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राहुकाल से लोकतंत्र के निकलने की शेषकथा
— जयराम शुक्ल —
(तीसरी और अंतिम किस्त )
चाटुकारिता भी कभी-कभी इतिहास में सम्मान योग्य बन जाती है। आपातकाल के उत्तरार्ध में यही हुआ। देशभर से...
इमरजेन्सी में झटका इस्तेमाल किया गया था, अब हलाल किया जा...
पैंतालीस वर्ष पहले 25/26 जून 1975 की प्रायः मध्यरात्रि में भारत के राष्ट्रपति ने एक उद्घोषणा की, “संविधान के अनुच्छेद 352 के खंड (1)...
जब जेपी की हुंकार से सिंहासन हिल उठा
— जयराम शुक्ल —
कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ का नारा ‘इंदिरा इज इंडिया’ गली-कूचों तक गूँजने लगा। इसी बीच मध्यप्रदेश में पीसी सेठी को...
अनुशासन के नाम पर यातना पर्व
— जयराम शुक्ल —
आपातकाल पर मेरे दो नजरिए हैं, एक- जो मैंने देखा, दूसरा- जो मैंने पढ़ा और सुना। चलिए पहले से शुरू करते हैं। वो स्कूली...
छियालीस साल पहले का अनुभव और आज का अघोषित आपातकाल
— डॉ सुरेश खैरनार —
छियालिस साल पहले 26 जून को एक घोषित आपातकाल लगा था। लेकिन पिछले सात साल से भी ज्यादा समय से अघोषित आपातकाल बदस्तूर...
क्या हमारी दूसरी आजादी कायम है?
— अनिल सिन्हा —
आपातकाल को लेकर मौजूदा पीढ़ी को ज्यादा मालूम नहीं है। इसने भारतीय लोकतंत्र को एक नहीं भूलने लायक झटका दिया था।...
यह तो सुपर आपातकाल है – डॉ सुनीलम
देश आपातकाल से गुजर रहा है। इससे देश के आम नागरिक सहमत हैं क्योंकि वे इसे भुगत रहे हैं। लेकिन मोदीभक्त और गोदी मीडिया...
हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या इतने कमजोर हैं!
— शिवानंद तिवारी —
बिहार आंदोलन के दरमियान पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश जी की सभा होने वाली थी। तारीख का स्मरण नहीं है।...
भय और लालच से आती है गुलामी
— अरुण कुमार त्रिपाठी —
आज 46 साल बाद यह कहना और देखना सुखद है कि देश में दोबारा आपातकाल लागू नहीं हुआ। वह 21...