— राजकुमार जैन —
प्रगति मैदान में आयोजित पुस्तक मेले में जाना हुआ। जैसी अन्य मेलो में भीड़भाड़ होती है, वैसी तो खैर वहां मुमकिन हो ही नहीं सकती थी। परंतु आशा से कम पुस्तक प्रेमी वहां नजर आए। एक खास बात जो वहां देखने को मिली कि अंग्रेजी पुस्तकों की बिक्री वाले स्टॉल पर हिंदी पुस्तकों के प्रकाशन समूहो की तुलना में अधिक जमघट था। सबसे ज्यादा भीड़ penguin, Blooms Bury academic, hachette India, simon and schuster, Atlantic, Rupa publication जैसीअंग्रेजी पुस्तकों की बिक्री वाली दुकान पर थी। हिंदी प्रकाशन समूह के राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, लोक भारती इलाहाबाद, राजपाल एंड संस, नई किताब प्रकाशन समूह इत्यादि के अतिरिक्त, विशेष प्रकार की पुस्तकों जो किसी विचारधारा के साहित्य को प्रमुखता के साथ प्रकाशित करती है जैसे प्रभात प्रकाशन (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा) दलित साहित्य के लिए गौतम बुक सेंटर, कम्युनिस्ट साहित्य के पुस्तकों के लिए इंडियन पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस तथा रूस से प्रकाशित किताबों का स्टॉल भी वहां लगा हुआ था। इसी तरह विभिन्न धर्मो के साहित्य के प्रकाशन समूह भी वहां पर उपस्थित थे। विभिन्न भारतीय भाषाओं की पुस्तकों के भी छोटे-छोटे स्टाल लगे हुए थे।
समाजवादी साहित्य की अधिकतर पुस्तकें लोक भारती प्रकाशन इलाहाबाद तथा राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के स्टॉल पर उपलब्ध थी। दिल्ली हाई कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा सोशलिस्ट थिंकर राजेंद्र सच्चर की बायोग्राफी जिसे पेंगुइन ने प्रकाशित किया है भी देखने को मिली। लोक भारती प्रकासन ने नई साजसज्जा मैं डॉ राममनोहर लोहिया की पुस्तक “इतिहास चक्र” को बिक्री के लिए उपलब्ध कराया। ज्ञान विज्ञान एजुकेयर प्रकाशन ने “राममनोहर लोहिया जीवन और व्यक्तित्व” पर नीलम मिश्रा द्वारा लिखित पुस्तक प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त ‘में लोहिया बोल रहा हूं’ राजस्वी द्वारा संपादित पुस्तक प्रभात प्रकाशन ने उपलब्ध कराई। भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर पर रामनाथ ठाकुर द्वारा दो भागों में संपादित पुस्तक भी मेले में बिक्री के लिए उपलब्ध थी। सेतु प्रकाशन द्वारा प्रोफेसर आनंद कुमार द्वारा लिखित “इमरजेंसी राज्य की अंतर कथा” तथा विनोद अग्निहोत्री की पुस्तक ‘आंदोलन जीवी’, शीन काफ निजाम ‘उस पार की शाम: अरविंद मोहन द्वारा संपादित किशन पटनायक की पुस्तक ‘भारत शूद्रों का होगा’तथा सच्चिदानंद सिन्हा पर संपादित पुस्तकें दिखाई दे रही थी।
नंदकिशोर आचार्य की पुस्तक ‘साहित्य का चित्र’ तथा कनक तिवारी द्वारा लिखित ‘जनताननामा’ पुस्तक सूर्य प्रकाशन मंदिर द्वारा प्रस्तुत की गई थी। हमारे सोशलिस्ट साथी, दिल्ली यूनिवर्सिटी एकेडमिक काउंसिल के भूतपूर्व सदस्य, इतिहासकार और शायर प्रोफेसर अमरनाथ झा ने ‘अमर पंकज’ के नाम से तीन गजल संग्रह “मैंने भोगा सच” ‘धूप का रंग काला है’ ‘हादसों का सफर’, लिखी है, जिसे श्वेतवर्णा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। बड़ी प्रसन्नता मुझे तब हुई जब मैंने अपने एक छात्र जो अब दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है, मुन्ना पांडे द्वारा लिखित ‘समय से संवाद: १४ ‘संस्कृति:विविध परिप्रेक्ष्य जो अनन्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई खरीदी। अधिक कीमत होने के कारण कई किताबें चाह कर भी पुस्तक प्रेमी खरीद नहीं पा रहे थे। इसका एक और अन्य कारण भी है की मनचाही पुस्तकों की फोटो प्रतिलिपि बनवाकर जो बहुत सस्ती पड़ती है, पाठक उसको प्राप्त कर लेते हैं। आधुनिक तकनीकीकरण, इंटरनेट, टेलीविजन, सोशल मीडिया वगैरा के कारण पुस्तकों के प्रति पहले की तुलना में अब आकर्षण कम ही दिखाई देता है।
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