भारतीय राजनीति के दधीचि थे सुरेन्द्र मोहन : तीसरी किस्त

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— डॉ सुनीलम —

सोशलिस्ट फ्रंट में मैं लगातार सुरेंद्र मोहन जी का साथ देता था। हमारी यात्रा के बाद पूना में सोशलिस्ट फ्रंट की बैठक हुई। तब उन्होंने पार्टी के गठन की बात कही, मैंने कहा कि इस बात का विश्लेषण किया जाना चाहिए कि 10 वर्षों तक समाजवादी जन परिषद टेक ऑफ क्यों नहीं कर पायी? फिर उन कमियों को दूर करके ही पार्टी खड़ी की जानी चाहिए। सुरेंद्र मोहन जी ने कहा कि हमें अवसर देना चाहिए। एक दिन आश्चर्यजनक तौर पर सुरेंद्र मोहन जी ने मुझसे कहा कि मैं आपसे बात करना चाहता हूँ, मेरे लिए यह अप्रत्याशित था। वीपी हाउस के रेस्टोरेंट में हम साथ बैठे। वहाँ उन्होंने कहा कि पार्टी बनानी है, मैंने कहा कि बनाइए लेकिन मेरा शामिल होना संभव नहीं होगा।

असल में सुरेंद्र मोहन जी ने मुझे नयी पार्टी का गठन करनेवाली कमेटी में जब पुणे में रखा था, तभी मैंने कहा था कि मैं समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय सचिव रहते हुए यह काम नहीं कर सकता। नयी पार्टी का गठन करने की कमेटी में रहना अनैतिक होगा। मैंने कहा कि यदि एचएमएस और राष्ट्र सेवा दल सिद्धांततः यह स्वीकार कर लें कि अनौपचारिक तौर पर वे नवगठित पार्टी का सहयोग करेंगे तब मैं पार्टी के गठन में बढ़-चढ़कर सहयोग कर सकता हूँ।

हम एचएमएस कार्यालय भी गये। एचएमएस तथा राष्ट्र सेवा दल का रुख एकदम स्पष्ट था। हम किसी भी पार्टी के साथ सम्बद्ध नहीं हो सकते। हमने 75 वर्षों तक अपने संगठन को पार्टियों से अलग और ऊपर रखा है, इस नीति में तब्दीली नहीं हो सकती है। हालाँकि हमारा रिश्ता दोस्ताना जैसे अब तक रहा समाजवादियों के साथ में, वही रहेगा, पार्टी के साथ भी रहेगा। कुल मिलाकर बात आगे नहीं बढ़ी।

सुरेंद्र मोहन जी हमारे युवा प्रशिक्षण शिविरों में नियमित आया करते थे। युवाओं को ग्रामोद्योग, समाजवादी आंदोलन के बारे में प्रशिक्षण दिया करते थे। युवाओं से इंटरैक्ट करने में लगातार रुचि लेते थे। सुरेंद्र मोहन जी के माध्यम से ही मै जी.जी. परीख जी के संपर्क में आया तथा उनसे घनिष्ठता बढ़ी। सुरेंद्र मोहन जी हमारे परिवार के बुजुर्ग मार्गदर्शक के तौर पर रहे। वे वंदना से लगातार संपर्क में रहते थे। परिवार का सुख-दुख बाँटा करते थे। बेटे शाश्वत के साथ तो उनका बहुत ही घनिष्ठ रिश्ता था। वह उन्हें दादाजी कहता था। वीपी हाउस में शाश्वत के साथ घंटों खेला करते थे। हम सबको आश्चर्य होता था कि शाश्वत के साथ उनकी ढिशुम ढिशुम चालू रहती थी। मैंने अपने जीवन में तमाम फैसले सुरेंद्र मोहन जी के साथ परामर्श करने के  बाद किये। उसमें से वंदना जी के साथ शादी करना भी एक महत्त्वपूर्ण फैसला था।

वंदना की बहन विनय भारद्वाज जी महिला दक्षता समिति में सक्रिय थी और सुरेंद्र मोहन जी के साथ संपर्क में थी। विनय भारद्वाज जी ने सुरेंद्र मोहन जी के घर पर ही मुझे सबसे पहले वंदना जी के बारे में बताया था, शास्त्री भवन में मुलाकात करवायी थी। मुझे याद है, मैंने किसान मजदूर आदिवासी क्रांति दल का गठन सुरेंद्र मोहन जी के परामर्श के बाद ही किया था। मुलताई में गोलीचालन के बाद जब चुनाव हुआ, तब मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं था लेकिन सुरेंद्र मोहन जी ने मुझे तैयार किया था। साधनों के इंतजाम का आश्वासन देकर किसान महापंचायत चिखली कला में मेधा पाटकर जी और बीडी शर्मा जी की उपस्थिति में चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। मैंने कहा था कि मेरे पास ना तो जातिगत आधार है, ना पैसा है ना गुंडे हैं न शराब बाँटने में मेरा विश्वास है, इस कारण मैं चुनाव नहीं लडूँगा। लेकिन किसानों के आग्रह पर यह फैसला हो गया।

सुरेंद्र मोहन जी ने देवेगौड़ा जी से मिलकर 4 लाख की आर्थिक मदद का इंतजाम किया। मुझे नहीं लगता है कि मैं बिना सुरेंद्र मोहन जी की आर्थिक मदद से चुनाव लड़कर जीत सकता था। लेकिन कमाल की बात यह है कि उन्होंने कभी भी मुझसे इस बात का उल्लेख ही नहीं किया।  दूसरी बार जब चुनाव लड़ने की बात आयी, तब हमारे 25 साथी मध्यप्रदेश में अलग-अलग जगह चुनाव लड़ना चाहते थे। हमारे पास चुनाव लड़ने के लिए साधन नहीं था। पूर्व विधायक गौरीशंकर शुक्ला जी बार-बार आग्रह कर रहे थे कि हमें मुलायम सिंह यादव जी से बात करना चाहिए। तब मैंने सुरेंद्र मोहन जी से पूछा उन्होंने कहा कि जरूर बात करना चाहिए, उन्होंने कहा मुलायम सिंह यादव के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। समाजवादी पार्टी में क्रांति दल का विलय कर देना चाहिए।

हमने यही किया, भोपाल में कार्यक्रम आयोजित कर क्रांति दल का विलय समाजवादी पार्टी में कर दिया। उस कार्यक्रम में मुलायम सिंह जी के अलावा जनेश्वर मिश्र जी भी मौजूद थे।  सुरेंद्र मोहन जी कमाल के व्यक्ति थेवीपी सिंह जी चाहते थे कि उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया जाए लेकिन सुरेंद्र मोहन जी ने कहा कि सामाजिक न्याय के आंदोलन को ताकत देने के लिए किसी पिछड़े वर्ग के साथी या अल्पसंख्यक वर्ग के साथी को राज्यसभा की सदस्यता दी जानी चाहिए, ऐसा ही हुआ।

यह दुखद है कि जिस तरह जॉर्ज फर्नांडिस के विचारों को आगे बढ़ानेवाली कोई पार्टी नहीं है, उसी तरह सुरेंद्र मोहन जी की विरासत को आगे ले जानेवाली कोई ताकत दिखलाई नहीं देती, जैसे एक जमाने में सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी या जनता दल था। हाँ, सोशलिस्ट पार्टी इंडिया का गठन करके वे गये हैं। पुराने समाजवादियों को जोड़ने का प्रयास वे जोरशोर से कर रहे हैं। बिहार के राजगीर में 7- 8 नवंबर का उत्तर भारत का राष्ट्र सेवा दल का सम्मेलन भी उन्हीं की स्मृति को समर्पित रहा। सुरेंद्र मोहन  जी के नाम से वहाँ पर नगर भी बनाया गया था।

सुरेंद्र मोहन जी के विचारों और आचरण से में प्रेरणा लेता रहा हूँ। लेता रहूँगा।

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