अनुशासन के नाम पर यातना पर्व

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— जयराम शुक्ल — आपातकाल पर मेरे दो नजरिए हैं, एक- जो मैंने देखा, दूसरा- जो मैंने पढ़ा और सुना। चलिए पहले से शुरू करते हैं। वो स्कूली...

अर्थी को कंधा भी नसीब नहीं

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— प्रो. राजकुमार जैन — कोरोना की महामारी से हो रही मौतों के खौफ़ के कारण पुरानी कहावतें भी बेमतलब हो गई हैं। बचपन से...

हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या इतने कमजोर हैं!

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— शिवानंद तिवारी — बिहार आंदोलन के दरमियान पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश जी की सभा होने वाली थी। तारीख का स्मरण नहीं है।...

आपातकाल को भूल नहीं सकते

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— रामबाबू अग्रवाल — आजाद भारत के इतिहास में 25 जून की तारीख अहम है। इसी दिन यानी 25 जून 1975 को स्वतंत्र भारत के...

विंध्य का वह संघर्ष

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— जयराम शुक्ल — विन्ध्यप्रदेश आज जिंदा होता तो बीते अप्रैल की चार तारीख उसका 73वाँ स्थापना दिवस मनाया गया होता। अब सिर्फ स्मरण का...

शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर

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— राजेश प्रसाद — - गुरुदेव, अयोध्या में चल रही भूमि-लीला समझ में नहीं आ रही है! अत्यंत चिंतित हूं। - हे वत्स, जिसका चित्त प्रभु...

केनेथ कौंडा के बगैर

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— अनिल नौरिया — बीसवीं शताब्दी के एक दिग्गज केनेथ कौंडा नहीं रहे। उनकी गिनती अफ्रीकी मुक्ति संघर्ष के पहली पांत के नेताओं में होती...

आँखों देखा दिल्ली-6 का नज़ारा

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— प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन — दिसंबर की रात के 12 बजे, हाड़ कंपकंपाती सर्दी, कड़कती हुई बिजली, घनघोर बारिश के बीच कम्बल ओढ़े, एक हाथ...

जाति कब टूटेगी

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— संजय कनोजिया — एक समय था जब दकियानूसी तथा पाखंड व अन्धविश्वास से सनी प्रथाओं के बारे में लोग कहते थे कि सती-प्रथा कभी...

पत्रकारिता की बलि चढ़ाता मीडिया

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— शैलेन्द्र चौहान — इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का काम यह होना चाहिए था कि वह लोगों को जागरूक करे किन्तु टीआरपी के चलते समाचार चैनल इन दिनों...