Tag: Premchand
तुलसीदास, गांधी और प्रेमचंद
— शेष नारायण सिंह —
गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में रामराज्य की जो बात की है वह वास्तव में किसी भी वेलफेयर स्टेट...
प्रेमचंद का उपन्यास ’रंगभूमि’
— शंभू नाथ —
प्रेमचंद के उपन्यास ’रंगभूमि’ के सौ साल होने पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जो कहा :
1) 1925 से 2024 तक के इन...
प्रेमचंद सच्ची राष्ट्रीयता के लिए समतामूलक समाज को अनिवार्य मानते थे
— गोपेश्वर सिंह —
(दूसरी किस्त)
भारत का विशाल भू-भाग, शस्य श्यामला धरती और यहां की पुरानी अच्छी बातें उन्हें भाती हैं। इस अर्थ में वे सच्चे देश-प्रेमी हैं। इसलिए वे औपनिवेशिक गुलामी...
प्रेमचंद की नजर में राष्ट्र
— गोपेश्वर सिंह —
रामविलास शर्मा ने 1936 ई. को इस अर्थ में विशिष्ट माना है कि इस वर्ष तीन ऐसी रचनाएँ प्रकाशित हुईं जिनमें भविष्य के भारत का सपना था। इनमें पहली...
राज्यवाद और साम्राज्यवाद
— प्रेमचंद —
(प्रेमचंद का यह लेख 18 मार्च 1928 के ‘स्वदेश’ में धनपत राय के नाम से छपा था )
पुराना जमाना राज्यवाद का था, यह...















