बारिश के मुकाबले मात्र 36.7 मिमी बारिश हुई है, यानी 15.56 प्रतिशत। जिला के हिसाब से देखें तो पाकुड़ में 2.57 प्रतिशत, गढ़वा में 5.73 प्रतिशत, जामताड़ा में 9.52 प्रतिशत, दुमका में 9.57 प्रतिशत, सिमडेगा में 11.04 प्रतिशत बारिश हो पाई है।
वहीं धान की बुआई का आंकड़ा देखें तो पूरे राज्य में 18 लाख हेक्टेयर की जगह 1069.627 लाख हेक्टेयर में बुआई हो सकी है। यानी कुल 59.42 प्रतिशत ही कवर हो पाया है।
वहीं मकई 72.65 प्रतिशत, दलहन 52.54 प्रतिशत, तेलहन 46.21 प्रतिशत और मोटा अनाज 66.16 प्रतिशत खेती होने जा रही है।
बता दें कि राज्य बनने के बाद यानी साल 2000 से अब तक 10 बार सूखा पड़ चुका है। हालांकि इस बार अब तक सरकार ने सुखाड़ की घोषणा नहीं की है। पिछले साल मुख्यमंत्री सुखाड़ राहत योजना की शुरुआत हुई थी। लगभग 33 लाख किसानों ने आवेदन दिया था, लेकिन मात्र 10 लाख को इस योजना के तहत प्रति किसान 3500 रुपए दिए गए। कृषिमंत्री बादल पत्रलेख का कहना है कि सरकार 15 सितंबर तक देखेगी, उसके बाद सुखाड़ पर कोई फैसला लेगी।
शुरू हो चुका है पलायन
गढ़वा में 5.73 प्रतिशत बारिश हो पाई है। हालात ये हैं कि जिले से पलायन शुरू हो चुका है। हिन्दुस्तान अखबार के गढ़वा ब्यूरो चीफ ओमप्रकाश पाठक कहते हैं, पिछले साल हमने एक सर्वे करवाया था, जिसमें पाया कि जिले के 916 गांवों में से 90 हजार मजदूर पलायन कर गए थे। इस साल भी हमने यह सर्वे शुरू किया है। इसी क्रम में हमने सिंहपुर नामक गांव की जानकारी अभी हासिल की है। लगभग 900 की आबादी वाले गांव में एक भी युवक मौजूद नहीं है। ये सभी चेन्नई, सूरत, आसाम आदि जगहों पर मजदूरी करने चले गए हैं।
(डाउन टु अर्थ से साभार)
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