ITM University Gwalior ने डॉ. अभय बंग को 2024 के बादशाह ख़ान स्मृति अलंकरण से सम्मानित किया।

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ITM University Gwalior honoured Dr. Abhay Bang with the Badshah Khan Memorial Award 2024.
डॉ. नंद किशोर आचार्य , श्रीमती रुचि सिंह चौहान, डॉ. अभय बंग और प्रोफेसर योगेश उपाध्याय.

आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर ने वर्ष 2024 के बादशाह ख़ान स्मृति अलंकरण से देश के प्रख्यात गांधीवादी स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अभय बंग को नवाजा है।

ईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर ने हमेशा से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को नवयुवकों तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है और यह परंपरा जारी रखी है। इसी परंपरा के तहत खान अब्दुल गफ्फार खान अवार्ड का लगातार 8 वर्षों से आयोजन किया जा रहा है, जिसमें समाज में सृजनात्मक कार्य करने वाले व्यक्तियों तथा समाज में आंदोलन और परिवर्तन की धारा को संजोने, संरक्षित करने और प्रोत्साहित करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जाता है।  मानव सेवा में उनके अतुलनीय योगदान के लिए आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने डॉ. अभय बंग को वर्ष 2024 का बादशाह खान अवार्ड प्रदान किया है।

महात्मा गांधी महाराष्ट्र के बारे में कहा करते थे कि यह रचनात्मक कार्य करने वाले लोगों के लिए मधुमक्खी का छत्ता है। तमाम प्रकार के लोग और संस्थाएँ रचनात्मक कार्य करती हैं। इसी परंपरा में सर्वोदय और गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित ‘सर्च’ (Society For Education, Action and Research in Community Health)संस्था भी आती है, जिसके संस्थापक डॉ. अभय बंग जी हैं।

डॉ. अभय बंग महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत एक प्रमुख गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता और वैज्ञानिक हैं। उन्होंने भारत के सबसे गरीब लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांति लाने का कार्य किया है। एक ऐसे कार्यक्रम की अगुवाई की है, जिससे दुनिया के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक में शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। उनके नवजात शिशुओं के उपचार के दृष्टिकोण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ ने मान्यता दी है। साथ ही यह कार्यक्रम पूरे भारत और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में लागू किया जा रहा है। उन्होंने शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए एक नई पद्धति का शोध किया, जो विश्व में अपनी तरह की पहली पद्धति है। इसे भारत सरकार ने आशा योजना के तहत पूरे देश में लागू किया है। पिछले साल भारत में इस योजना के तहत 1.5 करोड़ बच्चों को लाभ भी मिला।

उन्हें ‘ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा के अग्रदूत’ के रूप में पहचाना गया है। उन्हें जॉन्स हॉपकिन्स सोसाइटी ऑफ स्कॉलर्स में शामिल किया गया था। 2005 में टाइम मैगज़ीन ने उन्हें और उनकी पत्नी को सम्मानित करते हुए अपने 18 ग्लोबल हेल्थ हीरोज की सूची में स्थान दिया।

अभय के पिता ठाकुर दास बंग एक युवा अर्थशास्त्री थे। अमेरिका जाकर अपनी डॉक्टोरल पढ़ाई शुरु करने से पहले महात्मा गांधी से आशीर्वाद लेने गए थे। गांधीजी ने उन्हें कुछ सेकंड तक देखा। फिर कहा, ‘युवक, अगर तुम्हें अर्थशास्त्र पढ़ना है तो भारत के गांवों में जाओ।’ ठाकुर दास ने अमेरिका जाने की अपनी योजना रद्द कर दी और भारतीय गांवों के निर्माण का प्रण लिया। गांधीजी को दिया हुआ ठाकुरदास का वचन उनके पुत्र अभय और अशोक बंग दोनों निभा रहे हैं। दोनों ही भारत के गांवों को अपना कर्मस्थल मानते हैं और गांधी के दिए हुए अपने पिता के वचन को आज भी पूरा कर रहे हैं।
अशोक बंग ने कृषि से संबंधित मुद्दों पर काम करने का निर्णय लिया और अभय ने गांव वालों के स्वास्थ्य के लिए काम करने का फैसला किया।

नौवीं कक्षा तक उन्होंने उस स्कूल में पढ़ाई की, जो गांधीजी द्वारा प्रचारित नई तालीम के सिद्धांतों का पालन करता था। बचपन से ही ‘Heart, Head and Hand’ के सामंजस्य के साथ जिज्ञासा को विकसित करना, शोध करना, सीखना और खोज करना अभय बंग के व्यक्तित्व का परिचय बन गया। अपने अनुसंधान के दौरान डॉक्टर बंग गांधी के तालीसमैन के विचार को केंद्र में रखते हुए अनुसंधान अध्ययन और सेवा का काम करते हैं.

अनुसंधान, किसके लिए?

“लोगों के पास जाओ, उनके बीच रहो, उन्हें प्यार करो, उनसे सीखो, जहां से वे जानते हैं, वहीं से शुरुआत करो, और जो उनके पास है उस पर निर्माण करो।” वह मानते हैं अनुसंधान की शक्ति सेवा और संघर्ष से भी अधिक है। परिणाम हमेशा प्रयास से कई गुना अधिक होते हैं। भूमिहीन कृषि श्रमिकों को संगठित करना उनके रचनात्मक कार्यों का हिस्सा रहा है। उनका एक शोध ने 60 लाख श्रमिकों को लाभ मिला। कहने का मतलब कई बार आंदोलन से ज्यादा ज्ञान-आधारित, प्रमाण-आधारित तर्कों का अधिक प्रभाव होता है। डॉ अशोक बांग सामाजिक जन जागरण के साथ-साथ नीति निर्माण, नीति सुधार और नीति के पोषण का काम भी करते हैं।

1986 में जब वे गढ़चिरौली आए तो एक और महत्वपूर्ण बात सीखा—समाज की समस्याओं को हल करने के लिए अनुसंधान और डेटा का उपयोग करना। जैसा गांधीजी ने कहा था कि सामाजिक वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता राष्ट्र के सच्चे सेवक होंगे और लोगों की विविध और बढ़ती आवश्यकताओं का उत्तर देंगे।

उन्होंने एक ऐसा शब्द गढ़ा जो बहुत अर्थपूर्ण है। वह है, सत्याग्रही वैज्ञानिक। डॉ अभय बंग अपने संस्थानों के माध्यम से शराब और तंबाकू की लत से मुक्त कराने के लिए पूरे जिले में एक नशामुक्ति कार्यक्रम ‘मुक्तिपथ’ की शुरुआत की है। उनके युवाओं के लिए चलाए गए ‘निर्माण’ और ‘तरुण्यभान’ जैसे कार्यक्रमों को सराहना मिली है.

डॉ. अभय और डॉ. रानी बंग को लगभग 70 सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें प्रतिष्ठित ‘महाराष्ट्र भूषण’ और ‘पद्म श्री’ शामिल हैं। डॉ. बंग को उनके दो बच्चे, डॉ. आनंद और अमृत, बहू डॉ. आरती और 150 सहयोगियों द्वारा सहायता मिलती है। गांधी चाहते थे कि उनके कार्यकर्ता ‘सत्याग्रही वैज्ञानिक’ बनें। सत्याग्रही को वैज्ञानिक बनना चाहिए और वैज्ञानिक को सत्याग्रही। सत्याग्रही का शाब्दिक अर्थ है सत्य-आग्रह (सत्य पर दृढ़ आग्रह) और दुराग्रही (जो असत्य पर जोर दे) या अहंकार-आग्रह (अहंकारी) नहीं होना चाहिए। सत्य की खोज करने के लिए, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए, हमें अहिंसक होना चाहिए, दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति खुला रहना चाहिए, सत्य को स्वीकार करना चाहिए और अपनी धारणा के खंडन को भी स्वीकार करना चाहिए। इसलिए सत्य तक पहुंचने के लिए अहिंसा आवश्यक है। डॉ अभय बंग एक सच्चे वैज्ञानिक सत्याग्रही हैं।

नए ढंग से गांधी को समझने और देखने की तलाश करते रहते हैं। 21वीं सदी में महात्मा गांधी को कैसे समझा जाए इस पर डॉक्टर अभय व्यंग्य जी का गहरा शोध रहा है। उनके जीवन के मुख्य उद्देश्यों में एक बड़ा उद्देश्य ग्रामीण भारत में नागरिकता बोध पैदा करना रहा है। रचनात्मक काम या गांधी द्वारा बताए गए रचनात्मक काम से बड़ा माध्यम और कुछ भी नहीं हो सकता है।

ग्रामीण भारत से डॉ. अभय बंग जी का बचपन से गहरा संबंध रहा है। बचपन में ही गांधीवादी रचनात्मक काम करने वाले लोगों के साथ आश्रमों में रहे। डॉक्टर अभय जी बताते हैं कि उन्हें चिकित्सा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन सेवा भाव और समाज के स्वास्थ्य को सुधारने का लालच था, जिसने उन्हें स्वास्थ्य या चिकित्सा विज्ञान की ओर आकर्षित किया। और फिर डॉक्टर होना तो लाजिमी था।

ठाकुर दास बंग जी के विचार, कर्म और चिंतन का बड़ा असर डॉ. अभय बंग जी के संस्कार, आचरण और चिंतन पर पड़ा। उनकी पत्नी रानी बंग की मुलाकात उच्च शिक्षा के दौरान हुई, जो एक सहपाठी रहीं। बाद में जीवन की सहयात्री भी बनीं और दोनों ने एक-दूसरे का साथ देकर समाज का नव निर्माण करने का कार्य किया। उन्होंने साथ में अमेरिका में पढ़ाई की और फिर 1986 के बाद सामुदायिक स्वास्थ्य (कम्युनिटी हेल्थ) पर काम करने की दिशा में लग गए। डॉक्टर बंग 1983 में अमेरिका में पढ़ाई करने के बाद 1986 में भारत लौट आए और सामुदायिक स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को अपने कर्म स्थल के रूप में चुना।

डॉ. बंग सोशल एंपावरमेंट, सोशल एमांसिपेशन और कंस्ट्रक्टिव प्रोग्राम को कलात्मक ढंग से जोड़ते हैं। इसका उदाहरण शायद ही भारत या विदेश में कहीं और मिलता हो। वह सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत को अपनाकर जीते हैं।

डॉ. अभय बंग चिकित्सा विज्ञान के एक जाने-पहचाने हस्ताक्षर हैं। लेकिन इसके साथ-साथ सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को समझने की एक गहरी दृष्टि भी रखते हैं। चिकित्सा विज्ञान और सामुदायिक स्वास्थ्य (कम्युनिटी हेल्थ) में विशेषज्ञता रखते हुए वे विज्ञान की साधना और समाज निर्माण का कार्य भी करते हैं।

एक समाज वैज्ञानिक के रूप में डॉ. अभय बंग सामंजस्य दृष्टि का आग्रह रखते हैं। अपने दर्शन में अद्वैत की दृष्टि को हमेशा विस्तार देते रहते हैं। हाल ही में एयरपोर्ट से आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर आते समय उन्होंने बताया कि सामंजस्यपूर्ण दृष्टि क्यों रखते हैं। उन्होंने विनोबा जी के एक विचार का उल्लेख किया, जिसमें विनोबा जी ने कहा था कि महाभारत के 17वें अध्याय में एक सवाल दानवों और देवताओं के द्वारा किया गया कि ईश्वर का नाम लेने का अधिकार किसे है। तो विनोबा जी ने कहा कि जो अच्छे कर्म करते हैं, उन्हें ईश्वर का नाम लेने का हक है। जो पाप करते हैं, उन्हें भी ईश्वर का नाम लेने का हक है। इस विचार से मैं बहुत प्रभावित हुआ। यह बात विनोबा जी ने 1932 में कही थी, जो आज भी प्रासंगिक है।डॉ. अभय बंग जी गांधी को नई दृष्टि से समझने का हमेशा चिंतन और मनन करते रहते हैं। उन्होंने एक बार बताया कि वे गांधी के ऊपर सेवाग्राम में एक व्याख्यान दे रहे थे। व्याख्यान के बाद, डॉ. जीजी परिख जी ने उनके पास आकर उन्हें धन्यवाद देने का काम किया, यह कहते हुए कि गांधी को नई दृष्टि से समझने में डॉ. अभय बंग जी के उद्बोधन से उन्हें मदद मिली है।

महात्मा गांधी के विचार विनोबा भावे जी के संस्कार और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रभाव का नतीजा हैं डॉक्टर अभय बंग जैसे समाजसेवी। डॉ. अभय बंग एक सच्चे गांधीवादी और एक दयालु खुदाई खिदमतगार ( ईश्वरीय सेवक ) हैं।

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