12 नवंबर। पंजाब विधानसभा ने मोदी सरकार के बनाये तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ गुरुवार को प्रस्ताव पारित कर दिया। जाहिर है, उपर्युक्त कानूनों को रद्द कराने की दिशा में किसान आंदोलन कुछ कदम और आगे बढ़ा है।
पंजाब विधानसभा में तीनों कृषि कानूनों को खारिज करने का प्रस्ताव राज्य के कृषिमंत्री रनदीप सिंह नाभा ने पेश किया। नाभा ने कहा कि समवर्ती सूची में प्रावधान 33 व्यापार और वाणिज्य से ताल्लुक रखता है, लेकिन कृषि न तो व्यापार है और न ही वाणिज्य। किसान व्यापार नहीं करता, वह उत्पादक है जो एपीएमसी में एमएसपी पर अपनी पैदावार बेचता है। लिहाजा समवर्ती सूची के प्रावधान 33 का सहारा लेकर केंद्र ने जो कानून बनाए हैं उन्हें बनाने का उसे अधिकार ही नहीं है। यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र में बेजा दखल है। मोदी सरकार जो काम सीधे नहीं कर सकती थी उसे वह राज्यों के अधिकार क्षेत्र में सेंधमारी करके कर रही है।
नाभा ने यह भी कहा कि एपीएमसी यानी कृषि उपज मंडी समितियां कानूनी प्रावधान से वजूद में आयी हैं। इनका कानूनी आधार है।
विधानसभा में बहस के दौरान जहां पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने शिरोमणि अकाली दल पर आरोप लगाया कि बादल सरकार के समय ठेका खेती कानून, 2013 बनाकर उसी ने शुरुआत की थी, वहीं आम आदमी पार्टी ने भी अकाली दल पर निशाना साधा, यह कहते हुए कि जब तीनों कृषि कानून बन रहे थे, अकाली दल बीजेपी के साथ था, अकाली दल ने तब जाकर बीजेपी का साथ छोड़ा जब किसानों के आंदोलन के कारण उसे राजनीतिक नुकसान का डर सताने लगा।
तीनों कृषि कानूनों को तमाम किसान संगठन काले कानून कहते हैं। इन कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बार्डरों पर किसानों का धरना पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ था और कुछ ही दिनों में इसको एक साल हो जाएगा। पंजाब में तो यह आंदोलन और भी पहले शुरू हो गया था। पंजाब विधानसभा में तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित होना किसान आंदोलन के प्रभाव को ही दर्शाता है।
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