
लद्दाख में नौजवानों का गुस्सा सड़कों पर है. वे अपनी बेहतरी केलिए संघर्ष कर रहे हैं. सोनम वांगचुक उनके हीरो हैं. उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर के जोधपुर जेल में रखा गया है. 59 वर्षीय वांगचुक मैग्ससे पुरस्कार से सम्मानित हैं. उन्होंने इंजीनियरिंग की पढाई की है. सरकारी स्कूलों में सुधार लाने और पर्यावरण को ठीक रखने केलिए वह पिछले लम्बे समय से काम करते रहे हैं. बौद्ध धर्मावलम्बी वांगचुक गांधी से बहुत प्रभावित हैं. तबियत से शांत और अहिंसक, जो प्रायः लद्दाख के लोग होते हैं. वे सच्चे गांधीवादी नायक हैं.
पिछले 10 सितम्बर से अपने चार सूत्री मांगों को लेकर वह भूख हड़ताल पर हैं. उनकी मांगें हैं –
उत्तरपूर्व के राज्यों की तरह संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वशासन देना.
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देना,
वहाँ लद्दाख पब्लिक सर्विस कमीशन बनाना और
लद्दाख से एक की जगह दो संसद सदस्य की सीटें बनाना.
इन में से कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर बात नहीं हो सकती. इस पर बात करनी चाहिए. उनकी मांगों को समझना चाहिए. वे सीधे और शांत लोग हैँ तो इसका मतलब यह नहीं कि उनकी अनसुनी की जाय.
लद्दाख का बड़ा हिस्सा चीन ने अपने कब्जे में रखा हुआ है. यही वह इलाका था जिसकी हजारों वर्गमील भूमि 1962 में चीन ने हड़प लिया था. यह पुराने कश्मीर का हिस्सा है जिसके पांच इलाके थे. जम्मू, कश्मीर और लद्दाख भारत में हैं. गिलगिट और बालटिस्तान पर पाकिस्तान ने कब्ज़ा जमाया हुआ है. ऐसी स्थिति में लद्दाख की अहमियत को समझा जाना चाहिए.
2019 में लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग कर के केंद्र शासित राज्य बना दिया गया. भारतीय जनता पार्टी ने लद्दाख के समग्र विकास का वायदा किया था. अब भाजपा चुप्पी साध कर बैठ गई है. गुस्से में नौजवानों ने लद्दाख के बीजेपी दफ्तर को तोड़- फोड़ दिया. यह कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसका उनसे बदला लिया जाय. उनके गुस्से को समझा जाना चाहिए. उनके प्रदर्शन वहाँ बढे हुए लोकतान्त्रिक भाव का भी सबूत दे रहे हैं.
लद्दाख आकार में बड़ा और आबादी में छोटा प्रदेश है. मेरे जानते तीन लाख से कम की आबादी है वहाँ. लेकिन वह हमारा शीर्ष प्रदेश है. हमारा गौरव है. लोहिया जी के राजनीतिक एजेण्डे में हिमालय बचाओ होता था. आज कोई नेता इस सांस्कृतिक बोध का नहीं है. लोहिया होते तो वह लद्दाख के नौजवानों के साथ होते. वहाँ केंद्र सरकार की पुलिस द्वारा गोली चलाई गई है जिसमें कमसे कम चार मारे गए और कोई सत्तर लोग घायल हैं. वहाँ सीधे केंद्र सरकार की हुकूमत है. इसलिए जिम्मेदार गृह मंत्री हैं. दुर्भाग्य है कि आज उनसे इस्तीफे की मांग करने वाला कोई राजनेता नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी पता नहीं क्या कर रहे हैं. उन्हें वहाँ जाना चाहिए. लोगों से मिल कर वहाँ शान्ति स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए. सुना है वहाँ के किसी पुलिस अधिकारी ने सोनम वांगचुक पर देशद्रोह का शक किया है. सोनम वांगचुक को पूरा भारत जानता है. वे केवल लद्दाख के नहीं, पूरे भारत के हीरो हैं.
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
















