एक थे साहिर लुधियानवी, भजन लिखा – तोरा मन दर्पण कहलाए… अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम… मन रे तू काहे ना धीर धरे… गंगा तेरा पानी अमृत… ईश्वर अल्लाह तेरो नाम… हे रोम रोम में बसने वाले राम… ये ऐसे नगमे हैं जो हमारे मंदिरों में, घरों में और यहां तक कि महाकुंभ में गूंजते हैं। सुनिए तो मन के आसमान में फूल बरसते हैं। मजे की बात ये कि साहिर एक प्रगतिशील सोच के नास्तिक थे।
एक थे राही मासूम रज़ा, जिनकी भाषा में, अदायगी में, जिनके विचारों में और रगों में जितनी गाजीपुर की मिट्टी की गंध थी, उतनी ही गंगा और जमुना की पवित्रता महसूस की जा सकती है। महाभारत सीरियल लिखकर न सिर्फ अमर हो गए, बल्कि हम कलम के मजदूरों के लिए कीर्तिमान कायम किया।
एक शकील बदायूंनी थे, उन्होंने लिखा- मन तड़पत हरि दर्शन को आज…मधुबन में राधिका नाचे रे…. मोहे पनघट पे नंदलाल… इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है.. ये भजन हिंदी फिल्म संगीत के अनमोल रत्न हैं।
इन सब ज्यादातर भजनों के गायक हैं मोहम्मद रफी और संगीतकार नौशाद।
एक हैं जावेद अख्तर, लगान में लिखा था – मधुबन में जो कन्हैया किसी गोपी से मिले, राधा कैसे न जले… ओ पालनहारे निर्गुण औ न्यारे… स्वदेश में लिखा था – राम ही तो करुणा में हैं, शान्ति में राम हैं राम ही हैं एकता में, प्रगती में राम हैं… संगीतकार ए आर रहमान हैं।
थोड़ा भारतीय शास्त्रीय संगीत पर नजर डालें – अमीर खुसरो से शुरू कीजिए और बड़े गुलाम अली खान, अब्दुल वाहिद खान, अमीर खान, इनायत हुसैन खान, अकबर अली खान, फैयाज खान, अब्दुल करीम खान, अल्ला रक्खा, सुलतान खान, रशीद खान और बहुत लंबी लिस्ट है। मुसलमान संगीतज्ञों को हटा दें, तो भारतीय शास्त्रीय संगीत में शायद आधा से ज्यादा इतिहास बचेगा ही नहीं।
ये सब हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं। इन सबमें एक बात कॉमन है- ये सब मानवतावादी और प्रगतिशील सोच के लोग हैं जिन्होंने कभी जहरीला भाषण नहीं दिया। इन्होंने मानवता की इज्जत की, शांति और भाईचारे की वकालत की। इन्होंने हिंदुस्तान को हिंदुस्तान बनाया।
नफरत की चाशनी में डूबा व्यक्ति कला का सृजन नहीं कर सकता। वह सिर्फ और सिर्फ समाज में जहर फैला सकता है।
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