Tag: Poem by Keyur Pathak
केयूर पाठक की कविता
खेत
हरे-भरे खेत
और खलिहान
फिर से लगते हैं लहलहाने
बाढ़ और अकाल के बाद,
चंद दिनों की तबाही इन्हें
बंजर नहीं बना पाती,
ये उगाते हैं
पहले झाड-झंखार और घास
और...











