— बॉबी रमाकांत एवं संदीप पाण्डेय —
जब लखनऊ के कुछ अस्पतालों ने आक्सीजन की कमी की सूचना अपनी दीवारों पर चिपकाई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 24 अप्रैल 2021 को चेतावनी दी कि जो लोग अस्पतालों में आक्सीजन की कमी की अफवाह फैलाएंगे उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी और उनकी सम्पत्ति जब्त की जाएगी। इससे पहले प्रदेश के विधिमंत्री बृजेश पाठक ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर शिकायत की कि कोविड की जांच आख्या मिलने में 4 से 5 दिन का समय लग रहा है, प्रदेश में पर्याप्त जांच की सुविधा नहीं है और अधिकारी फोन नहीं उठाते। स्वास्थ्य मंत्री से शिकायत करने पर जब फोन उठाते भी हैं तो उनसे जनता को कोई मदद नहीं मिलती। उन्होंने यह भी बताया कि लखनऊ के जाने-माने इतिहासकार योगेश प्रवीण के लिए जब उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को एम्बुलेंस हेतु फोन किया तो भी एम्बुलेंस आई नहीं और योगेश प्रवीण की मौत हो गई।
मोहनलालगंज से भारतीय जनता पार्टी के सांसद कौशल किशोर यह कहते हुए कि चुनाव से ज्यादा जरूरी लोगों की जान बचाना है चुनाव आयोग से उ.प्र.पंचायत चुनाव टालने की अपील कर चुके थे। कौशल किशोर ने यह भी आरोप लगाया कि लखनऊ के प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज चिकित्सीय विश्वविद्यालय के श्वसन चिकित्सा विभाग में 100 के ऊपर आक्सीजन के साथ शैय्या व छह शैय्या आईसीयू में खाली पड़ी हैं और मरीज आक्सीजन की कमी से मर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पास के ही बलरामपुर अस्पताल में 20 में से सिर्फ 5 वेंटिलेटर काम में लिये जा रहे हैं क्योंकि वहां वेंटिलेटर संचालन के लिए तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी ही नहीं हैं। मरीजों को आक्सीजन न मिलने की स्थिति में उन्होंने धरना तक देने की चेतावनी दी। कौशल किशोर के बड़े भाई का आखिर में किंग जॉर्ज चिकित्सीय विश्वविद्यालय में आक्सीजन की कमी के कारण ही निधन हो गया। इन दोनों भाजपा नेताओं ने बोलने की हिम्मत दिखाई क्योंकि शायद वे अन्य राजनीतिक दलों जैसे बहुजन समाज पार्टी या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पृष्ठभूमि से आते हैं। यदि वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते तो शायद सरकार की छवि की उन्हें ज्यादा चिंता होती।
लेकिन अब तो कई भाजपा नेता उ.प्र. में कोराना को लेकर चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठा चुके हैं। इनमें शामिल हैं बरेली के भाजपा विधायक केसर सिंह, जिनका बाद में कोविड से निधन हो गया, बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी, भदोही के विधायक दीनानाथ भास्कर, कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी, मेरठ से सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, लखीमपुर खीरी के विधायक लोकेन्द्र प्रताप सिंह और अब केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार, जिन्होंने वेंटिलेटर आदि की कालाबाजारी पर चिंता व्यक्त की है।
लेकिन मानवता को सबसे शर्मसार करनेवाली घटना बेंगलुरु में हुई जहां युवा सांसद तेजस्वी सूर्य ने पहले तो अस्पतालों में शैय्या घूस लेकर दिए जाने का आरोप लगाया और फिर वृहत बेंगलुरु महानगर पालिका के कोविड नियंत्रण कक्ष में तीन विधायकों के साथ जाकर 205 में से 17 मुस्लिम संविदा कर्मचारियों के नाम सार्वजनिक रूप से पढ़कर उनकी नियुक्ति पर हंगामा खड़ा किया। जिस निजी संस्था ने इन कर्मचारियों को रखा था पहले तो उसने उन्हें काम पर आने से मना किया लेकिन पुलिस जांच में कोई अनियमितता न पाए जाने पर उन्हें वापस रख लिया गया। तेजस्वी सूर्य की इस अवांछित कार्रवाई से नियंत्रण कक्ष का कार्य दो दिन तक प्रभावित रहा। तेजस्वी सूर्य और तीन विधायकों पर सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज होना चाहिए? भाजपा के नेता संकट काल में भी साम्प्रदायिक राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे।
बिहार में भूतपूर्व सांसद व जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव ने जब सारण में यह खुलासा किया कि भाजपा नेता राजीव प्रतीप रूडी की सांसद निधि से खरीदी गई 30 एम्बुलेंस खड़ी हैं तो बिहार सरकार ने पप्पू यादव को आपदा प्रबंधन अधिनियम व महामारी अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया जबकि पप्पू इस संकट की घड़ी में कोविड मरीजों की सेवा में लगे हुए थे। इसी के मद्देनजर, भाजपा को छोड़, सभी राजनीतिक दलों ने सरकार की अलोकतांत्रिक कार्रवाई की निंदा की। राजीव प्रताप रूडी ने अपनी सफाई में अविश्वसनीय कारण बताया है कि चालकों की कमी की वजह से एम्बुलेंस खड़ी हैं। असल में महामारी अधिनियम के तहत एम्बुलेंसों का इस्तेमाल न होने देने के लिए मुकदमा तो राजीव प्रताप रूडी पर दर्ज होना चाहिए।
उ.प्र. व दिल्ली की सरकारों ने भी निजी एम्बुलेंस के इस्तेमाल की दरें निर्धारित की हैं। सवाल यह है कि जब सरकार निजी अस्पतालों का अधिग्रहण कर रही है अथवा निजी अस्पताल में कोविड के इलाज का खर्च वहन कर रही है तो वह निजी एम्बुलेंसों का अधिग्रहण कर उन्हें जनता को मुफ्त क्यों नहीं उपलब्ध कराती? पाकिस्तान का इद्ही फांउडेशन, जो वहां एक एम्बुलेंस सेवा संचालित करता है, ने 23 अप्रैल को भारत सरकार को प्रस्ताव रखा कि वे भारत के किसी भी शहर के लिए 50 एम्बुलेंस, चालक, अन्य जरूरी सामग्री के साथ अपने खर्च पर भेजने को तैयार हैं। इद्ही के बारे में मशहूर है कि फोन करने के 15 मिनटों के अंदर एम्बुलेंस आ जाती है। वे वर्षों से पाकिस्तान में सेवा का काम कर रहे हैं। पर भाजपा सरकार चूंकि पाकिस्तान को दुश्मन मानती है तो उसने वहां की एक धर्मार्थ कार्य करनेवाली संस्था की मदद लेना भी उचित नहीं समझा। यह इद्ही फाउंडेशन वह संस्था है जो पाकिस्तान में पकड़े गए भारतीय मछुआरों को भारत वापस भेजने का काम भी करती है।
सवाल यह भी है कि भारत में अभी तक कोई इद्ही फांउडेशन जैसी एम्बुलेंस सेवा क्यों नहीं शुरू हुई? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह काम कर सकता था और चाहे तो अभी भी कर सकता है, जो अपने को दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन मानता है। किंतु अभी कुछ दिनों पहले तक रा.स्व.सं. के कार्यकर्ता जो अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा कर रहे थे इस समय दिखाई नहीं पड़ रहे। अब इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय संवेदनहीन संघ रख देना चाहिए।
जब देश में कोविड महामारी और मानवीय संकट जनता पर कहर ढा रहा है, तब देश के केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, जो चिकित्सक भी हैं, ने कहा है कि लोग कोविड तनाव से दूर रहने के लिए 70 प्रतिशत कोको वाली डार्क चॉकलेट खाएं। पिछले सालों में विशेषकर कोविड महामारी के 17 महीनों में स्वास्थ्य मंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि देश में स्वास्थ्य व्यवस्था सशक्त हो, खासकर कि वह जो कोविड-ग्रसित लोगों के लिए जीवनरक्षक हो सकती है, उदाहरण के लिए आक्सीजन जैसी मूलभूत सुविधा या अस्पताल में शैय्या व वेंटिलेटर, श्रम अधिकार सुनिश्चित करते हुए पर्याप्त स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती, टीका और संक्रमण बचाव हर इंसान के लिए संभव हो सके, आदि। कोविड तनाव से बचने के लिए विशेष प्रकार की महंगी चॉकलेट खाने के स्वास्थ्य मंत्री के सुझाव पर अनेक विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं और वैज्ञानिक प्रमाण माँगा है।
पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश में हर इंसान का स्वास्थ्य अधिकार सुनिश्चित करना किसकी जिम्मेदारी थी? स्वास्थ्य अधिकार न मिल पाने पर जो जनता तनावग्रस्त है वह चॉकलेट नहीं स्वास्थ्य सेवा में सुधार चाहती है, अपने स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार चाहती है। आपदा के समय में, भाजपा सरकार 20,000 करोड़ रु. खर्च करके नया संसद भवन और प्रधानमंत्री का महलनुमा आवास बनाना ‘अति-आवश्यक सेवा’ मानती है। इसी से जाहिर है कि उसकी प्राथमिकता क्या है।यदि जनहित और जनता के सामाजिक सुरक्षा अधिकार सरकार के केंद्र में होते तो उसने देश से ‘अति महत्त्वपूर्ण व्यक्ति’ के लिए विशेष सुविधा वाली गैर-बराबरी की व्यवस्था ही खत्म कर दी होती।