— रणधीर कुमार गौतम —
डा. राजेन्द्र प्रसाद ने एक बार कहा था अगर निर्वाचित लोग चरित्रवान् और प्रामाणिक होंगे तो वे खराब संविधान को भी अच्छी तरह चला लेंगे ,लेकिन अगर उनमें यह योग्यता नहीं हुई तो संविधान देश को बचा नहीं सकता। आज संविधान ऐसा शब्द बन गया है जो न केवल लोगों के अधिकारों की रक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है, बल्कि हमारे देश और उसके नागरिकों को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण मंत्र भी है। हमारे संविधान की प्रस्तावना में अंकित तीन मूल्यों — समाजवाद, संप्रभुता और धर्मनिरपेक्षता — की ओर ध्यान देते हुए कहा जा सकता है कि हमारे समाज में समाजवाद की जगह पूंजीवाद का प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। धर्मनिरपेक्षता के बजाय धार्मिक भावनाओं को उकसाया किया जा रहा है, जो चरमपंथी गतिविधियों के रूप में देखी जा सकती हैं। वहीं, समाज में अल्पसंख्यकों की स्थिति कहीं न कहीं हाशिये पर पहुंच चुकी है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर हमेशा कहा करते थे कि अगर संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात नहीं किया गया, तो संविधान पूरी तरह असफल हो जाएगा। यह बात जातिवाद जैसे मुद्दों पर विशेष रूप से लागू होती है।
आज अंबेडकर के उन प्रयासों को समझने की आवश्यकता है, जिनमें उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के आधार के रूप में केवल राज्य और संविधान को नहीं देखा, बल्कि धर्म के प्रभाव को भी स्वीकार किया। उन्होंने बौद्ध धर्म से संवैधानिक मूल्यों, विशेष रूप से मैत्री की भावना (जिसे हम अंग्रेजी में Fraternity कहते हैं) के उद्भव को समझा। डॉ. भीमराव अंबेडकर Fraternity के मूल्य को, जिसे हम हिंदी में मानव सामीप्य का दर्शन कह सकते हैं, लेकर अत्यंत उत्साहित थे। उनके मन में यह विचार था कि संवैधानिक मूल्य और Fraternity के मूल्य के साथ समाज का निर्माण होगा।
डॉ. भीमराव अंबेडकर “टुगेदरनेस” (एकजुटता) को ही लोकतंत्र मानते थे। उनके संविधान निर्माण के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य यही था कि “टुगेदरनेस” को कैसे सस्टेन, एन्हांस और मेंटेन किया जाए।
आज संवैधानिक मूल्यों की आवश्यकता इसलिए और भी प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि आम बातचीत में भी यह देखा जाता है कि पढ़े-लिखे लोग महिला आरक्षण, दलित आरक्षण और आदिवासी आरक्षण जैसे विचारों को स्वीकार नहीं करते। वे पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन (सकारात्मक भेदभाव) के मह्त्व को नहीं पहचानते और प्रेफरेंशियल ट्रीटमेंट (प्राथमिकता आधारित व्यवस्था) को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते। इसके साथ-साथ, जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और पूंजीवाद के मूल्यों को जीवन का आधार मानते हैं। इस स्थिति में, राष्ट्र निर्माण और नागरिकता निर्माण की प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है।
नागरिकता निर्माण की भावना कैसे विकसित की जाए?
आज के समय में, यदि हमारे आसपास कोई अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति है और हम उसके प्रति सहानुभूति और प्रेम प्रदर्शित करते हैं, तो इससे आपसी सौहार्द का वातावरण बनता है। यह भावना अल्पसंख्यकों में बहुसंख्यकों के प्रति और बहुसंख्यकों में अल्पसंख्यकों के प्रति परस्पर प्रेम विकसित करती है। यही संबंध मानवता और राष्ट्रीय चेतना के रूप में विकसित होता है।
हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे घर में काम करने वाले श्रमिकों को सम्मान दिया जाए। वर्तमान में समाज में बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्तियों के बीच लिबरल (उदारवादी) होना स्वयं में एक चुनौती है। ऐसे में संवैधानिक मूल्य ही वे साधन बन सकते हैं जो व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ते हैं और राष्ट्र में राष्ट्रीय चेतना का आधार स्थापित करते हैं। एक समृद्ध राष्ट्र की कल्पना केवल इन्हीं मूल्यों के आधार पर की जा सकती है।
विचार और संस्कार बदलने की कठिनाई:
यह कहा जाता है कि विचार बदलना कठिन है, लेकिन उससे भी अधिक कठिन संस्कारों को बदलना है। जब भी कोई तथाकथित दलित आपके पास आता है और आप उसे स्नेह देते हैं या गले लगाते हैं, तो आप न केवल उसके भीतर के शोषण की भावना को समाप्त करते हैं, बल्कि स्वयं को भी एक नई दृष्टि और स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। यह प्रक्रिया न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का माध्यम बनती है, बल्कि समाज और राष्ट्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हमारा समाज और राज्य, दोनों संस्कारों को विकसित करते हैं। जाति व्यवस्था के कारण हमारा समाज लंबे समय तक मानसिक गुलामी में रहा है। जब हम इन पुराने संस्कारों को त्यागते हैं, तो हम न केवल स्वयं को मुक्त करते हैं, बल्कि दूसरे समुदायों के लोगों को भी समानता और सम्मान प्रदान करते हैं। यही वह प्रक्रिया है, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान करती है।
अंबेडकर का विचार: डॉ. भीमराव अंबेडकर का आइडिया ऑफ फ्रीडम केवल संविधान तक सीमित नहीं था। यह विचार हमारे एवरीडे लाइफ (दैनिक जीवन) में स्वतंत्रता के मूल्य को स्थापित करने की बात करता है। यह स्वतंत्रता केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक मुक्ति की प्रक्रिया है।
सिर्फ उपनिवेशवाद (Colonialism) से मुक्त होना स्वतंत्रता (Freedom) नहीं है। यदि मैं आज सवाल करूं कि कितने भारतीय ब्रिटेन में नौकरी करना चाहते हैं या ब्रिटेन की नागरिकता लेना चाहते हैं, तो शायद एक लंबी कतार लग जाएगी। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति मिलेगा जो ब्रिटिश या कनाडा की नागरिकता लेने की इच्छा न रखता हो। लेकिन जब मैं यह सवाल करता हूं कि कितने ब्राह्मण दलितों से विवाह करना चाहेंगे, या कितने पुरुष पितृसत्ता (Patriarchy) से मुक्त होना चाहेंगे, तो आपको ऐसे लोगों की संख्या उंगलियों पर गिनने लायक मिलेगी।
इस संदर्भ में जब मैं विचार करता हूं, तो मुझे अंबेडकर, डॉ. लोहिया और गांधी के विचार एक समान प्रतीत होते हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि स्वतंत्रता की यह दीर्घकालिक खोज केवल उपनिवेशवाद पर खत्म नहीं होती, बल्कि वहां से शुरू भी नहीं होती। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद और जातिवाद के वे कौन से मूल्य हैं जो इन शोषणकारी विचारधाराओं को वैधता प्रदान करते हैं।
अंबेडकर के विचारों में जो बात सबसे महत्वपूर्ण दिखाई देती है, वह यह है कि वे समाज और राज्य के बीच संघर्ष (State vs. Society) की द्वंद्वात्मकता में उलझे नहीं रहते। इसके बजाय, वे Constitutional state , Constitutional Democracy, और भ्रातृत्व (Fraternity)” जैसे मूल्यों पर जोर देते हैं।
हमें वह क्षण याद आता है जब संविधान सभा में अनुच्छेद 17 पारित हुआ, तब “महात्मा गांधी की जय” का नारा लगाया गया था। यह नारा लगाने वालों में डॉ. भीमराव अंबेडकर भी शामिल थे। यही कारण है कि मैं कहता हूं, अंबेडकर का जो “महात्मा” है, वह अंबेडकर से अलग नहीं है। लेकिन अंबेडकर का “महात्मा” गांधी के “अंबेडकर” से अधिक करीब है। इस परिप्रेक्ष्य में, मुझे लगता है कि गांधी और अंबेडकर एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।
अंबेडकर का अध्ययन करते हुए मैंने महसूस किया है कि उनका गहन उद्देश्य (Deep Quest) केवल सशक्तिकरण (Empowerment) तक सीमित नहीं था। उनका उद्देश्य सशक्तिकरण से भी आगे, एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन (Social Transformation) था। और इस परिवर्तन में भारतीयता की मूल भावना का आग्रह निहित है।
मैं यही कहना चाहूंगा कि आज संविधान दिवस है। इसे संवेदनशील, सभ्य और जिम्मेदार लोगों द्वारा सहेजने, पोषित करने और लागू करने के लिए लिखा गया था.संविधान ने हमें असफल नहीं किया, बल्कि हमने हमें अपनी सफलता के लिए इसे सफल बनाना है.