— कृष्णस्वरूप आनन्दी —
आज़ादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य तिलक ने देशवासियों को ‘स्वराज’ का बीजमन्त्र दिया था, जिसे महात्मा गाँधी ने ‘पूर्ण स्वराज’ के रूप में पुष्पित-पल्लवित किया। स्वराज के सपने को साकार करने के लिए ‘सत्याग्रह’ को अमोघ अस्त्र माना गया। ‘समाजवाद’ से ‘सर्वोदय’ की ओर पहुँचे जेपी भी ‘लोक स्वराज’ की संकल्पना पर आधारित रचनात्मक प्रयोगों को चालना देते रहे। बाद में उन्हें जब इस बात की प्रतीति हुई कि पिछले 17 सालों से तो वे ठण्डा लोहा पीटते चले आ रहे हैं, तब फिर उन्होंने छात्रों-युवजनों के साथ जुड़कर ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का आवाहन किया। उनके इस आवाहन में अमर आन्दोलनकारी प्रो. बनवारी लाल शर्मा का भी स्वर शामिल था। सम्पूर्ण क्रान्ति के आन्दोलन में डाॅ. शर्मा ने अपना सर्वस्व झोंक दिया। आन्दोलन की ज्वाला से वे कुन्दन की तरह निखर कर सामने आये। पास आ रही सत्ता को दूर ठेलकर उन्होंने बाहर किया और लोगों से जीवनपर्यन्त जुड़े रहने का अपना फैसला बरकरार रखा।
बीसवीं सदी के अस्सी के दशक के मध्य अग्रद्रष्टा प्रो. बनवारी लाल शर्मा को देश में काॅरपोरेट-नीत बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के आने की भनक लग गयी थी। प्रो. शर्मा का मानना था कि आगे चलकर वह पूर्ण स्वराज की स्थापना की राह या दिशा में सबसे बड़ा रोड़ा बनेगा, इसलिए उन्होंने इलाहाबाद में ‘लोक स्वराज अभियान’ का सूत्रपात किया जिसका राष्ट्रीय संस्करण ‘आजादी बचाओ आन्दोलन’ के रूप में लोगोें के सामने आया। बहुराष्ट्रीयकरण के ख़िलाफ़ उनके अभिक्रम, आवाहन और पुरुषार्थ से 1 फरवरी, 2001 को लगभग 400 विद्यालयों के कोई 4 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं ने दुनिया की सबसे बड़ी मानव-शृंखला बना डाली। अपने बनाये इस कीर्तिमान को डाॅ. शर्मा ने उस समय काफी पीछे छोड़ दिया जब 29 जनवरी, 2003 को उनके अपूर्व शौर्य और अथक परिश्रम से दिल्ली के चारों ओर 100 किलोमीटर के अर्द्धव्यास के वृत्त के आकार की 1200 किलोमीटर लम्बी मानव-शृंखला बनी, जिसमें 3000 से अधिक विद्यालयों के कोई 10 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। इन मानव-शृंखलाओं से भारी संख्या में शिक्षक, बुद्धिजीवी, किसान, कामगार, आम जन, ग्रामनगरवासी और समाजकर्मी भी जुड़े थे। स्वातन्त्रयोत्तर भारत में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बाद, निश्चय ही, प्रो. बनवारी लाल शर्मा ऐसे आन्दोलनकारी, क्रान्तिदर्शी और विचारक थे जिन्होंने देश की युवाशक्ति को शान्तिपूर्ण, शुद्ध और नैतिक उपायों से आमूलचूल व्यवस्था-परिवर्तन और नये समाज-निर्माण के लिए गहरे अर्थों में अनुप्राणित किया था। देश की तरुणाई के लिए वे अजस्र प्रेरणा-स्रोत थे।
बहुराष्ट्रीय काॅरपोरेट-समूहों द्वारा बनाये गये सामानों के बहिष्कार और होलिकादहन से शुरू हुआ आज़ादी बचाओ आन्दोलन डाॅ. शर्मा के नेतृत्व में उत्तरोत्तर आगे बढ़ता गया। देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कारोबारी अड्डों और उत्पादन-संयन्त्रों की नाकेबन्दी से शुरू हुआ आन्दोलन तृणमूल स्तर पर पहुँच गया है और वह सामुदायिक संसाधन-स्वराज के लिए कृतसंकल्प है। इस लड़ाई का मूलबिन्दु होगा–वैश्विक काॅरपोरेट महाबलियों द्वारा किये जा रहे पुनरौपनिवेशीकरण के खिलाफ शान्तिपूर्ण ढंग से सामूहिक सविनय अवज्ञा (सिविल नाफरमानी)। स्वराज-संरचना का नाभिक है– प्रकृति-प्रदत्त समस्त संसाधन स्थानीय जन-समुदायों के हैं।
डाॅ. शर्मा जैसे आन्दोलनकारी को सिर्फ़ शब्दों द्वारा श्रद्धांजलि देना बेमानी होगा। काॅरपोरेट-नीत बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के स्थान पर जनगण-नीत पूर्ण स्वराज की स्थापना की लड़ाई को जारी रखने और उसे आखि़री मुकाम तक पहुँचाने के लिए हम सतत आगे बढ़ते रहें– यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आइये, इस समर-संकल्प के साथ हम अनवरत चलते रहें। महात्मा गाँधी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण और अमर आन्दोलनकारी प्रो. बनवारी लाल शर्मा के विचार, प्रयोग, संघर्ष और रचनाकर्म हमारा मार्गदर्शन करने के लिए हैं ही लेकिन उन्हें हमें जड़रूप में नहीं वरन् गत्यात्मकता के साथ अंगीकार करना होगा।
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