यह स्मृति सभा लोकनायक जयप्रकाश की स्मृति तिथि 8 अक्तूबर 2024 को रात 8 बजे से 10 बजे तक चली। इन साथियों की स्मृति में साथी राजीव की बड़ी बहन अर्चना मिश्र, सहकर्मी उषा विश्वकर्मा (रेड ब्रिगेड), आलोक सिंह, संदीप सक्सेना, अखिलेश यादव, सत्यव्रत सिंह; निरंजन विद्रोही के छोटे भाई रजत प्रधान, मित्र भक्तचरण दास (पूर्व विधायक, सांसद एवं केन्द्र में मंत्री, कालाहांडी), सिद्धार्थ प्रधान (भवानीपटना), लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान के संयोजक आनन्द कुमार, मीनाक्षी सखी, विजय प्रताप, किशोर दास, कंचनबाला, विकास विक्रम, मणिमाला, रमण कुमार , सुशील कुमार, सत्यनारायण मदन, ज्ञानेन्द्र कुमार, कुंजबिहारी, शशिशेखर सिंह, रणधीर गौतम आदि ने अपनी श्रद्धा देते हुए अपनी बातें रखीं। कई सहभागियों ने अपनी भावांजलि लिखकर भेजी।
अन्य उपस्थित सहभागी रहे- अम्बिका यादव, अनिल विश्वराय अन्नु यादव, अशोक विश्वराय, अशोक, अशोक कुमार सोमल, दीपक विश्वकर्मा, दीपक धोलकिया, मनोज राय, कल्याण साखरकर,पूजा विश्वकर्मा, लक्ष्मी विश्वकर्मा, विभूति विक्रम, विनोद विक्रम, कृष्ण शेखर, विरेन्द्र कुमार, जितेश शरण, स्मिता स्नेही, त्रिभुवन, रीता धर्मरीत, अरविन्द अंजुम और मंथन आदि। साथी जयंत दिवाण और धीरेश्वर षाड़ंगी ने जुड़ने की कोशिश की, पर वे जुड़ नहीं सके। साथियों ने अनेक आयामों में इन साथियों को याद किया।
निरंजन विद्रोही एक छात्र नेता और फुटबॉल खिलाड़ी थे। जे पी के आह्वान पर छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़ने वाले ओड़िशा के कुछ अग्रणी छात्र नेताओं में रहे। वे जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी के भी संस्थापक सदस्य रहे। बालको बॉक्साइट खनन विरोधी गंधमार्दन सुरक्षा आंदोलन को संगठित करनेवाले सर्व प्रमुख साथी रहे। बाद में वे नियमगिरि आंदोलन के संघर्ष में भी रहे। अभी वे बरसों से किसान आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका में सक्रिय थे। बच्चों सी निश्छलता और हमेशा खिली रहनेवाली सहज मुस्कान उनकी खास पहचान थी। उनमें आंदोलन को संगठित करने की अद्भुत दक्षता थी।
राजीव एक मेधावी छात्र रहे। आईआईटी छोड़ सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन से जुड़े। कमजोर समूहों के और जरूरतमंद छात्रोंं को शैक्षणिक सहयोग देते रहे। हमेशा मित्रों एवं समाजकर्मियों को सेवा और सहयोग के लिए तत्पर रहे। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के बाद युवा भारत, संवाद प्रक्रिया आदि पहलों के नेतृत्व में रहे। लोगों को संगठनबद्ध करने के प्रयासों में अनवरत लगे रहे। वे लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान के संस्थापक सदस्यों में रहे। साथ ही वे बेरोजगारी और गरीबी मुक्त भारत के लिए एक बड़ा राष्ट्रीय अभियान बनाने की दिशा में सक्रिय थे। वे लेखन और वक्तृत्व दोनों स्तर पर काफी प्रभावशाली थे। वे अपनी मूल बात चन्द मिनटों भी रख सकते थे और उस पर घंटों भी बोल सकते थे। वे फिजिक्स और राजनीति शास्त्र दोनों के पारंगत थे।संजय सुमन इन दिनों खास सम्पर्क में नहीं थे। लेकिन वे भागलपुर में गंगा मुक्ति आंदोलन के काफी सक्रिय साथियों में रहे।
इन असामयिक मौतों ने एक रिक्तता बना दी है। इन साथियों के विचारों और कार्यों का संकलन बनना चाहिए – ऐसे इजहार के साथ यादों की यह बातचीत अपने पड़ाव पर पहुंची।
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