— दिलीप तायड़े —
गांधी और विनोबा आज भी प्रासंगिक है इन दोनों महान विभूतियों का चिंतन समग्र विश्व का चिंतन था। गांधी अंहिसा और मानवता के पुजारी थे तो विनोबा करूणा की मूर्ति। 11 सिंतम्बर 1895 को महाराष्ट्र के ग्राम गोगोदा मे जन्मे विश्वविख्यात अहिंसक भूदान आन्दोलन के प्रणेता, महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी , अर्न्तराष्ट्रीय मेगसैसे पुरस्कार से सम्मानित भारत रत्न , महान स्वतत्रंता सेनानी संत व आचार्य बाबा विनोबा मौलिक विचारक व महान दर्शानिक थे उन्होने गांधीजी से प्रेरणा पाकर जो कार्य किये वह गांधीजी के विचारो का ही क्रियात्मक रूप था। 4 फरवरी 1916 मे काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के शिलान्यास के अवसर पर महात्मा गांधी के द्वारा दिये गये एैतिहासिक भाषण व विचारो से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होने गांधीजी से मिलने का संकल्प किया और जब वे उनसे मिले तो उनके प्रथम दर्शन और मुलाकात मे ही उनकी गांधीजी के कर्म और विचार मे ऐसी आस्था बनी की उन्होने अपना संपूर्ण जीवन गांधीजी और उनके आश्रम को समर्पित कर दिया।
1940 मे देश को स्वतंत्रता के लिए गांधीजी के द्वारा किये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए प्रथम सत्याग्रही कौन होगे जब इस प्रश्न को लेकर लोगो मे उत्सुकता थी तब कई लोगो को मत था कि प्रथम सत्याग्रही गांधीजी के निकट का उनका कोई सहयोगी होगा या कोई प्रसिध्द नेता। लेकिन जब गांधीजी ने यह घोषणा कि स्वतंत्रता आन्दोलन के व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही विनोबा होगे तो उनकी इस घोषणा से सारा देश दंग रह गया तब देश के कई नेता उन्हे जानते तक नही थे। ये विनोबा है कौन, तब गांधीजी ने उनके बारे मे लिखा था ‘’मेरे बाद अंहिसा के सर्वोत्तम प्रतिपादक और उसे समझने वाले कोई है तो वे विनोबा ही है विनोबा मुर्तिमान अहिंसा है उनमे मेरी अपेक्षा काम करने की अधिक दृढ़ता है।‘’
1940 मे प्रकाशित हरिजन मे उन्होने लिखा था विनोबा की स्मरण शक्ति अद्रभूत है वे प्रकृति से विद्यार्थी है तथा ब्रम्हविद्या के उपासक है और आश्रम का हर छोटा – बड़ा काम सुत कताई से लेकर मैला पाखाना सफाई तक का काम उन्होने किया वे आश्रम के वे दुर्लभ रत्न है संस्कृत का अध्ययन करने जब वे आश्रम से एक वर्ष कि छुट्टी लेकर गये तो एक वर्ष पुरा होने पर वे बगैर सूचना दिये उसी दिन उसी समय आश्रम मे वापस आ गये थे , मैं तो भूल ही गया था कि उनकी छुट्टी एक वर्ष बाद आज ही के दिन पूरी हो रही है।
गांधीजी के सत्य व अहिंसा के साधन और विचारो पर उनकी अपूर्व आस्था थी गांधीजी के निधन के बाद गांधी विचारो का अनुगमन करते हुए संपूर्ण देश मे वे 13 वर्ष तक पदयात्रा करते हुए पैदल घूमे और करीब 8 लाख 10 हजार किलोमीटर की उन्होने पदयात्रा की। गांधीजी के ग्राम स्वराज, स्वालंबन, स्वदेशी तथा विश्व शांति के लिए उन्होने अनेक रचनात्मक काम किये। पदयात्रा के दौरान 1951 मे तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव मे उन्हे वहा के कुछ हरिजन भूमिहिनो ने जीवनव्यापन के लिए सरकार से कुछ जमीन दिलाने का आग्रह किया तो उन्होने गांव के कुछ जमीनदारो से गरीबो को भूमि दान मे देने की अपील की।
उनकी अपील का और उनकी वाणी और विचार का लोगो पर ऐसा प्रभाव हुआ कि उन्हे गरीबो मे वितरण के लिए कुछ जमीन वहां के कछ जमीनदारो से भूदान मे प्रदान की। इसे ईश्वरिय प्रेरणा का संकेत मानकर उन्होने ने अपनी पदयात्रा के दौरान भूदान और ग्रामदान का आन्दोलन चलाया और भूदान के जरिये उन्होने जमीनदारो से करीब 42 लाख एकड़ जमीन भूदान मे प्राप्त कर गरीबो को वितरित की। वे गांधीजी के अनुयायी होने के साथ निस्पृही थे। उन्होने गांधीजी द्वारा लिखित मंगल प्रभात के मराठी अनुवाद की प्रस्तावना मे लिखा है कि ‘’ईश्वर की प्रेरणा और गांधीजी के आर्शीवाद से मै केवल संदेशवाहक हूं और केवल संतो की दि हुई भाषा बोलता हूं इसमे विन्या का कुछ भी नही है विन्या तो गणित के शून्य के बराबर है।‘’
उन्होने अपनी पदयात्रा के दौरान मानव जगत को कत्ल के जगह करूणा का रास्ता दिखाया तथा जीवन के उध्येश से भटके तथा हिंसा की राह पर चल पड़े। चंबल के डाकूओ को आत्मसम्पर्ण व मानव प्रेम से भरा मार्ग दिखाया। दुनिया को सकुचिंत भावना से अनावृत होकर विश्व बंधुत्व और विश्व शांति के लिए जय जगत का नारा दिया, हरिजनो को मंदिर प्रवेश कराया वे जहां भी जाते रूहानियत की बात करते थे उन्होने लोगो मे करूणा और रूहानियत की भावना जगाई। गांधी शताब्दी पर लिखी उनकी मौलिक कृति तीसरी शक्ति मे उन्होने लिखा है कि सरकार जो काम करती है उससे दुनिया बनती है लेकिन नया इंसान बनाने का काम तो वे लोग करते है जो रूहानी ताकत को पहचानते है हर इंसान मे ताकत पड़ी है उसे जोड़ना है तो जोड़ने वाली तरकीब चाहिए इंसान को इंसान जोडने की तरकीब मजहब या सियासत नही है।
वह तरकीब रूहानियत नही हो सकती है। मजहब 50 हो सकते है लेकिन रूहानियत तो एक ही है। 1959 मे जब पाकिस्तान के राजदूत ए़.के. ब्रोही उनसे भेट करने पधारे तो उन्होने कहा था ‘’सारी दुनिया के मित्रों आओ और देखो पहली बार मेरा भाई मुझसे मिलने आया है।‘’ तब मिस्टर ब्रोही ने अपने मित्रों को बताया था कि विनोबा कि मुलाकात के दौरान जिस चीज ने उन्हे गहरे तक छुआ वह शब्द नही खामोशी थी। सारी दुनिया को प्रेम और शांति का संदेश देते हूए 1965 मे पाकिस्तान युध्द के दौरान जब अखबार लिखते थे कि 1 हजार भारतीय और 3 हजार मुस्लमान मारे गये। तब वे कहते थे कि 1+3 = 4 हजार जाने हमने गवाई इस तरह वे मानवता और करूणामयी भाव से विश्व को एक कुटुम्ब की नजर से देखते थे आज जब हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन मे हिंसा, अशांति, असहीष्णुता और विकृतिया बढ़ती जा रही है। तब विनोबा के विचार और उनकी तीसरी शक्ति मे निहित प्रेम, करूणा, रूहानियत और सर्वोदय की अवधारणा हमे नई दिशा देती है। जय जगत।