17 जनवरी। 13 जनवरी 1948 के दिन महात्मा गांधी ने अपने जीवन का अंतिम उपवास किया जो उस वक्त की हिंसा और नफरत के माहौल के खिलाफ शांति बहाल करने की पुकार थी। उनके उपवास के दौरान सर्वधर्म प्रार्थना सभा में गीता, कुरान और गुरु ग्रन्थ साहिब पढ़े जाते, वैष्णव जन और ईश्वर अल्लाह तेरो नाम जैसे भजन गाए जाते, लोग बिड़ला भवन में इकट्ठे होते। लोगों ने हिंसा में सहभागी न होने का वचन दिया और शांति स्थापित हुई। गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि नफरत और हिंसा ने धर्म की आत्मा को नष्ट कर दिया है और प्यार और अहिंसा ही धर्म की आत्मा हैं और यही एकमात्र तरीका है जो इस दुनिया में शांति फैला सकता है।
गांधीजी के अंतिम उपवास को याद करते हुए, नफरत और हिंसा के खिलाफ खुदाई खिदमतगार लीडर फैसल ख़ान और कृपाल सिंह मंडलोई 13 जनवरी से 18 तक उपवास कर रहे हैं। 13 जनवरी को राजघाट और मज़ार मौलाना अबुल कलम जाकर श्रद्धांजलि के बाद उपवास शुरू हुए उपवास के पांचवें दिन भी देश भर से युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समर्थन दिया। सोमवार को पांचवें दिन प्रोफेसर विपिन त्रिपाठी (सद्भावना मिशन), महिला अधिकार कार्यकर्ता ख़दीजा फारुकी, पीस एक्टिविस्ट राहुल कपूर आदि प्रमुख लोगों ने ‘सबका घर’ पहुंचकर समर्थन दिया। उपवास कर रहे दोनों साथियों का स्वास्थ्य फिलहाल ठीक है। उपवास स्थल ‘सबका घर’ पर विभिन्न धर्मों से पाठ भी चल रहा हैl
आज 18 जनवरी को 3 बजे उपवास के अंतिम दिन महात्मा गाँधी की प्रपौत्री तारा गाँधी और स्वामी नारायण दास (वृन्दावन) की मौजूदगी में उपवास समाप्त किया जाएगा। कोरोना काल के मद्देनजर उपवास स्थल पर लोगों के आने पर नियंत्रण है, पर सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं, छात्रों से उपवास को समर्थन ऑनलाइन लगातार मिल है रहा है।
– सोशलिस्ट पार्टी इंडिया