(मई 1918 में जनमे सीताराम सिंह 1942 की अगस्त क्रांति के अग्रणी सेनानियों में थे। आजादी के बाद वह लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े और किसानों-मजदूरों-छात्रों के हकों की लड़ाई लड़ते हुए अनेक बार जेल गए। 1974 के बिहार आंदोलन में भी सक्रिय हिस्सेदारी की। 1970 से 1976 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। शतायु होकर देह छोड़ी। उन्होंने जेपी से अपनी अंतिम मुलाकात का यह संस्मरण ‘सामयिक वार्ता’ के मई 2013 के अंक में लिखा था।)
आपातकाल की समाप्ति के बाद वैशाली जिला के मुख्यालय हाजीपुर में एक महती सभा का आयोजन किया गया था। इस सभा को संबोधित करने के लिए जेपी यहां आए थे। जेपी द्वारा संचालित संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान बिदुपुर प्रखंड पर प्रदर्शन के क्रम में हमारे वरीय साथी अमीर सिंह (गुरुजी) के पुत्र अजीत और विशेश्वर जो उस समय छात्र थे, पुलिस की गोली से शहीद हो गए थे। उनके परिवार को सांत्वना देने के लिए हमारे साथियों ने मुझ पर जिम्मेदारी सौंपी कि आप जेपी को गुरुजी के घर ले जाइए। जेपी वहां पहुंचे, एक घंटा रुके, ढाढ़स दिलाकर वहां से लौटे। जिस गाड़ी में जेपी गुरुजी के घर गए थे, उस गाड़ी में मात्र तीन आदमी ही थे- जेपी, मैं और ड्राइवर। रास्ते में बातचीत के सिलसिले में मैंने जेपी से पूछा कि अब तो आपका संपूर्ण क्रांति का आंदोलन सफल हुआ, भविष्य में क्या करना है- मार्गदर्शन दीजिए।
जेपी भारी मन से बोले- हम विफल हो गए। व्यवस्था परिवर्तन के लिए आंदोलन किया था, हुआ सत्ता परिवर्तन। जिस तरह गांधी के तथाकथित अनुयायियों ने गांधी की जिंदगी में ही उन्हें नकार दिया था, उसी तरह संपूर्ण क्रांति के वाहकों ने मुझे भी नकार दिया है।
जेपी ने एक बयान के जरिए मोरारजी भाई से कहा था कि चुनाव घोषणापत्र में जो वादा किया है, उसे पूरा करो। मोरारजी ने पलटवार करके कहा कि सरकार हमको चलाना है। कोई जरूरी नहीं कि हम सभी वादे पूरा करें और जेपी की बातें मान लें।
उसी तरह की एक दूसरी घटना बिहार की भी है। बिहार में कोई आंदोलन हुआ था। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर थे। जेपी ने समाचार पत्रों के माध्यम से कर्पूरी ठाकुर को कुछ सुझाव दिए थे। ठीक मोरारजी भाई की तरह ठाकुर ने भी जवाब दिया था- सरकार हमको चलाना है। जयप्रकाश जी की सभी बातें मानना कोई जरूरी नहीं है। पुनः मैंने मार्गदर्शन वाली बात दुहराई। उन्होंने दुखी मन से कहा- अब मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूं। तुम लोग युवा हो, धीरज और साहस हो तो जन चेतना जगाओ, लोगों को गोलबंद करो। जब जनता रोड पर आएगी, तभी व्यवस्था में बदलाव आएगा।
लोकतंत्र के बारे में क्या पूछते हो, यहां राजनीतिक समानता है, लेकिन आर्थिक विषमता है। बड़ा उद्योगपति, पूंजीपति, बड़ा राजनेता, बड़ा नौकरशाह तीनों का गठजोड़ है।
उस जाल में लोकतंत्र फंस गया है, उसकी रूह छटपटा रही है। जिस तरह बहेलिया चिड़ियों को फंसा लेता है, हाथ-पैर तो वह मारती है, पर जाल से निकल नहीं पाती, रूह छटपटाती रहती है। संसद तो अय्याशी का अड्डा बन गई है, इसमें परिवर्तन संभव नहीं।
एक ही उपाय है – जनता को जगाना .. सरकार उसी के दबाव में कुछ करेगी . गांधी निराश हुए , जे पी निराश हुए – और जनता उसी में मगन रही ..