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Poem by Keyur Pathak
Tag: Poem by Keyur Pathak
कविता
केयूर पाठक की कविता
May 14, 2025
0
खेत हरे-भरे खेत और खलिहान फिर से लगते हैं लहलहाने बाढ़ और अकाल के बाद, चंद दिनों की तबाही इन्हें बंजर नहीं बना पाती, ये उगाते हैं पहले झाड-झंखार और घास और...
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यह घोर मजदूर-विरोधी व्यवस्था है