केरल उच्च न्यायालय ने मंदिर में भगवा झंडे लगाने की याचिका खारिज की

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18 सितंबर। केरल हाईकोर्ट ने एक मंदिर पर भगवा झंडे लगाने की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मंदिरों का इस्तेमाल राजनीतिक वर्चस्व के लिए नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के कार्य और इरादे स्पष्ट रूप से मंदिर में बनाए रखे जाने वाले शांत और पवित्र वातावरण के विपरीत हैं।

केरल हाईकोर्ट ने एक मंदिर पर भगवा झंडे लगाने की अनुमति मांगने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मंदिरों का इस्तेमाल राजनीतिक वर्चस्व के लिए नहीं किया जा सकता है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, “मंदिर आध्यात्मिक सांत्वना और शांति के प्रतीक होते हैं, उनकी पवित्रता और श्रद्धा सर्वोपरि है। ऐसे पवित्र आध्यात्मिक आधारों को राजनीतिक चालबाजियों या एक-आधिकारिकता के प्रयासों से कम नहीं किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के कार्य और इरादे स्पष्ट रूप से मंदिर में बनाए रखे जाने वाले शांत और पवित्र वातावरण के विपरीत हैं।”

मुथुपिलक्कडु श्री पार्थसारथी मंदिर के भक्त होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता मंदिर पर झंडे लगाना चाहते थे। उन्होंने आरोप लगाया कि विशेष अवसरों और त्योहारों के दौरान मंदिर परिसर में भगवा झंडे लगाने के उनके प्रयासों को प्रतिवादियों ने कथित तौर पर अपने राजनीतिक संबंधों का उपयोग करके बाधित किया।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, उन्होंने 2022 में ‘पार्थसारथी भक्तजनसमिति’ नाम से एक संगठन बनाया, जिसका उद्देश्य मंदिर और उसके भक्तों का कल्याण करना है।

सुनवाई के दौरान केरल सरकार के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को एक निश्चित राजनीतिक दल से जुड़े झंडों और उत्सवों से मंदिर को सजाने की अनुमति देना ​‘मंदिर को राजनीतिक वर्चस्व के लिए युद्ध के मैदान के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति देने​’ के समान होगा।

सरकार ने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं के कार्यों के कारण पहले भी मंदिर परिसर में कई झड़पें हुई थीं। याचिकाकर्ताओं में से एक कई आपराधिक मामलों में भी शामिल हैं।

अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया कि मंदिर की प्रशासनिक समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर कनिक्कावांची के 100 मीटर के दायरे में किसी भी राजनीतिक दल या संगठन के झंडे, बैनर आदि लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

सरकार के वकील ने अदालत का ध्यान इस ओर भी आकर्षित किया कि 2020 में उसने पुलिस को मंदिर परिसर से ऐसे किसी भी प्रतिष्ठान को हटाने का निर्देश दिया था।

विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने अपने फैसले में कहा, “याचिकाकर्ताओं ने मंदिर में अनुष्ठान करने के लिए कोई वैध अधिकार प्रदर्शित नहीं किया है, जैसा कि उन्होंने प्रार्थना की है। इसके अलावा इस न्यायालय द्वारा जारी आदेशों और प्रशासनिक समिति द्वारा लिये गए निर्णय के आलोक में उन्हें मंदिर में या उसके आसपास लगाने या उत्सव का आयोजन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।​”
(sabrangindia से साभार)

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