23 मई। कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी और महंगाई अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है लेकिन मोदी सरकार ने अभी भी आम जनता के लिए किसी खास राहत की घोषणा नहीं की है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने ताजा आंकड़े जारी किए हैं जिसमें कहा गया है कि 16 मई को समाप्त सप्ताह में ग्रामीण बेरोजगारी बढ़कर 14.34 फीसदी हो गई, जो 9 मई को समाप्त सप्ताह में 7.29 फीसदी थी।
यूं कहें कि ग्रामीण बेरोजगारी 50 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है और गांवों में कोरोना पहुंचने के कारण हालात और खराब हो रहे हैं।
दिल्ली और केरल जैसे राज्यों ने गरीबों और मजदूरों को सीधे आर्थिक मदद का एलान किया है लेकिन इसमें केंद्र की हिस्सेदारी न के बराबर है।
ट्रेड यूनियनें लगातार मांग कर रही हैं कि गैर आयकरदाता जनता को उनके खाते में 7,500 रुपये नकद हर महीने सरकार को जमा करना चाहिए ताकि भुखमरी की हालत से उन्हें बचाया जा सके।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, 9 मई के हफ्ते में आए बेरोजगारी के आंकड़े 8.67 फीसदी के मुकाबले लगभग दोगुना हैं।
गौरतलब है कि पिछले साल मई महीने में सबसे ज्यादा बेरोजगारी 21.73 फीसदी तक पहुंच गई थी, जब देश कोरोना की पहली लहर का सामना कर रहा था।
कोरोना की दूसरी लहर में इस साल अप्रैल का महीना रोजगार के हिसाब से काफी बुरा साबित हुआ। कई राज्यों में लॉकडाउन या इसी तरह के अन्य प्रतिबंध लगने से लोग बड़े पैमाने पर बेरोजगार हो गए।
मार्च 2021 में बेरोजगारी दर करीब 6.5 फीसदी थी, लेकिन अप्रैल में यह बढ़कर 7.97 फीसदी तक पहुंच गई।
आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2021 में रोजगार दर गिरकर 36.8 फीसदी रह गई। यह मार्च में 37.6 फीसदी थी।
लॉकडाउन की वजह से लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा और इसकी वजह से श्रम भागीदारी दर में भी गिरावट आई है। सीएमआईई का कहना है कि अर्थव्यवस्था का हाल ऐसा नहीं है कि बड़ी संख्या में लोग रोजगार पा सकें।
( workersunity.com से साभार )