‘सत्ताग्रही संपन्नता’ से ‘सत्याग्रही-अवज्ञा’ तक।

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— पवन करण —

क्षिण अफ्रीका में रंग-भेद आधारित अमानुषिक प्रवृति ने जिस तरह महात्मा गांधी को भारत की आजादी के आंदोलन के लिए तैयार किया। इंग्लैंड में रहती मेडलिन ने अंग्रेजों की सत्ताग्रही-सुख-संपन्नता के बीच भारत की स्वतंत्रता के लिए जारी महात्मा गांधी के सत्याग्रही-सविनय-अवज्ञा-आंदोलन के लिए खुद को मानसिक-व्यवहारिक रूप से तैयार किया।

महात्मा गांधी ने इसके सांकेतिक महत्व को समझा और जब खुद के भीतर, खुद के द्वारा हासिल की दृढ़ता साथ लिए जब जहाज से उतरकर उन्होंने भारत की ‘ब्रिटिश हुकूमत से आजादी चाहती धरती पर’ कदम रखे, वहां उनका स्वागत कर उन्हें दादा भाई नौरोजी के यहां ले जाया गया और वहां से ट्रेन से अहमदाबाद, जहां बापू के कहने पर उन्हें लेने सरदार वल्लभ भाई पटेल और महादेव देसाई और स्वामी आनंद जैसे दिग्गज पहुंचे।

गांधी ने उन्हें नाम दिया मीरा। भारत पर अपने देश की अवैध साम्राज्यवादी सत्ता का विरोध करने पहुंची विद्रोहिणी मीरा। रोम्यां रोला से मिल चुकीं और महात्मा गांधी से पत्राचार करती रहीं मेडलिन को ‘भारत’ से मिलवाने के लिए गांधी ने मीराबेन को खादी से मिलवाया। खादी मेडलिन की भारत से पहचान का प्रत्यक्ष और प्रामाणिक माध्यम बनी। जिसके चलते मेडलिन ने लगभग पूरा भारत घूमा। उन्होंने भारत में खादी और खादी से जुड़ी भारत की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर लेख लिखा। जो मेडलिन की गतिविधियों पर ध्यान रख रही ब्रिटिश मीडिया तक पहुंचा।

मेडलिन गांधी से प्रभावित होकर भारत पहुंचीं थीं। महात्मा गांधी मेडलिन को भारत के प्रभाव में ले आये। कस्तूरबा के साथ जो महिलाएं बापू की जीवनचर्या-दिनचर्या में सहयोगी रहीं उनमें से एक मीराबेन कई कठिन परिस्थितियों से गुजरीं। चाहे अपने लिए भारत के मौसम के अनुसार वस्त्र चयन का मामला हो अथवा भोजन बनाने का। उनके सिर के बाल मुंडवाने वाले निर्णय को बापू ने लंबे समय तक रोके रखा। मगर आखिर में उन्हें सिर मुंडवाने की आज्ञा मिली। क्या दृश्य रहा होगा वह जब बापू खुद मेडलिन के सिर के बाल काट रहे होंगे। क्या इस घटना का कोई चित्र मौजूद है? किसी चित्रकार ने इस प्रसंग को पढ़कर इसका चित्र बनाया।

सुप्रिया पाठक की किताब मीराबेन गांधी की सहयात्री में नमक आंदोलन प्रसंग पढ़कर मैं मेडलिन की उस बेचैनी भरी निराशा का काल्पनिक अनुमान लगा सकता हूं जो गांधी द्वारा उन्हें दांडी-यात्रा नमक-आंदोलन में शामिल न किये जाने से उनके भीतर उपजी होगी। जबकि नमक आंदोलन में भारी संख्या में स्त्रियों की भागीदारी रही। यदि गांधी ने मीराबेन को दांडीयात्रा के प्रारंभ करने वालों में शामिल किया होता तो उनकी संख्या अस्सी होती। यह संख्या लिखने-बोलने में और सुंदर लगती। जीवन हो अथवा आंदोलन स्त्री की भागीदारी उसे सुंदर और पूर्ण बना देती है।

मगर महान उद्देश्यों में मानसिक क्षति की पूर्ती होने में देर नहीं लगती। दांडीयात्रा में शामिल नहीं हो सकीं मीराबेन बापू के साथ गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने इंग्लैंड गईं। और उसके बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से भी यूरोप की यात्रा की जिसमें अमेरिका और इंग्लैंड सहित यूरोप के देशों के सामने भारत की आजादी चाहते महात्मा गांधी और आंदोलनकारियों का पक्ष रखा। उनके विचारों को यूरोप की मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। वे किसानों मजदूरों और समाज के संवेदनशील तबके के बीच भारत की आजादी की चाहत के प्रति संवेदना जगाने में कामयाब रहीं। बापू के साथ आगा खां पैलेस में जेल में रहने वालीं महावीर देसाई और उसके बाद कस्तूरबा गांधी की मृत्यु के दुख की गांधी की साझेदारिनी मीरा बेन हीं थीं जिन्होंने 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की प्रस्तावना सबसे पहले पढ़ी और कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के सामने रखी। मीराबेन अंत तक गांधी के साथ-पास, उनके संपर्क में रहकर उनके साथ संवादरत रहीं ।

गांधी और नेहरु भारत की आजादी के आंदोलन के सूर्य और चंद्र थे। गांधी सूर्य और नेहरु च॔द्र। जहां गांधी-सूर्य से फूटता सत्य का प्रकाश भारत ही नहीं दुनिया भर के उस कोने-कोने को आजादी हासिल करने के लिए प्रकाशित कर रहा था, वहीं नेहरु-चंद्र से छिटकती विचार चिंतन, शब्द और भविष्य की चांदनी दुनिया के आकाश को आश्वस्ति प्रदान कर रही थी। मुझे लगता है गांधी के आस-पास सक्रिय रहीं असाधारण और महान महिलाएं जिनमें इंग्लैंड से आई मेडलिन भी थीं किन्हीं नक्षत्रों की तरह, गांधी को जन्म देने वाली उनकी जन्मदात्री के विस्तार की तरह थीं। गांधी जिनसे ऊर्जा ग्रहण करते थे।

पृथ्वी पर स्त्री, स्त्री के साथ-साथ पुरुष को और पुरुष स्त्री से जन्म लेने वाले विस्तार की तरह मौजूद हैं।

अध्ययन टीप के नाम पर मीराबेन के बारे में प्रारंभ से अंत तक यहां लिख देने का मेरा इरादा नहीं। मगर इसे पढ़ने वालों से यह अनुरोध अवश्य है कि बुद्धिमति सुप्रिया पाठक की इस किताब को पढ़कर वे ‘मेडलिन से मीराबेन के रुपांतरण के बारे’ मैं अवश्य जाने। प्राकृत भारती अकादमी जयपुर से प्रकाशित मीराबेन पर यह शानदार किताब है।

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