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डीएपी के बढ़े दाम वापस होना किसानों की जीत – किसान मोर्चा

by Rajendra Rajan
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20 मई। संयुक्त किसान मोर्चा ने डीएपी का रेट वापस 1200 करने के फैसले को किसानों की जीत करार दिया है। ऐसे समय जब किसान चारों तरफ से मार झेल रहे हैं, दिल्ली की सीमाओं सहित देश के अन्य हिस्सों में किसान 6 महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, तब पिछले महीने सरकार ने डीएपी की कीमत बढ़ाने का फैसला किया था। किसानों के भारी दबाव के चलते यह दाम वापस तो कर दिए परंतु डीएपी का मूल मुख्य 2400 हो गया है। सरकार किसी भी समय सबसिडी हटा सकती है जिससे सारा भार किसानों पर आएगा।

सरकार ने कल के फैसले को किसानों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला बताते हुए किसान कल्याण का दावा किया। लेकिन हकीकत क्या है? डीएपी का बैग एक महीना पहले किसान के लिए 1200 ₹ में मिलता था जब उसका असल मूल्य 1700 ₹ था। एक महीना पहले जिस डीएपी बैग का मूल्य 1700 ₹ से बढ़ाकर 2400 ₹ कर दिया और उसमें 1200 ₹ सबसिडी करके डीएपी का मूल्य वही 1200 ₹ ही रखा है। यहां किसान को तो कुछ भी नया नहीं मिला है। किसान की सबसिडी के नाम पर फर्टिलाइजर कम्पनी को प्रति बैग पर सबसिडी 500 रु से बढ़ाकर 1200 रु प्रति बैग कर दी है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि सरकार इस फैसले को बहुत जोर-शोर से दिखाकर इसे भी उपलब्धि बता रही है। यह सिर्फ मीडिया हैडलाइन के लिए किए गए फैसले हैं। धरातल पर किसानों के जीवन मे कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आएगा।

सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने खाद के दाम बढ़ाये हैं। सयुंक्त किसान मोर्चा ने यह सवाल उठाया है कि मोदी सरकार बार-बार आत्मनिर्भर भारत का नाम क्यों लेती है। इससे पहले भी मेक इन इंडिया का प्रचार क्यों करती थी, जब देश की अपनी सरकारी व घरेलू संस्थाएं भी खाद बनाने में सक्षम नहीं हैं? सरकार आत्मनिर्भर भारत के नारे को सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है, वहीं देश में कृषि सेक्टर के सरकारी संस्थानों को लगातार घाटे में रखकर बंद करने पर मजबूर किया जा रहा है। इसकी आड़ में बड़े कॉर्पोरेट्स को उत्पादन का एकाधिकार देकर किसानों का शोषण करने की नीति है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि अगर तीन नए कृषि कानून लागू होते हैं व एमएसपी की कानूनी गांरटी नहीं मिलती तो डीएपी के ये भाव भी किसानों को बहुत नुकसान करेंगे। सरकार को कृषि लागत में कमी करनी चाहिए चाहिए व पूरी पारदर्शिता के साथ एमएसपी की गणना होनी चाहिए। यह सब एमएसपी पर कानून बनने से व्यवस्थित रूप में होगा इसलिए किसान एमएसपी के कानून की मांग कर रहे हैं।

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