— रमाशंकर सिंह —
राजघाट दिल्ली में एक प्रधानमंत्री के बहुत नजदीक पहुँच कर छिप कर मारने के उद्देश्य से गोलियॉं चलीं पर भारत का वह प्रधानमंत्री पूरे कार्यक्रम में पूरी गरिमा और बगैर घबराहट के उपस्थित रहा।
जब पत्रकारों ने पूछा तो किस सौम्यता से सहज जवाब दिये, कोई नौटंकी नहीं, कोई प्रत्यारोप नहीं! कहीं हवन यज्ञ नहीं, कहीं महामृत्युंजय का पाठ नहीं।
इसी देश ने ऐसे भी प्रधानमंत्री देखे हैं !
लड़कपन में हम कुछ सोशलिस्ट युवजन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सभाओं में मंच तक पहुँच कर नारेबाजी करते थे, पुलिस पकड़ कर ले जाती थी; सभा के बाद छोड़ देती थी। एक बार दिल्ली विवि के दीक्षांत में समारोह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंच पर चढ़ कर उन्हीं के माइक से ही तत्कालीन युवा नेता राजकुमार जैन ने हंगामा कर दिया। नीचे मात्र हम चार लोग नारेबाजी करते रहे। पुलिस पकड़ लेती, बाद में छोड़ देती!
एक बार 1978 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से समाजवादी युवजनों ने समय लेकर उनके लोहिया विरोधी बयान पर विरोध दर्ज किया और वहीं बहस हो गयी। प्रधानमंत्री और प्रतिनिधिमंडल में जोर-जोर से कटु बातें हो गयीं। प्रधानमंत्री की जान खतरे में नहीं आयी! न ही कोई गिरफ्तार ही किया गया।
प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ग्वालियर की आमसभा में बोलने खड़े हुए कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने दूर से पत्थर फेंके, नारेबाजी करनी शुरू कर दी। दोनों पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच हल्की कहासुनी वह मारपीट हुई पर कोई गिरफ्तार तक न हुआ। हवाई अड्डे पहुँच कर चौधरी साहब ने यह नहीं कहा कि जान बचाकर लौट आया। यदि कह देते तो पश्चिमी उप्र, हरियाणा, राजस्थान में किसी भाजपा नेता की सभा न हो पाती !
अब एक किमी दूर अहिंसक किसान सड़क पर पूर्वघोषित कार्यक्रम के अनुसार बगैर यह जाने कि प्रधानमंत्री अब इसी रास्ते से आ रहे हैं बैठे हुए थे। कोई किसान प्रधानमंत्री को दिखा भी नहीं, सिवाय उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं के। कोई कंकड़ तक नहीं फिंका प्रधानमंत्री की ओर, और हवाई अड्डे पहुँच कर “जान बचाकर लौट आया”!