— डॉ राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी —
सभी समस्याओं के समाधान के मार्ग अन्तत: शिक्षा के द्वार से निकलते हैं। भारत में दो प्रकार के गुरुकुलों का संदर्भ आता है , एक -वे जो कुलपति[ ऋषि ] के द्वारा संचालित होते थे,जैसे -वसिष्ठ थे , आयोद धौम्य थे , कण्व ऋषि थे,कौत्स थे और वाल्मीकि भी कुलपति थे। दूसरे वे , जो राज्याश्रय में थे – हिरण्यकशिपु के आश्रय में शंड और अमर्क नामक दो आचार्य थे , वे पढ़ाते थे कि राजा ही ईश्वर है। द्रोण और कृपाचार्य भी राज्याश्रय में थे , कभी सच नहीं कह सके ।द्रोण और कृपाचार्य राज्याश्रित थे , धर्म की बात न कह सके और न कर सके ।यदुकुल में भी हजारों आचार्य थे , वे भी राज्याश्रय में ही थे ।महर्षि सांदीपनि राज्याश्रय में नहीं थे, स्वयं श्रीकृष्ण उनके आश्रम में पढ़े थे।यदि राजगुरु की बात करें तो आचार्य बृहस्पति तथा शुक्राचार्य दोनों ही राजगुरु थे किंतु दोनों ही राजा के कृपापत्र नहीं थे, राजा का तिरस्कार कर सकते थे और ऐसी स्थिति आई भी थी कि उन्होंने राजा का तिरस्कार किया था।
राजा स्वयं ही उनका कृपापात्र था। इसका कारण भी यह था कि प्रजा में उनका सम्मान था और वे प्रजा का हितचिंतन करते थे।कालिदास ने शाकुंतल में एक चित्र दिया है , उसके आधार पर ,हम उस जमाने में शिक्षा की स्वायत्तता की परिकल्पना को समझ सकते हैं ,,दुष्यंत आखेट करता हुआ आश्रम के परिसर में जा पंहुचा,एक मृग को लक्ष्य बनाये हुए था ।एक तापस-बालक ने राजा को देखा तो बोला आश्रमस्य मृगोयं राजन,न हंतव्यो न हंतव्य:। [यह आश्रम का मृग है, शिकार के लिये नहीं ! ]राजा का वाण धनुष पर से नीचे उतर गया और राजा स्वयं भी रथ से नीचे उतर गया।दूसरा उदाहरण गांधार का युवराज आंभीक सिकंदर से जा मिला,तक्षशिला बगावती हो गयी,आंभीक को मालूम था कि कौटिल्य विद्रोह का स्रोत है,पर आंभीक उसे पकडने का साहस नहीं कर सका।चंद्रगुप्त नाटक में प्रसादजी का वाक्य है,-वह [अध्यापक] न किसी के राज्य में रहता है,न किसी के अन्न से पलता है,वह स्वराज्य में रहता है और अमृत हो कर जीता है।आधुनिक भारत में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शान्तिनिकेतन विश्वभारती की स्थापना की और महामना मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की, महात्मागांधी ने काशी विद्यापीठ की ।और भी प्रयोग हुए -राजा महेन्द्रप्रताप सिंह ने वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय बनाया , गांधीजी आये । श्रद्धानन्द जी ने भी प्रयोग किया ।
डी ए वी एक आन्दोलन ही बन गया था ।लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि अधिकांश विद्यालय और विश्वविद्यालय दूकान की तरह चल रहे हैं अथवा माफिया लोग चला रहे हैं ।यह तो सभी जानते हैं कि देश में शिक्षामाफिया काम कर रहा है ,ये स्कूल अभिभावकों को लूटते हैं ,यह तो सभी जानते हैं , शिक्षकों का वेतन तो बैंकों के उनके खातों में बाकायदा जाता है किन्तु उनके एटीएम कार्ड स्कूल-प्रबन्धकों के पास ही रहते हैं ,एटीएम कार्ड से उनका पूरा पैसा निकाल कर उसका कुछ अंश शिक्षकों को नकद दे दिया जाता है ! देश में हजारों समस्याएं हैं , लेकिन आज ऐसा कोई महापुरुष सामने नहीं आया , जो हाथ उठा कर कह सके कि -सभी समस्याओं के समाधान के मार्ग अन्तत: शिक्षा के द्वार से निकलते हैं ।
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