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समाजवाद : दृष्टि परीक्षा

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— कृष्णाथ — "क्यों जिन्दगी चलते-चलते यकायक मौत की तरह लगने लगती है?" - विजयदेव नारायण साही नदी के उद्‌गम की तरह, शब्द का उद्गम भी धुन्ध...

प्रोफेसर रमेश तिवारी जी को याद करते हुए भारत तिब्बत मैत्री...

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— रणधीर गौतम — प्रोफेसर आनंद कुमार जी ने प्रोफेसर रमेश तिवारी जी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी लंबी जीवन यात्रा में...

मार्क्सवाद और समाजवाद : पाँचवीं किस्त

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— राममनोहर लोहिया — अब हम विकास के उन नियमों पर विचार करेंगे जो स्वतः चालित नहीं हैं। भारत के तुलनात्मक आँकड़ों के अध्ययन से...

मार्क्सवाद और समाजवाद

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— डॉ. राममनोहर लोहिया — किसी पंथ या विचारधारा पर विचार करते समय आमतौर पर हमारी नजर अंतिम लक्ष्य पर जाती है। मार्क्सवाद के भी...

बाजारवाद का अधूरा विरोध

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— राजकिशोर — भारत में बाजार व्यवस्था के दुष्परिणाम जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं, उसके विरोधियों की संख्या बढ़ती जा रही है। सभ्यता के इतिहास...

इक्कीसवीं सदी में समाजवाद

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— बगाराम तुलपुले — करीब डेढ़ सदी पहले कार्ल मार्क्स ने कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो (साम्यवाद का घोषणापत्र) में एक वर्गविहीन, शोषणमुक्त, समता पर आधारित समाज व्यवस्था...

जयप्रकाश नारायण का नायकत्व – आनंद कुमार

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मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से  मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है... फिर भी...

समाजवाद का कंटकाकीर्ण मार्ग

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— संजय गौतम — समाजवाद की संभावना’ प्रख्‍यात समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्‍हा के ऐसे लेखों का संग्रह है, जिनमें आधुनिक सभ्‍यता के वैचारिक प्रस्‍थान बिंदुओं की चर्चा...

ऐसे थे लोहिया

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— बृजमोहन तूफान — लोहिया जी से मेरी मुलाकात 1946 में जेल से छूटने के बाद दिल्ली में हुई। हम कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के मेंबर...

इक्कीसवीं सदी का कुजात लोहियावाद

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योगेन्द्र यादव लोहिया ने अपने-आपको ‘कुजात गांधीवादी’ कहा था। इस बहाने ‘सरकारी’ और ‘मठी’ गांधीवादियों की तीखी आलोचना की थी। साथ-ही-साथ गांधीजी से अपने अनूठे...

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