नारी शक्ति का यह कैसा वंदन !

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— विनोद कोचर —

21 सितंबर।‌ महिला आरक्षण विधेयक पेश करने के दिन भी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया गया जबकि फ़िल्म अभिनेत्रियों तक को बुलाया गया।

इसके पहले भी, नए संसद भवन के उदघाटन समारोह के दौरान, राष्ट्रपति को नहीं बुलाया गया।

यह उदघाटन समारोह बाकायदा सनातनधर्मियों द्वारा प्रचलित विधि विधानों से, तमिलनाडु से बुलाए गए अधीनम संतों द्वारा सम्पन्न किया गया था।

ये तो सर्वविदित ही है कि महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं और विधवा भी हैं।

भेदभावयुक्त जातिप्रथा पर आधारित सनातन धर्म में जिन पहचानों को अपशकुन माना जाता है उनमें से, पुरुष की बजाय महिला होना, उसका विधवा होना और ऊपर से उसका आदिवासी भी होना अपशकुन ही माना जाता है।

सनातन धर्म विरोधी द्रविड़ नेता उदयनिधि स्टालिन द्वारा भाजपा सरकार पर ये आरोप लगाया गया है कि उसने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इसीलिए न तो नए संसद भवन के उदघाटन समारोह में बुलाया और न ही इस बार भी, महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश करते समय बुलाया क्योंकि वे एक विधवा हैं और आदिवासी भी हैं।

उनका आरोप है कि द्रौपदी मुर्मू जी का इस तरह बार-बार किया गया अपमान, सनातन धर्म की, भेदभावयुक्त, मान्य परंपरा पर आधारित है और इसीलिए वे सनातन धर्म को समाप्त करना चाहते हैं।

धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की बजाय, भाजपा/संघ परिवार, सनातन धर्म पर आधारित सामाजिक और राजनीतिक नीतियों को प्रश्रय दे रहा है और इसीलिए उसने नई संसद में संविधान की जिस उद्देशिका की प्रतियां वितरित की हैं, वे संविधान की मूल प्रतियां हैं जबकि1950 की उद्देशिका की अद्यतन उद्देशिका 1976 में संशोधित उद्देशिका है जिसमें ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ शब्द समाहित किये जा चुके हैं।

आने वाले समय मे अवसर मिलते ही ये दोनों उद्देश्य संशोधन के जरिये समाप्त करने की अपनी नीयत का इजहार तो इस तरह मोदीमुखी संघ/भाजपा परिवार कर ही चुका है।

सनातन धर्म की कालातीत रूढ़ मान्यताओं का विरोध करने वाले उदयनिधि स्टालिन, न तो पहले व्यक्ति हैं और न ही अंतिम।

पेरियार रामस्वामी के द्रविड़ अनुयायियों के अलावा, उत्तर भारत के भी, गुरु नानक देव, कबीर, ज्योतिबा फुले और बाबासाहेब आंबेडकर जैसे लोग, पहले भी सनातन धर्म का विरोध कर चुके हैं।

बाबासाहेब आंबेडकर तो हिन्दूधर्म के तमाम धार्मिक ग्रंथों को जला डालने तक की बात कह चुके हैं और अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म का परित्याग करके बौद्ध धर्म अंगीकार कर चुके हैं।

उदयनिधि स्टालिन के आरोप तर्कसम्मत आरोप हैं और केंद्र की सनातनधर्मी सत्ता को उनके आरोपों का तर्कसम्मत जवाब देना चाहिए न कि अपने समर्थकों के स्टालिन विरोधी अनर्गल ट्रोलर्स को उनका संरक्षण मिलना चाहिए।

बकौल दुष्यंत –

गलत कहूँ तो मेरी आक़बत बिगड़ती है!
जो सच कहूं तो ख़ुदी बेनकाब हो जाय!

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