” एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यों कहो
इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है। ”
सच्चिदा जी ने आज संतान्वे वर्ष पूरा कर लिया। दस बारह दिन पहले जगत नारायण जी ने मुझे फोन कर के कहा था कि अरविंद जी ( सच्चिदा जी के छोटे भाई ) चाहते हैं कि मैं भी सच्चिदा जी के जन्म दिन पर मौजूद रहूं। यह नितांत पारिवारिक कार्यक्रम था, जिसमें कुछेक अभिन्न लोग ही आमंत्रित थे।
किशोरावस्था में सच्चिदा जी से जुड़ना हुआ और पता ही न चला कि कब यौवन बीता, कब अधेड़ हुआ और अब बुढ़ापे का सातवां पायदान पार कर रहा हूं। अवचेतन में यह भाव गहराई से शुरू से अब तक है कि सच्चिदा जी के पास समाज, देश और दुनियां को स्वस्थ, सुंदर और समतामूलक बनाने का सूत्र है।
1978 के सराय सम्मेलन में सच्चिदा जी को पहली बार देखा था। दिल्ली से वह सीधे आए थे। मंगलीलाल मंडल को युवा जनता के प्रदेश अध्यक्ष पद से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी जी ने हटा कर नीतीश कुमार को अध्यक्ष बनाया था। इस स्थापना सम्मेलन का उद्घाटन किशन पटनायक जी ने किया था। शिवानंद जी ने सच्चिदा जी का परिचय देते हुए इन्हें त्रोत्सकीवादी बताया था। इसका सच्चिदा जी ने फौरन खंडन कर दिया था। सच्चिदा जी निखालीस समाजवादी हैं। जब कोई इन्हें लोहियावादी कहता है तब भी सच्चिदा जी आपत्ति जाहिर करते हैं।
सराय सम्मेलन के बाद जब सच्चिदा जी से मिला तो पहली किताब “सोशलिज्म एंड पावर ” मिली। जिस तरह से मार्क्स, एंजिल्स, गांधी, नरेंद्रदेव, लोहिया, जे पी और किशन जी की किताबों को हमलोग पढ़ते हैं, उसी तरह से सच्चिदा जी की भी किताबों का पारायण करते हैं। किसी किसी किताब के एक पैरा को समझने में तो मुझे घंटों लग जाता है। मगर जब समझ लेता हूं तो अलौकिकता का अहसास होता है। सच्चिदा जी का संपूर्ण लेखन रचनावली के रूप में आठ खंडों में आ गया है। लोहिया समग्र के बाद सच्चिदा जी ही ऐसे समाजवादी लेखक हैं जिनकी रचनावली आई है। सच्चिदा जी की अंग्रेजी उच्च कोटि की है। प्रभाकर जी ने कभी कहा था, आर डी एस कॉलेज के अंग्रेजी के विद्वान प्रोफेसर बी घोष के बारे में। प्रो घोष सच्चिदा जी की सारी अंग्रेजी किताबों को चाव से पढ़ते थे। इसलिए नहीं कि वह राजनीति में दिलचस्पी लेते थे, महज इस कारण से कि सच्चिदा जी की अंग्रेजी बहुत अच्छी है। हिंदी से ज्यादा प्रवाह उनकी अंग्रेजी में है। सच्चिदा जी फ्रेंच भाषा भी जानते है। फ्रेंच लेखक अलबेयर कामू का नाटक Les Justes का अनुवाद ” न्याई हत्यारे ” सच्चिदा जी ने किया है।
डॉ लोहिया की अंतरराष्ट्रीय स्तर की अंग्रेजी मासिक पत्रिका Mankind होती थी। अगस्त 1956 में इसके प्रवेशांक में ही सच्चिदा जी का लेख The Socialist Idea of Equality छपा था। इसके शुरू के अंश कुछ इस तरह थे, जब हम किसी गरीब किसान से समानता लाने की बात करते हैं तो वह तिरस्कारपूर्ण तरीके से पांचों उंगलियों को दिखा कर कहता है,
” भगवान ने ही पांचों उंगलियों को समान नहीं बनाया है। अमीर और गरीब बने रहेंगे। ” यह विडंबना है कि समाजवादी आंदोलन की उत्पत्ति और शक्ति समतामूलक समाज की अपील से ही होती है, यह भाव अधिकाधिक पीछे चला गया है।समाजवाद को केवल अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण के बराबर माना जा रहा है।
प्रवेशांक के इस लेख से लोहिया अत्यंत प्रभावित हुए थे। पटना आने पर उन्होंने तत्कालीन सोशलिस्ट पार्टी के बिहार अध्यक्ष प्रणब चटर्जी से कहा कि ” मुझे सच्चिदानंद से मिलवा दो। ” और डॉक्टर लोहिया सच्चिदा जी को अपने साथ हैदराबाद ले गए। सच्चिदा जी ने वहां Mankind के संपादकीय सहकर्मी के रूप में काम किया। बाद में तो सच्चिदा जी ने जनता, जनक्रांति, सामयिक वार्ता और Samata Era में सक्रिय योगदान दिया। सच्चिदा जी का कलम के साथ साथ कुदाल से भी मजबूत रिश्ता रहा है। अविभाजित मुजफ्फरपुर जिला में तमाम विपक्षी दलों का जो संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा था, सच्चिदा जी उसके जिला संयोजक थे। किसानी के साथ साथ मजदूर के भी रोल में हम सच्चिदा जी को पाते हैं। कोयला मजदूरों और रेल मजदूरों के आंदोलन से भी सच्चिदा जी शिद्दत से जुड़े रहे हैं। रेल में तो बतौर खलासी का भी काम किया हैं
ऐश्वर्यशाली और सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े परिवार में जन्म लेने वाले सच्चिदा जी ने जिस तरह से खुद को Declass किया है वह विरल है। एक ही उदाहरण दूंगा। बारगढ़ सम्मेलन में सच्चिदा जी के साथ हम लोग गए थे। आयोजक ने सच्चिदा जी और पन्ना लाल सुराना जी को होटल में ठहराने का इंतजाम किया था। पन्ना लाल जी तो होटल में ठहरे मगर सच्चिदा जी हम कार्यकर्ताओं के साथ ही दरी पर सोए।
” वे जो प्रतिभावान बड़े हैं
उनके साथ बड़े लफड़े हैं। ”
हमारे सच्चिदा जी इन लफ़ड़ों में कभी नहीं फंसे। सच्चिदा जी ने हम कार्यकर्ताओं को सिखाया है कि रैली प्रदर्शन में जाना है तो टिकट ले कर चलना है। ऐसे कार्यक्रमों में बेटिकट जाना क्रांतिकारिता मानी जाती है। ठाणे के सम्मेलन में दिवंगत शिवपूजन सिंह ने सच्चिदा जी और हम लोगों की तरफ देखते हुए तंज कसा था, ” ये लोग टिकट वाले हैं। ” सवाल किया गया कि किसान और आदिवासी कैसे किसी कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं ? सच्चिदा जी ने छूटते ही जवाब दिया था, ” क्यों किसान और आदिवासी अपने बच्चों की शादी में कर्ज नहीं लेते ? अपना काम समझेंगे तो साधन भी निकल आएगा। “गांधी जी का हवाला देते हुए आगे कहा कि यदि एक भी बगैर टिकट का यात्री होगा तो वह गार्ड को गाड़ी खोलने से मना करेंगे।
राजनीति को रोजमर्रा का काम सच्चिदा जी बतलाते हैं। जिस तरह से हम आजीविका, परिवार, कुटुंब आदि के लिए समय निकालते हैं, उसी तरह से राजनीति के लिए भी समय निकालना चाहिए।
सच्चिदा जी अखबार पढ़ने में ज्यादा समय जाया करने के खिलाफ हैं। सच्चिदा जी का आग्रह रहता है कि टेक्स्ट की किताबों तो तवज्जो दी जाए। अखबार पढ़ कर गंभीर राय नहीं बनाई जा सकती है। आज हम देख रहे हैं कि वॉट्सएप यूनिवर्सिटी से कितना कूड़ा निकल रहा है।
सच्चिदा जी तो पिता की उम्र के हैं, मगर प्रारंभ में ही उन्होंने सख्त ताकीद कर दी थी कि पांव कत्तई न छुए जाए। उन्हें सर से संबोधन कदापि न किया जाए। समाजवादी को तो इस पर अमल करना ही चाहिए। एक बार जब मैं अपने विभागीय प्रमुख के प्रकोष्ठ में बैठा था, तभी राज्य सभा के उपाध्यक्ष हरिवंश जी का फोन आया था। मुझे हरिवंश जी संबोधित करते हुए अधिकारी महाशय को ताज्जुब हुआ। उन्होंने कहा भी आप हरिवंश जी कहते हैं ? उन्हें उम्मीद थी मैं सर सर कहूंगा।
जन्म दिन पर प्रभाकर जी, अरविंद जी, मनोरमा दीदी, सुरेंद्र मंगला पुरी, बंटू, प्रो नंदन जी सपत्नीक, लालदेव जी, महेंद्र जी, मोती जी, पवन और जगत जी थे। कुछ लोगों के नाम मैं नहीं जानता हूं।
नब्बे के दशक में हिन्दुस्तान टाइम्स में अभयकांत का तीनों भाइयों पर केंद्रित आलेख छपा था, Wedded to Politics।
तीनों भाइयों की राजनीति पर विशद चर्चा थी। प्रोफेसर भुवनेश्वरी सिंहा ने मुझसे कई बार कहा था कि तीनों भाई तीन विचारधारा से जुड़े हैं, कोई किसी की राजनीति में हस्तक्षेप न करते हुए प्रेमपूर्वक रहते हैं,यह अद्भुत बात है। अभयकांत जी का एक और लेख सच्चिदा जी पर याद आता है, Prophet of Gloom.
दूजा ना कोई
1989 में मैं विभागीय काम से दो पखवारे के लिए कोलकाता गया था। एक दिन शाम को अशोक सेक्सरिया जी के साथ राजकिशोर जी मिलने आए। जब चाय पीने के लिए रेस्तरां में गया और सच्चिदा जी पर बात होने लगी तो राजकिशोर जी ने कहा था, ” विश्व में सच्चिदा जी इकलौते विद्वान हैं, जिनका एक से अधिक विषयों पर अधिकार है। एक व्यक्ति किसी एक विषय का प्रकांड विद्वान हो सकता है, सच्चिदा जी तो अनेक विषयों पर साधिकार लिखते हैं। ”
वर्षों पूर्व शिवानंद तिवारी जी ने मुझसे कहा था, ” नवीन तुम भाग्यशाली हो जो सच्चिदा जी और किशन जी के सान्निध्य में रहते हो। जब भी इन दोनों के पास बैठो तो कागज कलम ले कर बैठना। जो भी कुछ कहें, उसे फौरन नोट कर लेना। यह बहुत काम की चीज होगी। ” और इस पर मैने अमल भी किया और करता हूं। इन्हीं नोट्स के आधार पर कई लेख और समाचार बनाए गए।
सच्चिदा जी का निवास ” चमोला कुटीर ” हमलोगों के लिए समाजवादी तीर्थ है। यहां वाम दक्षिण की संकीर्ण दीवारें भी टूट जाती है। दोनों खेमों के लोग अपनी जिज्ञासाओं के शमन के लिए आते हैं। जब माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य और भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान सच्चिदा जी से मिलने आए थे तो संयोगवश मैं भी वहीं विद्यमान था।
स्कूली जीवन से ही राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले सच्चिदा जी की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। यहां तो पार्टी मेंबर बनते ही लोग विधायक सांसद बनने की जुगत भिड़ाने लगते हैं। गांधी और जे पी की तरह बगैर किसी ओहदे पर रहे सच्चिदा जी की आभा दीप्तिमान है। सत्ता बार बार यहां शीश नवाने आती है। कर्पूरी ठाकुर मुख्य मंत्री रहते हुए मनिका गांव में दरी पर बैठ कर सच्चिदजी से मशविरा कर के गए हैं। जॉर्ज फर्नांडिस भी मनिका गांव आ कर ग्रामीणों से यह कहते पाए गए कि वह सच्चिदा जी को सच्ची बोलते हैं।
मनोरमा दीदी और नंदन जी पर्याप्त मात्रा में मधुर और नमकीन लाए थे। सबों को खिलाया गया। भतीजा बंटू ने गुलदस्ता भेंट किया। सच्चिदा जी से केक कटवाया गया।
सच्चिदा जी शतकवीर हों। स्वस्थ रहें, यह हम सब की दिली तमन्ना है। शताब्दी वर्ष की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। 2027 में हम सब सच्चिदा प्रेमी धूम धाम से शताब्दी समारोह मनाएंगे। सच्चिदा जी से जुड़ी बातों का कोई ओर छोड़ नहीं है। लंबे पोस्ट को विराम देता हूं।
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