किस्से हुसेन के

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मक़बूल फ़िदा हुसेन (17 सितंबर 1915 - 9 जून 2011)
मक़बूल फ़िदा हुसेन (17 सितंबर 1915 - 9 जून 2011)

— रमाशंकर सिंह —

क संगठित गिरोह के झूठे प्रचार, आधुनिक कला के व्याकरण की समझ से विरत मूढ़ समाज, भारतीय पौराणिक संदर्भों, तात्त्विकता से अनभिज्ञ लोग और नाम से मुसलमान होने के कारण नफ़रत का आसान लक्ष्य बने मक़बूल फ़िदा हुसेन जैसे विश्व प्रसिद्ध कलाकार को हमने अपने व उसके ही देश से निकाल कर जघन्य अपराध किया। भारत में पिछले साठ बरसों में आधुनिक एवं समकालीन चित्रकारी को दुनिया की नज़र में लाकर बाज़ार में बिकने योग्य बनाने में जिस कलाकार का एकमात्र योगदान है उसके लिए ऐसा सुलूक !

हुसेन अकेले ऐसे समकालीन चित्रकार हुए जिन्होंने डा लोहिया की प्रेरणा और उनके धनाढ्य अनुयायी बदरी विशाल पित्ती की मदद से हैदराबाद में रह कर सैकड़ों चित्र रामायण और महाभारत पर बनाये। रामायण और महाभारत के अध्ययन के बग़ैर यह कैसे संभव हो सकता था और निजी चर्चा में लोहिया से रामायण, महाभारत पर नई दृष्टि के साथ। बैलगाड़ियों पर लाद-लाद कर गाँवों में रामलीला के मंचों को अपने चित्रों से सजाने के लिए ले जाते थे। जब दुनिया की नज़र हुसेन पर पड़ी तो हाथ में कूची लिये नंगे पॉंव भटकने वाला फ़क़ीर रातोरात एक चित्र को करोड़ों रु में बेचने लायक़ हो गया। वैश्विक नीलामी घर हुसेन के एक एक चित्र को लेने के लिए लालायित हो गये।

कनॉट प्लेस की पहली मंज़िल पर एक असाध्य सुंदर युवती आर्ट गैलरी चलाती थी, नीचे भूतल पर दक्षिण भारतीय रेस्तराँ खुला और नंगे पाँव हुसेन इडली खाने पहुँच गये, देखा कि दीवारें सफ़ेद पुती हैं और नंगी हैं। पास की दुकान से काला रंग लेने चले गये। तब तक भीड़ और रेस्तराँ मालिक पहचान चुका था। हुसेन ने पूछा कि दीवारें रंग दूँ? मालिक ने हॉं कही और बस इडली खाने के बाद एक घंटे से कम समय में पूरी दीवारें हुसेन से भरपूर हो गयीं और वो रेस्तराँ कभी ख़ाली नहीं रहा। हुसेन की फ़ीस एक प्लेट इडली रही। ऐसे हज़ारों क़िस्से हुसेन की दिलदारी के लोगों की जुबान पर हैं। इस रेस्तराँ मे लोग हुसैन की कलाकारी को देखने भी आते और इडली दोसा भी खाते।

अमीरजादों से पूरा वसूलना भी किया हुसेन ने। सैकड़ों करोड रु में कतर के एक महलनुमा भवन की छत पर चित्र बना दिये लेकिन हुसेन सब पैसा लुटा देते थे। बचाते कभी नहीं थे। जब करोड़ों आया तो मेहमानों को लाने के लिए भी बुगाटी कार जाती थी, एक वो खुद चलाते थे लेकिन यह सब निर्वासन में किया। हुसेन को आख़िर में भारत की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई।

रामायण महाभारत पर पौराणिक और भारतीय समाज पर चित्र बनाने वाले अप्रतिम अद्भुत फ़क़ीर पर दुर्भाग्यशाली (समय साबित करेगा कि दुर्भाग्यशाली वास्तव में कौन रहा?) चित्रकार हुसेन की कल जन्मतिथि थी। कोई नहीं मनाता ! वे कायर भी नहीं जिनके पूर्वजों पर हुसेन ने चित्र बनाकर कैनवास पर अमर कर दिया था। वे भी नहीं जो हुसेन के कारण आज अरबपति बने बैठे हैं।

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