— रणधीर कुमार गौतम —
हरभजन सिंह सिद्धू साहब हमेशा न्याय की पुकार के साथ मजदूरों के खिलाफ हो रहे अन्याय को खत्म करने की पूरी कोशिश करते रहे हैं। दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में सोलह बारात घर (Community Centres) बनाए गए, क्योंकि मजदूर और श्रमिक अपनी आर्थिक स्थिति के कारण महंगे बैंक्वेट हॉल में शादियाँ नहीं कर पाते थे। उनके लिए बारात घर बनाने की योजना चलाई गई, जिससे मजदूरों को बहुत बड़ी मदद मिली। ग्रुप-डी कर्मचारियों को बहुत ही नाममात्र शुल्क पर यह सुविधा उपलब्ध कराई गई और गरीब वर्ग के अन्य लोगों को भी कम शुल्क पर बारात घर का उपयोग करने का अवसर दिया गया। धीरे-धीरे इन बारात घरों से लाखों रुपये की आमदनी हुई, जिसे समाज कल्याण के कार्यों में लगाया गया।
सिद्धू जी ने यह परंपरा भी शुरू की कि जब भी किसी कर्मचारी की असामयिक मृत्यु होती थी तो उसकी अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल होते थे। इतना ही नहीं, जब भी किसी कर्मचारी का रिटायरमेंट होता, तो सैकड़ों लोग उसे घर तक छोड़ने जाते। इससे सामूहिक शक्ति का विकास हुआ। जैसा कि हम जानते हैं, जब भी व्यक्ति किसी संगठन का अंग बनता है तो उसकी शक्ति में सृजनात्मक विकास होता है और जीवन की चुनौतियों का सामना करने का साहस भी बढ़ता है।
असामयिक मृत्यु के बाद सरकार से सहायता राशि मिलने में समय लग जाता था। सिद्धू जी के प्रयास से यह परंपरा स्थापित हुई कि हर कर्मचारी अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा तुरंत पीड़ित परिवार को देगा, जिससे उन्हें तत्काल आर्थिक सहयोग मिल सके। सिद्धू जी ने 73,000 कर्मचारियों को एक परिवार की तरह जोड़ दिया। उनके प्रयासों से कर्मचारियों की तनख्वाह भी बढ़ी और उसी अनुपात में सहयोग राशि भी।
साथ ही, सिद्धू जी ने रेलवे की जमीन का सदुपयोग करते हुए युवाओं के लिए जिम और जॉगिंग पार्क खुलवाए। आज रेलवे कर्मचारियों से ज्यादा आम लोग इन सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। पहले जहाँ रेलवे की जमीन पर गंदगी, सूअर, असामाजिक तत्व और नशेबाजी का अड्डा हुआ करता था, वह सब खत्म हो गया। अब उसी जगह पर लोग व्यायाम करते हैं, बैठकर चर्चाएँ करते हैं और कभी-कभी सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन भी करते हैं।
रेलवे कर्मचारियों के कल्याण में सिद्धू साहब का योगदान ऐतिहासिक है। जब भी किसी कर्मचारी की असामयिक मृत्यु होती थी, तो 20 दिन के भीतर उसके परिजनों को नौकरी, सेटलमेंट और क्वार्टर का आवंटन तक करवा दिया जाता ।
जब भी मुझे सिद्धू साहब से मिलने का अवसर मिला, मैंने देखा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से संगठित और असंगठित फेडरेशनों के लोग उनसे सलाह लेने, आंदोलन की रणनीति समझने और अपनी मांगों को पूरा करवाने के मार्गदर्शन हेतु आते है।
ऐसे जनसमर्पित नेताओं से ही संगठन चलते हैं और देश के निर्माण में इन्हीं नेताओं का बड़ा योगदान होता है।
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