भारतीय ज्ञान-परंपरा में नारी

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Rajendra Ranjan Chaudhary

— राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी —

हने को तो कहा ही जाता है कि वेद में नारी का अधिकार नहीं है , हालाँकि काशी-विश्वविद्यालय में महामना मालवीय की अध्यक्षता में गठित विद्वन्मंडल ने वेद-विभाग में नारी के लिए द्वार खोले थे तथा वेद की ऋषिकाओं का उल्लेख किया था ।

यदि भारतीयज्ञान-परंपरा में नारी का अधिकार न होता तो याज्ञवल्क्य को चुनौती देने वाली गार्गी की गाथा हम तक कैसे पँहुचती ?लोपामुद्रा की गणना तो श्रीविद्या की परमाचार्या के रूप में की जाती है ,पति अगस्त्य ने उनसे दीक्षा ग्रहण की थी ।

आदिशंकराचार्य को भारती ने शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी थी । गोरखनाथ को राजा भर्तृहरि की रानी माता सामदेई ने प्रेरणा दी थी , जिन्होंने सिद्धों को शास्त्रार्थ में ललकारा था तथा नारी के मातृत्व की महिमा प्रतिष्ठित की थी ।

ऐसे बहुत से प्रसंग हैं , जो कभी-कभी ध्यान में आते हैं फ़िर बह जाते हैं । माँ विदुला के जीवन का तत्त्व हो या मदालसा की लोरी हों ।महाराज कुवलयाश्व की पत्नी थी मदालसा , के लिए इसने इस शर्त पर विवाह किया था कि -मुझे टोकोगे नहीं,
मदालसा के पुत्र हुआ । वह रोता तो मदालसा पालने में झुलाते हुए लोरी गाती > तू क्यों रोता है ? तेरा कौन है , जो तेरा रुदन सुन कर द्रवित होगा ? दीनता क्यों दिखाता है? चुप रह कर विचार किया कर ।
मदालसा शुद्धोsसि बुद्धोsसि निरंजनोsसि संसारमाया परिवर्जितोsसि ।
संसार स्वप्नं त्यज मोहनिद्रां हे तात , त्वं रोदिषि कस्य हेतो:।

यशोधरा के प्रश्न का उत्तर बुद्ध के पास नहीं था न , चुप लगा के चले गये । लोई की महिमा कम नहीं है , यदि उसे कबीर के तत्त्व का पूरा ज्ञान न होता तो सिकन्दर लोदी के दंड के समय आगे क्यों आ जाती ?लखिमादेई विद्यापति की प्रेरणा थी । तुलसीदास रत्नावली को कभी भूल सके होंगे ?वेद की ऋषिकाओं के नाम हैं –

अदिति-देवजामि( देवजामयः), सूर्या सावित्री ,घोषा कक्षीवती, सिकता निवावरी, सर्पराज्ञी (सार्पराज्ञी)- , दक्षिणा प्राजापत्य -इंद्राणी-सचि (पौलोमी शचि)- यमी वैवस्वत ,वाक् आम्भृणी का सूक्त प्रसिद्ध है-अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवै:। अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ।अपाला , अपाला महर्षि अत्रि की अत्यंत मेधाविनी कन्या थी।-जुहू ब्रह्मजाया ऐसी ही एक ऋषिका थीं ब्रह्मजाया जूहू, जिन्होनें ऋग्वेद के दशम मंडल के 109वें सूक्त के 7 मन्त्रों/ऋचाओं को लिखा है। कहा जाता है कि वह देवगुरु बृहस्पति की पत्नी थीं, किन्हीं कारणवश या अहंकार वश बृहस्पति ने त्याग दिया ,लेकिन यह बहुत स्वाभिमानिनी थी । इसने प्रतिकार में सूक्त लिखे । अगस्त्यस्वसा [अगस्त्य की भगिनी] ,लोपामुद्रा ,विश्ववारा आत्रेयी-उर्वशी -सरमा देवशुनी-शिखण्डिन्यौ अप्सरसौ- श्रद्धा कामायनी -, नदी, गोधा-, शाश्वती (शश्वती आंगिरसी), वसुक्रपत्नी-,रोमशा ब्रह्मवादिनी -हैं।गार्गी वाचक्नवी महत्त्वपूर्ण नाम है । सीतासावित्री को सोम ने तीन वेद देने का उल्लेख है। इड़ा को यज्ञानुकाशिनी कहा गया था, कात्यायिनि थी , ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी थी ,बहुत सी ब्रह्मचारिणीयों के नाम आते हैं, जैसे एक सिद्धा थी ।
बृहद्‌-देवता के दूसरे अध्याय में ऋषिकाओं की सूची इस प्रकार है-

घोषा गोधा विश्ववारा, अपालोपनिषन्निषत्।
ब्रह्मजाया जुहूर्नाम अगस्त्यस्य स्वसादितिः ॥ ८४ ॥
इन्द्राणी चेन्द्रमाता च सरमा रोमशोर्वशी
लोपामुद्रा च नद्यश्च यमी नारी च शश्वती ॥ ८५ ॥
श्रीर्लाक्षा सार्पराज्ञी वाक्‌ श्रद्धा मेधा च दक्षिणा।
रात्री सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरिताः ॥ ८६ ॥

जनक ने जब यज्ञ के उपरान्त सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मवादी ऋषि को स्वर्णमुद्राओं के साथ एक हजार गाय देने की घोषणा की, तब याज्ञवल्क्य ने शिष्यों से कह दिया कि गायों को हांक ले चलो।वचक्नु-कुल की गार्गी ने पूछा कि आप ने अपने को सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मवादी कैसे मान लिया? मेरे सवालों का उत्तर दें। गार्गी ने पूछा >यह पृथ्वी किससे ओतप्रोत है?याज्ञवल्क्य ने कहा कि > पृथ्वी वायुसे,वायु अन्तरिक्ष से अन्तरिक्ष आदित्यलोक से।गार्गी ने सवाल किया >यह चर-अचर,स्थूल-सूक्ष्म किसमें जाकर सिमटता है?याज्ञवल्क्य ने कहा >तो यही पहले पूछा होता!!नारी हो न! माया की सगी बहन!सभी को समेटनेवाला ब्रह्म है! गार्गी ने पूछा>ब्रह्मसे आगे?याज्ञवल्क्य ने कहा कि यह अतिप्रश्न है,इसके आगे मन-वाणी की गति नहीं है। गार्गी ने पूछा कि तब यही बताइये कि वह कैसा है?याज्ञवल्क्य ने कहा कि न वह स्थूल है,न सूक्ष्म,न रूप है,न रंग!गार्गी ने पूछा> यह कैसा उत्तर है?याज्ञवल्क्य ने कहा >वाचक्नवी,मैं तुम्हारी तर्कबुद्धि को प्रणाम करता हूं,इसका यही उत्तर है कि इसका कोई उत्तर नहीं है।जनक ने पूछा कि विजय किसकी हुई?वाचक्नवीगार्गी ने कहा कि > विजय किसी की भी हो, पर गायें याज्ञवल्क्य की। मैं अबला दो हजार सींगों से कैसे उलझ सकूंगी?याज्ञवल्क्य तो पहले ही गायों को हांक कर ले जा रहे थे.

लोपामुद्रा श्रीविद्या की परमाचार्या हैं । वे हादि-संप्रदाय की प्रवर्तक हैं । कादि-संप्रदाय के प्रवर्तक कामराज हैं ।
वे महर्षि अगस्त्य की पत्नी तो हैं ही , उनकी दीक्षा-गुरु भी हैं ।
एक बात और उल्लेख्य है कि उनका उल्लेख ऋग्वेद में है । वे मन्त्रद्रष्टा हैं ,साथ ही तन्त्रविद्या की आचार्या हैं ।
यही बात महर्षि अगस्त्य के संबंध में भी कही जा सकती है । वे शक्तिसूत्र के रचनाकार हैं ।
लोपामुद्रा विदर्भराज निमि [ या भीम ] की कन्या थीं ,विदर्भराज भगमालिनी के उपासक थे । त्रिपुराविद्या के उद्धार के कारण लोपामुद्रा को ऋषित्व प्राप्त हुआ ।पुराणों में लोपामुद्रा की विभिन्न कथायें हैं ,

विदर्भराज के पास आकर अगस्त्य ने लोपामुद्रा से पाणिग्रहण करने के लिये याचना की थी किन्तु विदर्भराज अगस्त्य को अपनी बेटी नहीं देना चाहते थे। वे अगस्त्य के शाप से डर भी रहे थे। तब लोपामुद्रा ने स्वयं ही कहा कि आप मेरा विवाह महर्षि से कर दीजिये! वे स्वयं भी महर्षि की तरह ही तापस-जीवन व्यतीत करने लगीं। जब एक दिन महर्षि ने प्रणय-निवेदन किया तब राजकुमारी ने कह दिया कि तपस्वी-जीवन में तो यह विचार संगत नहीं है , इसके लिये तो आपको राजमहल जैसी व्यवस्था करनी होगी । महर्षि अगस्त्य तब इल्वल के पास गये और विपुलसंपत्ति से वे सब साधन सुलभ हो गये ,जो विदर्भराज के घर में थे ,तब इन्हें दृढस्यु नाम का पुत्र प्राप्त हुआ। दक्षिण-भारत में जो कथायें हैं, उनमें लोपामुद्रा पांड्यराजा मलयध्वज की कन्या हैं। लोपामुद्रा के सात भाई हैं और वे द्रविडदेश के राजा हैं!

रोमशा का स्पष्ट कथन है कि” मा मे दभ्राणि मन्यथा।” मुझे छोटा मत समझना। अहमस्मि रोमशा। मैं रोमशा हूँ। यह वाक्य नारी के आत्मविश्वास की सशक्त अभिव्यक्ति है|

अरुन्धती ने तपश्चर्या के साथ बारह वर्षो तक धर्म की व्याख्या की और राम को स्थितप्रज्ञता का उपदेश किया ।अरुंधती को भारतीय संस्कृति में इतना महत्त्व दिया गया है कि सप्तर्षि नक्षत्रों के साथ एक नक्षत्र का नाम अरुंधती है । वनवास के समय अनसूया ने सीता को उपदेश किया था। आम्रपाली की कविताओं का उल्लेख बौद्ध साहित्य में मिलता है।

यह तथ्य गम्भीरता पूर्वक विचार करने का है कि भारतीय मनीषा ने ज्ञान की अधिष्ठात्री शक्ति की परिकल्पना एक नारी (सरस्वती) के रूप में की है।

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