विख्यात वैज्ञानिक, शिक्षाविद और समाजसेवी प्रोफेसर त्रिपाठी से संवाद

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Conversation with renowned scientist, educationist and social worker Conversation with renowned scientist, educationist and social worker Professor Tripathi

मुज़फ़्फ़रपुर ३१ अगस्त। आज ‘द यूनिवर्सिटी ऑफ़ द फ्यूचर’ की ओर से प्रसिद्ध वैज्ञानिक, शिक्षाविद् एवं समर्पित समाजसेवी प्रो. विपिन कुमार त्रिपाठी (वी.के. त्रिपाठी) से संवाद का कार्यक्रम हरीतिमा में आयोजित किया गया। प्रोफेसर त्रिपाठी दिल्ली से पटना और फिर पटना से मुज़फ़्फ़रपुर हिंसा के विभिन्न रूपों पर चर्चा करने हेतू आये थे। आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर एमेरिटस प्रो. त्रिपाठी अपने प्लाज़्मा भौतिकी के शोध—विशेषकर माइक्रोवेव–प्लाज़्मा अंतःक्रिया और लेज़र–प्लाज़्मा अध्ययनों—के लिए प्रसिद्ध हैं। विज्ञान के साथ-साथ उन्होंने सद्भाव मिशन की स्थापना की, जो भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव और शिक्षा के प्रसार हेतु कार्यरत है। उनका जीवन शैक्षणिक उत्कृष्टता और सामाजिक प्रतिबद्धता का अद्भुत संगम है।

प्रोफेसर त्रिपाठी को सुनने और उनसे बात करने मुज़फ़्फ़रपुर के प्रबुद्ध प्रगतिशील बुद्धिजीवी गण के अलावा युवक, युवतियाँ भी उपस्थित हुए । कार्यक्रम की शुरुआत में प्रोफेसर त्रिपाठी का परिचय कराते हुए लेखिका शेफाली ने कहा कि प्रोफेसर त्रिपाठी ज्ञान की उस धारा को परिभाषित करते हैं, जो ज्ञान को सिर्फ़ किताबों, भाषणों तक सीमित नहीं करता बल्कि वह सामाजिक बदलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। देश व विश्व के विभिन्न मुद्दों पर वह सड़कों, गलियों, बस्तियों, गाँव में चल-चल कर लोगों के बीच सद्भावना स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज के शिक्षकों और युवाओं को, हम सब को प्रोफेसर त्रिपाठी से सादगी, विनम्रता और समर्पण के साथ और भी बहुत कुछ सीखना है। प्रोफेसर त्रिपाठी एक घंटे बिना रुकावट खड़े हो कर निर्विघ्न बोलते रहे। उन्होंने हिंसा के इतिहास के विभिन्न रूप को तथ्यात्मक तरीक़े से इस तरह रखा कि ऐसा लगा जैसे एक वैज्ञानिक नहीं बल्कि एक इतिहासविद या एक समाजशास्त्री बात कर रहा हो। प्रोफेसर शास्त्री ने कहा कि देश-दुनिया में चार प्रकार की हिंसा होती आ रही हैं – पारिवारिक हिंसा, जातीय हिंसा, सांप्रदायिक हिंसा और युद्ध जनित हिंसा। हिंसा करने वाले जुल्मी के पीछे ढाँचा अथवा राजसत्ता की ताक़त होती है।

दक्षिण अफ़्रीका में गांधी जी ने रंगभेद के ख़िलाफ़ अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर विजय प्राप्त की थी। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि ‘लड़के और लड़की के बीच व्यवहार के स्तर पर होने वाले इस अन्याय के विरुद्ध उन्हें जागरूक किया जाए और घरेलू कामों में बराबर रूप से बचपन से ही लड़का-लड़की दोनों को ही सिखाया जाए, ताकि महिलाओं और उनके द्वारा किए जाने वाले घरेलू कामों के प्रति सम्मान का भाव पैदा हो।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता शाहिद कमाल, भाकपा माले के कृष्ण मोहन, संस्कृति कर्मी बैजू कुमार, और प्राध्यापक अनिमेष कुमार सिंह के जातीय हिंसा से जुड़े सवालों के जवाब में कहा कि जातीय भेद-भाव और दमन-उत्पीड़न तीन हज़ार वर्षों से चला आ रहा है। सत्ताधारी वर्ग ने शोषण जारी रखने के लिए वर्ण जाति की व्यवस्था खड़ी की, जिसे धर्म ने मज़बूत किया जबकि धर्म का मूलभूत काम मानवीय एकता का संदेश फैलाना है। उन्होंने कहा कि अहिंसक प्रतिकार के लिए दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं अन्य वर्गों में सच्चा प्रगतिशील नेतृत्व पैदा करने की ज़रूरत है।

देश में बढ़ती नफ़रती हिंसा से चिंतित बुद्धिजीवी गणों में संस्कृति कर्मी यशवंत, उपेन्द्र कौशिक, शायर जलाल असग़र फ़रीदी आदि ने उन दिनों को याद किया जब तजिया निकलने पर उस जुलूस में हिंदू बड़े, बूढ़े, बच्चे भी बड़ी संख्या में उत्साह और उमंग के साथ शामिल होते थे और आज भी कुछ जगहों पर होते हैं । प्रोफेसर त्रिपाठी लगभग दो घंटे से भी ज़्यादा लोगों के प्रश्नों का उत्तर देते रहे। यह संवाद सिर्फ़ संवाद नहीं रहा, बल्कि सद्भावना को मज़बूत करने के लिए बुद्धिजीवियों के द्वारा हफ़्ते में एक दिन विभिन्न गाँवों की यात्रा कर विभिन्न माध्यमों से (कविता, गीत, नाट्यमंच, चित्रकारी, संवाद)विभिन्न मुद्दों पर जनजागरण और सद्भावना और एकता स्थापित करने का प्रस्ताव भी पारित हुआ।

कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों में अरविंद कुमार, पुस्तकालय विभागाध्यक्ष कौशल किशोर चौधरी, रंगकर्मी दिवाकर घोष, उपेन्द्र कौशिक, जलाल असग़र अफ़रीदी, धीरेंद्र कुमार, बैजू कुमार, अल्तमस दाउदी, सुकेश कुमार, रौशन कुमार, अमरनाथ सिंह, पूजा, तनु, अंशु आदि कई लोग शामिल हुए।

प्रस्तुति: शेफाली


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