31 मार्च, नई दिल्ली। जय किसान आंदोलन द्वारा पिछले दो सप्ताह से एमएसपी लूट का लगातार खुलासा किए जाने का कुछ असर दिखने लगा है। इस खुलासे से घबराए कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर ने ‘एमएसपी थी एमएसपी है एमएसपी रहेगी’ के शीर्षक से एक विज्ञापन जारी किया है। इस विज्ञापन में उन्होंने दावा किया है कि सरकार ने इस सीजन में 29 मार्च तक 692 मिलियन टन (करोड़ क्विंटल) धान की सरकारी खरीद की है जो कि पिछले साल इसी अवधि में की गई सरकारी खरीद से 14 फीसद अधिक है। जबकि यह सिर्फ आधा सच है।
इस सरकारी अर्धसत्य का भंडाफोड़ करते हुए योगेंद्र यादव ने ध्यान दिलाया है कि यह सरकारी आंकड़ा तीन महत्त्वपूर्ण बातों को छुपाता है।
- इस साल आवक जल्दी होने की वजह से खरीद भी जल्दी हुई है और अब भी सरकार अपने ही 738 मिलियन टन के लक्ष्य से पीछे चल रही है। अधिक खरीद का दावा सीजन पूरा होने पर ही किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर अधिक खरीद का यह आंकड़ा केवल बिहार, मध्यप्रदेश और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में ज्यादा खरीद पर आधारित है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बंगाल, छत्तीसगढ़ और हरियाणा जैसे देश के अनेक राज्यों में पिछले वर्ष से काफी कम खरीद हुई है।
- धान की यह सरकारी खरीद देश में कुल धान के उत्पादन का सिर्फ 38 फीसद है। अगर सरकार 738 मिलियन टन खरीद के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर भी लेती है तब भी वह देश के कुल धान उत्पादन का 41 फीसद ही बनेगा। यानी कि किसी भी हाल में धान की फसल में देश के बहुसंख्यक किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिल रहा।
सरकारी आंकड़े एक बार फिर यह साबित करते हैं कि देश के अधिकांश किसानों के लिए एमएसपी कागज पर ही थी कागज पर ही है और सरकारी रवैये के चलते कागज पर ही रहेगी। इसलिए किसानों की मांग की उन्हें एमएसपी का कानूनी हक मिले।