24 अगस्त। हिमाचल प्रदेश में इन दिनों सेब सीजन चरम पर है, और पिछले एक माह से सेब बागबान विभिन्न मुद्दों को लेकर आंदोलनरत हैं। पहले बागबानों ने जीएसटी की दरों और पैकेजिंग मैटेरियल में बढ़ोत्तरी को लेकर सचिवालय का घेराव किया, इसके बाद बागबानों ने जेल भरो आंदोलन किया और एफआईआर तक भी हुई। इन सबके बीच में सरकार ने बागबानों के आंदोलन को देखते हुए सेब के दामों को तय करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया, लेकिन प्रदेश में सेब बागबानी से जुड़ी बड़ी कंपनी अडानी ने हाईपावर कमेटी के गठन वाले दिन ही सेब खरीद के दाम जारी कर दिए।
इससे बागबान भड़क गए और उन्होंने अब कंपनी के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया है। सेब बागबानों ने अब 25 अगस्त 2022 को अडानी एग्रोफ्रेश के शिमला के तीन स्थानों मेंदहली, बीथल और सैंज के स्टोर्स का घेराव करने का फैसला लिया है। सेब बागबानी से जुडे़ 30 संगठनों को मिलाकर बने संयुक्त किसान मंच के अध्यक्ष हरीश चौहान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कंपनियां बागबानों और सरकार को गुमराह कर रही हैं। उन्होंने कहा, कि अडानी एग्रोफ्रेश हिमाचल प्रदेश में सेब की सबसे अधिक खरीद करनेवाली कंपनियों में से एक है और अडानी की ओर से जारी किए गए दामों का बाजार में चल रहे दामों पर गहरा असर पड़ता है। सरकार की ओर से सेब के दामों को तय करने के लिए कमेटी का गठन किया गया था, लेकिन अदानी कंपनी ने अपने दाम बिना कमेटी की अनुमति के जारी कर दिए। इसके अलावा कमेटी की ओर से बुलाई गई बैठक में भी अदानी कंपनी के बड़े अधिकारी चर्चा के लिए नहीं आए और वे सरकार को हल्के में ले रहे हैं।
यंग एंड यूनाइटेड प्रोग्रेसिव ऐसोसिएशन के महासचिव प्रशांत सेहटा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि अदानी कंपनी फल के रंग और आकार के अनुसार उन्हें कई ग्रेड्स में बांटकर अलग-अलग रेट्स पर खरीदती है। इस बार भी अडानी एग्रीफ्रेश ने राज्य के सेब बागबानों से करीब पच्चीस हजार मीट्रिक टन सेब खरीदने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा, कि इस साल अडानी एग्रीफ्रेश ने जो सेब के रेट्स खोले हैं वह बीते साल की तुलना में 12 से 15 फीसदी कम है। पिछले साल कंपनी ने 85 रुपए प्रति किलो तक उच्चतम दाम रखे थे, वहीं इस बार यह रेट 76 रुपए है। जबकि बीते बरस की तुलना में इस बार सेब उत्पादन लागत में लगभग 30 फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। प्रशांत कहते हैं, कि कंपनी द्वारा सेब के रेट में भी इसी तर्ज पर वृद्धि की जानी चाहिए थी।
संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान ने कहा कि कंपनियां इस कमेटी और सरकार के निर्देशों को गंभीरता से नहीं देखती हैं। इसलिए इसमें ज्यादातर कंपनियों के प्रतिनिधि नहीं आए। बैठक के दौरान जब अडानी जैसी बड़ी कंपनियों के साथ किए गए करार और नियम व शर्ताें को न तो माँगा गया तो न ही तो सरकार और न ही कंपनियों की ओर से कोई एमओयू दिखाया गया। उन्होंने कहा, कि कोई नियम कानून न होने की वजह से कंपनियां अपनी मनमर्जी कर रही हैं। अब हम लोग कंपनियों की मनमर्जी को नहीं मानेंगे और अपने आंदोलन को और अधिक तेज करेंगे।
(‘डाउन टू अर्थ’ से साभार)
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