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पर्यावरण कार्यकर्ता की रिहाई की मांग

by Rajendra Rajan
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समता मार्ग 

रायपुर। छत्तीसगढ़ में औद्योगिक और खनन परियोजनाओं का खमियाजा आदिवासयों को विस्थापन के रूप में दशकों से भुगतना पड़ रहा है। ये परियोजनाएं जंगलों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण और स्थानीय जल स्रोतों के विनाश का सबब भी बनती रही हैं। लेकिन आदिवासी समाज अब प्रतिरोध कर रहा है। छत्तीसगढ़ में नंदराज पहाड़ बचाओ आंदोलन भी इसका एक उदाहरण है। लेकिन इस तरह के प्रतिरोध को कुचलने में कांग्रेस की छत्तीसगढ़ सरकार भी भाजपा के नक्शेकदम पर चल रही है। नंदराज पहाड़ बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता हिड़मे मड़कम की गिरफ्तारी इस सिलसिले की ताजा कड़ी है।

गौरीलंकेश न्यूज डॉट कॉम के मुताबिक हिड़मे को 9 मार्च को बस्तर के सामेली से उस वक्त पुलिस ने उठा लिया, जब वह छत्तीसगढ़ की आदिवासी औरतों की हत्याओं और बलात्कार की घटनाओं पर विरोध-सभा में शिरकत कर रही थीं। बाद में पुलिस ने उन्हें इस तरह उठा लिये जाने को गिरफ्तारी का रूप दे दिया। हिड़मे तीन हफ्तों से जेल में हैं। उनकी गिरफ्तारी पर रोष जताते हुए अनेक नागरिकों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है और उनकी रिहाई की मांग की है। एक ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान भी हिड़मे की रिहाई के लिए चलाया जा रहा है।

हिड़मे का जेल में होना इस बात का एक और उदाहरण है कि आदिवासी इलाकों में खनिज और अन्य प्राकृतिक संपदा के दोहन के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों का राज्यतंत्र पर किस हद तक दबाव बढ़ गया है। हिड़मे का असल गुनाह यह है कि वह नंदराज पहाड़ को बचाने के लिए अडानी प्रा. लि. जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों के खिलाफ आदिवासियों के विरोध-प्रदर्शन आयोजित करने में आगे-आगे रही हैं। नंदराज पहाड़ को उस क्षेत्र के आदिवासी अपना देव मानते हैं। इलाके के जंगल और पहाड़ नष्ट हो जाएंगे तो उनका वजूद नहीं बचेगा, यह भावना उनमें गहराती जा रही है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लिखे गए नागरिकों के खुले पत्र में यह मांग की गई है कि हिड़मे को रिहा किया जाए, उन पर से यूएपीए समेत सभी आरोप वापस लिये जाएं। नक्सलवाद से निपटने के बहाने आदिवासियों पर अत्याचार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न बंद किया जाए। आदिवासियों के विस्थापन और पर्यावरण को संकट में डालने वाली परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए।

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