5 अगस्त। किसान संसद ने अपनी कार्यवाही के 11वें दिन, लाभकारी एमएसपी पर विस्तृत विचार-विमर्श जारी रखा, जिसे सभी किसानों और सभी कृषि उपजों के लिए कानूनी अधिकार बनाया जाना था। गुरुवार को तीन प्रख्यात कृषि अर्थशास्त्री और नीति विश्लेषक थे जिन्होंने ‘सदन के अतिथि’ के रूप में भाग लिया – उनमें डॉ देविंदर शर्मा, डॉ रंजीत सिंह घुमन और डॉ सुचा सिंह गिल शामिल थे।
किसान संसद ने भारत सरकार द्वारा उत्पादन की लागत की गणना के संबंध में वर्तमान स्थिति पर चर्चा की, जिसमें कई लागतों को कम दिखाया जा रहा है, एक ऐसी प्रणाली में जो लागत अनुमानों पर पहुंचने के लिए उपयोग किए जाने वाले सर्वेक्षणों में सुधार के लिए बहुत अधिक गुंजाइश छोड़ देती है। किसान संसद के सदस्यों ने इस तथ्य की कड़ी निंदा की कि एमएसपी घोषणा के लिए मोदी सरकार द्वारा धोखे से गलत लागत अवधारणाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए सरकार C2+50% फॉर्मूले का इस्तेमाल करने के बजाय A2+ पारिवारिक श्रम फॉर्मूले का इस्तेमाल कर रही है। प्रतिभागियों ने यह भी बताया कि कई कृषि उत्पाद हैं जिनका कोई एमएसपी घोषित नहीं है, जबकि घोषित एमएसपी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के तंत्र के बिना अर्थहीन है।
किसान संसद ने भारत सरकार को तत्काल एक विधेयक पेश करने का निर्देश देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया जो लागत गणना, एमएसपी फॉर्मूला और गारंटीकृत एमएसपी संचालन के मामले में मौजूदा अन्याय को पूरी तरह से संबोधित करे। ऐसे कानून में सभी कृषि उपजों और सभी किसानों को शामिल किया जाना चाहिए। किसान संसद ने भारत सरकार को प्रत्येक राज्य में विभिन्न उपजों के लिए पिछले पांच वर्षों के सर्वोत्तम स्तर पर खरीद के स्तर की रक्षा और वृद्धि करने का भी निर्देश दिया।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) सांसदों को जारी ‘पीपुल्स व्हिप’ के संबंध में विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके सांसदों का संज्ञान ले रहा है। यह देखा गया है कि बीजद, टीआरएस, वाईएसआरसीपी, एआईएडीएमके, टीडीपी और जदयू जैसी पार्टियां विभिन्न विधेयकों पर बहस में भाग लेती रही हैं, या उन्होंने ‘पीपुल्स व्हिप’ की आवहेलना की है। एसकेएम उन्हें उनके जनविरोधी रुख के खिलाफ चेतावनी देता है, और सभी पार्टियों को पहले से जारी ‘पीपुल्स व्हिप’ के बारे में याद दिलाता है।
मोर्चा में शामिल होने और किसान संसद में भाग लेने के लिए विभिन्न राज्यों से किसानों की टुकड़ी दिल्ली पहुंच रही है। जहां पहले असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के प्रतिनिधियों की बारी थी, वहीं एआईकेएस तमिलनाडु से जुड़े 1000 किसानों का एक बड़ा दल आज दिल्ली पहुंचा। अखिल भारतीय संघर्ष को मजबूत करने के लिए ये किसान 7 दिन सिंघू बॉर्डर पर रहेंगे। इससे पहले इन तमिल किसानों ने नई दिल्ली स्टेशन से मार्च की योजना बनायी थी, जिसे दिल्ली पुलिस ने रोक दिया।
भाजपा नेताओं को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न राज्यों में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आज हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को रोहतक में काले झंडे समेत विरोध का सामना करना पड़ा। भारी पुलिस बल या बारिश से प्रदर्शनकारी किसान व्याकुल नहीं हुए। पंजाब के लुधियाना में, जहां भाजपा के राज्य कार्यकारी नेता अपने महिला मोर्चा के नेताओं के साथ एक होटल में एक बैठक के लिए एकत्र हुए थे, मंगलवार को बड़ी संख्या में किसान विरोध करने के लिए एकत्र हुए।
उत्तर प्रदेश में फैल रहे आंदोलन में, विरोध कर रहे किसानों ने भाजपा विधायक द्वारा एक सरकारी योजना का उद्घ़ाटन करने के खिलाफ मुरादाबाद जिला प्रशासन के माध्यम से राज्यपाल को एक औपचारिक ज्ञापन भेजा है जिसमें चेतावनी दी गई है कि यदि अधिकारी भाजपा नेता को नहीं हटाते हैं, तो वे काले झंडे से विरोध करेंगे। उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को कल पूरनपुर, पीलीभीत में काले झंडे दिखाये गये और उनके काफिले को विरोध कर रहे किसानों द्वारा हुए रोका गया। मिशन उत्तर प्रदेश के हिस्से के रूप में, यह बताया गया है कि राज्य में किसान संगठनों द्वारा और टोल प्लाजा मुक्त किए जा रहे हैं। कई जगहों पर, किसानों के वाहनों और काफिलों ने पहले ही किसान संगठनों के झंडे या अन्य पहचान के साथ एक टोल-फ्री मार्ग सुरक्षित कर लिया है।
किसान आंदोलन के साथ एकजुटता की अभिव्यक्ति के रूप में, केरल में ‘गांधियन कलेक्टिव’ द्वारा 5 अगस्त से 9 अगस्त (भारत छोड़ो दिवस) तक 100 घंटे का रिले उपवास और सत्याग्रह का आयोजन कोट्टायम जिले के भरनंगनम में किया जा रहा है। केरल के विभिन्न जिलों के चार सत्याग्रहियों के समूह द्वारा 25-25 घंटे का उपवास/सत्याग्रह रखा जाएगा। इस आयोजन को “कृषि, खाद्य और स्वास्थ्य स्वराज सत्याग्रह अगेंस्ट कॉरपोरेट राज” नाम दिया गया है।
तेलंगाना में, 500 आदिवासियों ने पोडु भूमि से आदिवासी किसानों की बेदखली को रोकने, वन उपज पर अधिकार देने और लघु वनोपज (एमएफपी) सहित सभी कृषि उत्पाद पर एमएसपी के कानूनी अधिकार के लिए, असवरोपेटा से कोठागुडेम तक 70 किलोमीटर और 5 दिन लंबा विरोध मार्च निकाला। AIKMS के नेतृत्व में, वे 3 कॉरपोरेट समर्थक कृषि कानूनों को निरस्त करने की भी मांग कर रहे हैं।
किसान संसद द्वारा 05/08/2021 को पारित प्रस्ताव
* सभी किसानों और सभी कृषि उपजों के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर 4 और 5 अगस्त, 2021 को किसान संसद में विचार-विमर्श के आधार पर:
# यह देखते हुए कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भी, भारतीय कृषि परिवारों का एक बड़ा हिस्सा कर्ज की अर्थव्यवस्था में जी रहा है, जहां आय परिवार के खर्च से कम है, और यह आंकड़ा भारतीय किसानों द्वारा सहन किए जा रहे (माइनस) 14% तक नकारात्मक ‘उत्पादक समर्थन’ की ओर भी इशारा करता है; इसका तात्पर्य यह है कि ऐसे नीतिगत दृष्टिकोण में जो उपभोक्ताओं को खुश रखने के लिए किसानों को दंडित करता है, भारतीय किसानों पर वर्ष 2000 से 2016-17 के बीच 45 लाख करोड़ रुपये (औसतन लगभग 2.8 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष) की संचयी सीमा तक कर लगाया गया था; हालांकि, यह तब है जब भारत द्वारा सभी नागरिकों को एक व्यापक खाद्य सुरक्षा प्रदान नहीं किया गया है, और जब सबसे गरीब वर्ग पीडीएस (PDS) के दायरे में पूरी तरह से नहीं आता है, और भूख और कुपोषण से प्रभावित है।
# इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि किसानों की आय, कृषि में कानूनी रूप से अनिवार्य न्यूनतम मजदूरी के स्तर पर भी नहीं है;
# यह समझते हुए कि कृषि उपजों के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करना सबसे प्रत्यक्ष और समीपस्थ तरीका है जिसके द्वारा कृषि आय को बढ़ाया जा सकता है, जबकि भारत सरकार ऐसा कर पाने के किसी सबूत के बगैर समय-समय पर “किसानों की आय को दोगुना करने” का वादा करती रही है, जब उस लक्ष्य को (जिसका उसने वादा किया था) पूरा करने के लिए एक वर्ष ही शेष रह गया है;
# इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए कि डॉ एम० एस० स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग ने सिफारिश की है कि विभिन्न कृषि उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन की व्यापक लागत C2 से कम से कम 50% ऊपर घोषित किया जाए, जिसे क्रमिक सरकारों द्वारा अब तक कार्यान्वयन में नहीं लाया गया है; भारत में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने से पहले और बाद में बार-बार वादा किया था, और भारत की संसद के पटल पर भी ऐसा कहा था, कि सभी किसानों के लिए “लाभकारी एमएसपी” हकीकत बनाया जाएगा;
# यह ध्यान देने के बाद कि कुछ योजनाओं और कार्यक्रमों को शुरू करने के ढोंग के बावजूद सरकार द्वारा इस दावे और वादे को अभी तक लागू नहीं किया गया है;
# इस बात से अवगत होने के बाद कि एमएसपी के लिए C2 + 50% फॉर्मूला से इनकार करने से, किसानों को कुछ अनुमानों के अनुसार सालाना लगभग 2,50,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, और किसानों की कम से कम 50,000 करोड़ रुपये की लूट हो रही है, जो कि घोषित, अत्यल्प एमएसपी और मंडियों में किसानों को मिल रहे दाम का अंतर है;
# यह समझने के बाद कि चाहे A2 हो या C2 हो, लागत अवधारणा को बारीकी से जांचने पर पता लगता है, – जैसा कि रमेश चंद समिति द्वारा स्वीकार किया गया था जिस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया है – कि किसानों के लिए उत्पादन की वास्तविक लागत को जानबूझकर भारत सरकार द्वारा तैयार किये गए अनुमानों में विभिन्न तरीकों से कम दिखाया जा रहा है;
# यह ध्यान देने के बाद कि दोषपूर्ण लागत अनुमान भी केवल सीमित फसलों के लिए तैयार किए जा रहे हैं, जबकि भारतीय किसानों द्वारा विनश्वर उपजों सहित कृषि उपजों की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन और/या विपणन किया जाता है, जिसमें फल, सब्जियां, दूध, मांस, अंडा, वन उपज, मछली और अन्य जलीय-उपज जैसे विनश्वर उपज शामिल हैं;
# इस तथ्य पर गहरी आपत्ति जताते हुए कि जहां किसान भारत में सभी कृषि उत्पादकों के लिए लाभकारी एमएसपी को एक वास्तविकता बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, वहीं भारत सरकार ने बिल्कुल विपरीत दिशा में अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीकों से किसानों को 3 किसान विरोधी कानूनों के रूप में गैर-विनियमित बाजारों (कृषि बाजार और खाद्य सामग्री की आपूर्ति श्रृंखला) के दया पर छोड़ दिया है, जो कृषि और खाद्य निगमों को कमजोर करना और संसाधन हथियाने की सुविधा कंपनियों को प्रदान करना चाहते हैं;
# इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए कि भारत सरकार ने ‘पीएम-आशा’ के तहत किसानों को खरीद और बाजार हस्तक्षेप सहायता प्रदान करने वाली छोटी योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए भी आवश्यक संसाधन आवंटित नहीं किए हैं या ‘ग्राम’ जैसे कार्यक्रमों के तहत बजट का उपयोग नहीं किया है, जबकि इसने सार्वजनिक खरीद एजेंसियों को कर्ज की ओर ढकेल दिया है, जिससे किसान प्रभावित हुए हैं;
# इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि स्वामीनाथन आयोग की कई सिफारिशें जो किसानों की आजीविका और सम्मान की रक्षा करती हैं, भारत सरकार द्वारा लागू नहीं की जा रही हैं, जिसमें भारत में किसानों की परिभाषा, कृषि भूमि के अधिग्रहण की रोकथाम, प्रभावी फसल बीमा का प्रावधान और सभी किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान आदि शामिल है;
किसान संसद ने प्रस्ताव पारित किया कि:
क. भारत सरकार को तुरंत एक विधेयक पेश करने का निर्देश दिया जाता है जिसमें निम्नलिखित आवश्यक प्रावधान शामिल हों और भारत के संसद को इसे पारित करने का निर्देश दिया जाता है:
– जो राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा अनुशंसित उत्पादन की व्यापक लागत C2 पर कम से कम 50% से अधिक लाभकारी मूल्य प्रदान करेगा, साथ ही विषम फसल पद्धति को संबोधित करने के लिए कुछ कृषि उपजों पर C2 + 50% से अधिक एमएसपी प्रदान करेगा;
– जो उन लागत घटकों को भी संबोधित करेगा जिनका इस समय गलत आकलन किया जा रहा है, साथ ही रमेश चंद समिति की रिपोर्ट के अनुसार उस सर्वेक्षण में सुधार होगा जिसके द्वारा लागत अनुमानों पर पहुंचते हैं;
– कि इस कानून में सभी किसानों के लिए लाभकारी एमएसपी को वास्तविकता बनाने के लिए आवश्यक संस्थागत संरचना शामिल हो;
– कि सभी किसानों के लिए लाभकारी एमएसपी की कानूनी गारंटी के रूपात्मकता/ तौर-तरीकों में निम्न लिखित बिन्दु शामिल होंगे :
* विभिन्न वस्तुओं की भारत के विभिन्न राज्यों में मौजूद खरीद के उच्चतम स्तर (पिछले पांच वर्षों में उच्चतम) की रक्षा करना और बढ़ाना;
* विस्तारित खरीद (अधिक वस्तुओं और बढ़े हुए स्तर) ताकि सभी उपभोक्ताओं को अन्य अनाज, तेल और दालों की व्यापक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हो सके;
* समय पर और पर्याप्त बाजार हस्तक्षेप और किसान समर्थक बाजार निपटान तंत्र;
* निजी व्यापारियों और अन्य खरीदारों द्वारा अनिवार्य खरीद जो केवल एमएसपी पर या उससे अधिक खरीद सकते हैं और नीचे नहीं;
* किसानों के स्तर पर पर्याप्त निवेश ताकि बेहतर बाजार मूल्य आदि के लिए उनकी प्रतिधारण क्षमता में सुधार हो सके।
ख. भारत सरकार और जहां आवश्यक हो राज्य सरकारों को, किसान आयोग की रिपोर्ट (स्वामीनाथन आयोग) की प्रगतिशील सिफारिशों को — कृषि भूमि के अधिग्रहण की रोकथाम, किसान आयोग की रिपोर्ट में किसानों की परिभाषा के अनुसार सभी किसानों को पहचान और दर्जा देना, सभी किसानों को पेंशन की व्यवस्था करने, प्रभावी एवं पर्याप्त फसल बीमा उपलब्ध कराने, तथा सभी प्रकार के जोखिमों के लिए सभी किसानों को आपदा मुआवजा आदि — तुरंत लागू करने का निर्देश दिया जाता है।
जारीकर्ता –
बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शनपाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव