जामिया मिल्लिया वि.वि. के प्रोफ़ेसर रिज़वान कैसर का 2 मई को कोरोना संक्रमण के कारण देहांत हो गया। यह देश के सरोकारी बौद्धिक समुदाय के साथ ही समाजवादी परिवार की अपूरणीय क्षति है। देश की राजधानी में एक आदर्श बुद्धिजीवी और प्रतिबद्ध नागरिक के रूप में उनकी विशेष पहचान थी। लेकिन अभी उनको समाज और देश के लिए बहुत कुछ करना बाक़ी था। इसलिए उनके आकस्मिक महाप्रस्थान ने हमारे जैसे बहुतों को स्तब्ध कर दिया है।
मुंगेर से दिल्ली तक की शिक्षा यात्रा में डा. रिज़वान कैसर ने अपनी तेजस्विता और सक्रियता से शिक्षकों और सहपाठियों में एक ख़ास पहचान बनाई। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा पूरी करने के दौरान समाजवादी विद्यार्थी समूह की ओर से छात्रसंघ के अध्यक्ष का उम्मीदवार हुए और नब्बे के दशक की विद्यार्थी राजनीति पर उनकी अमिट छाप रही। तब से अब तक वह जेएनयू संस्कृति के आकर्षक प्रतीक के रूप में भी जाने गए।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर उनकी किताब ने उन्हें आधुनिक भारतीय इतिहास के विमर्श में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार बनाया। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इतिहास विभाग से उनका यशस्वी शिक्षक जीवन शुरू हुआ था। एक युवा लेक्चरर से लेकर वरिष्ठ प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में हर ज़िम्मेदारी का पूरी निष्ठा से निर्वाह किया। जामिया मिल्लिया की अंदरूनी और बाहरी चुनौतियों से रक्षा करने में उनकी साहसिक भूमिका ने एक अलग इज़्ज़त का हक़दार बनाया।
उनकी केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक आंदोलन में भी मुखर भूमिका रही।
वैचारिक निष्ठा, विनम्रता और मुखर सामाजिकता के संगम ने प्रो. रिज़वान कैसर को एक अनूठी विशिष्टता दी थी।सुनील मेमोरियल ट्रस्ट, नागरिक मंच, जेपी फ़ाउंडेशन से लेकर समाजवादी समागम तक हर सार्थक पहल को अपना निर्मल सहयोग देना उनकी राजनीतिक निष्ठा का प्रमाण था। सांप्रदायिकता और संकीर्णता का सतत प्रतिरोध और समाजवादी विचारों के अनुरूप अपनी सार्वजनिक भूमिका के लिए प्रतिबद्धता प्रो. रिज़वान कैसर की पहचान थी।हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि!
– आनंद कुमार
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