पृथ्वी का प्रतिशोध

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— कश्मीर उप्पल —

यूनानी अथवा ग्रीक भाषा में पृथ्वी को गाया या गैया कहा जाता है। गाया ग्रीक की पौराणिक देवी है जो पृथ्वी पर सभी जीवों की देवी माता है। इसे पूजा जाता है, इसके पौराणिक चित्र भी हैं। इसे ‘जीवन-रक्षक देवी’ के रूप में याद किया जाता है। साइंस के सूत्रों में जटिल लगने और चिह्नों वाले अक्षर ग्रीक ही हैं। ग्रीक का प्राचीन नाम यूनान है।

अमरीका की अंतरिक्ष-प्रयोगशाला नासा के एक वैज्ञानिक जेम्स लवलॉक ने सन 1965 में अपने पृथ्वी सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। 1960 के दशक में अंतरिक्ष में जानेवाले देखने लगे कि पृथ्वी अंतरिक्ष से कैसी दिखती है। इससे इस सिद्धांत को और मजबूती मिली है। लवलॉक ने 1970 के दशक में पर्यावरण विज्ञान की कई किताबें लिखीं।

पृथ्वी के चार सिस्टम हैं –

  1. बायोस्फीयर (सभी जीवित प्राणी-जगत और वनस्पति)
  2. हाइड्रोस्फीयर (जल मंडल)
  3. एटमास्फीयर (हवा या वातावरण)
  4. लिथोस्फीयर (स्थल मंडल)

लवलॉक के अनुसार वातावरण हमें आक्सीजन देता है। जल मंडल और स्थल मंडल पानी, भोजन और निवास देते हैं। वातावरण, जल मंडल और स्थल मंडल में यदि कोई परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव जीव मंडल पर पड़ता है। मनुष्य ही अपने विकास और युद्ध आदि से पृथ्वी के सिस्टम को तोड़ता है और पृथ्वी माता उस सिस्टम की मरम्मत करती रहती है। एक नई बात लवलॉक ने कही है कि ये चारों तत्त्व- बायोस्फीयर, हाइड्रोस्फीयर, एटमास्फीयर और लिथोस्फीयर- आपस में बातें करते हैं।

नासा के वैज्ञानिक लवलॉक मंगलग्रह पर जीवन की खोज में लगे वैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया- “संपूर्ण धरती अपने आप में एक जैव संस्थान है। अर्थात भू-मंडल और जैव मंडल अपने आप में अंतर्गन्तित हैं।”

प्रसिद्ध कहानी लेखक विलियम गोल्डिंग के सुझाव पर लवलॉक ने अपने सिद्धांत का नाम यूनानी देवी गाया के नाम पर ‘गाया सिद्धांत’ रखा। लवलॉक को पृथ्वी का ‘ग्रीनमैन’ भी कहा जाता है। लवलॉक ने अपनी नई पुस्तक ‘द रिवेन्ज ऑफ गाया’ (1970) में बताया कि आधुनिक विकास की चुनौतियों का सामना करने के लिए पृथ्वी नए-नए रूप में विकसित होगी। ‘पृथ्वी सम्मेलनों’ में इस सिद्धांत को मान्यता दी गई।

लवलॉक ने ही सर्वप्रथम पर्यावरण इंजीनियरिंग खोजी थी। इस सिद्धांत के अनुसार जीव अपने पर्यावरण के साथ-साथ विकसित होते हैं। पृथ्वी एक ‘सुपर-संगठन’ की तरह काम करती है। पृथ्वी की बाहरी पपड़ी और खनिजों से बना एक ठोस भाग है, इसके अंदर तरल रूप में कई खनिज तत्त्व हैं। यदि पृथ्वी के भीतर की तरलता सूख जाए तो पृथ्वी भी किसी सूखी रेत के गोले की तरह बिखर जाएगी। कई सभ्यताएं पृथ्वी के अत्यधिक दोहन से समाप्त हो चुकी हैं। राजस्थान का रेगिस्तान पंजाब की तरफ बढ़ता जा रहा है। जीव मंडल पृथ्वी और उसके वातावरण में जीवित प्राणियों का विशाल समूह है। इसमें सभी दृश्य-अदृश्य प्राणी और वनस्पतियां आती हैं। वास्तव में पृथ्वी के चारों तरफ तीस किलोमीटर वायु, जल, स्थल, मृदा तथा शैलयुक्त एक जीवनदायिनी परत होती है। वैज्ञानिकों ने माना है कि “पृथ्वी अपने भौतक, रासायनिक, जैविक और मानवीय घटकों के साथ एक ही व्यवस्था की तरह काम करती है।”

लवलॉक ने ही कार्बन डाइ आक्साइड के लिए हानिकारक होने और इससे ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के बढ़ने की बात कही थी। पृथ्वी अपने धरातल से तापमान का मेन्टेनैन्स करती रहती है। वह इसे जीवमंडल के अनुकूल बनाती रहती है। पृथ्वी समुद्रों को अधिक या कम खारा नहीं होने देती। समुद्र में हजारों नदियों के मिलने के बावजूद उसका खारापन कम नहीं होता है। पृथ्वी वायु, पानी, बर्फ और अन्य रसायनों को अपनी लिमिट में करती है। इन तत्त्वों को रिसाइकल कर नया रूप देती है। जैसे पानी से बर्फ। अभी इसी मई 2021 में 40 मील चौड़ा और 1500 सौ मील लंबा एक आइसबर्ग धरती के उत्तरी ध्रुव पर उभरना शुरू हुआ है। अपने जीव-मंडल के लिए पृथ्वी विगत 4.6 बिलियन वर्षों से स्वतः स्व-नियंत्रण से घूम-घूमकर आत्मनिर्भर बनी हुई है। पृथ्वी अपने स्व-विनियमन से बाहरी खतरों से अपने जीव-मंडल को बचाती रहती है। पृथ्वी माता 4.6 बिलियन वर्ष आयु प्राप्त करने के बाद भी सक्रिय है। मनुष्य द्वारा पृथ्वी की व्यवस्था को दी गई चुनौतियों का सामना करने के लिए ही पृथ्वी अपना नया रूप विकसित कर लेती है। इसे हम तूफान, वर्षा, गर्मी, ठंड, भूकंप, ज्वालामुखी, रेगिस्तान, सूखा, बाढ़ के रूप में जानते हैं।

मनुष्य भी पंचतत्त्वों से बना है। मनुष्य का शरीर चोट-लगे अंग को ठीक करने लगता है। अभी पिछले दिनों कांगो देश के गामा शहर में ज्लावामुखी फूटा है। इसी तरह पृथ्वी भी अपने आपको ठीक करती है। मनुष्य के द्वारा पृथ्वी के तापमान को बहुत बढ़ा दिया गया है। वन-क्षेत्र और वनस्पतियां उजाड़ दी गईं, जल-क्षेत्रों का विघटन और युद्ध एवं रासायनिक खेती के परिणाम हमारे सामने हैं। इस वक्त असमय की वर्षा और तूफान तथा बर्फबारी आदि पृथ्वी की वे प्रक्रियाएं हैं जो जीवमंडल को बचाने के लिए होती हैं। भारत में ‘ताउते’ के बाद ‘यास’ तूफान भी पृथ्वी-सिद्धांत के अनुरूप है। हमारे शरीर में घाव होने पर उसपर एक खुरंड जम जाता है, बाद में उसपर फिर नई चमड़ी आती है।

अब कोरोना महामारी के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि धरती-माता ने तो चमगादड़ को अपनी गहन गुफाओं में छपाकर रखा है। मनुष्य और पशु-पक्षी दिन में अर्थात सूर्योदय के बाद बाहर निकलते हैं तो चमगादड़ सूर्यास्त के बाद ही बाहर आ पाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि चमगादड़ पक्षी नहीं है क्योंकि वह अंडे नहीं देता। इसके साथ ही वह पशु भी नहीं है क्योंकि उसके ‘पर’ होते हैं। अभी शंका-भर है मगर भविष्य में सिद्ध हो सकता है कि क्या चीन के वुहान शहर के ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ से ही कोरोना दुनिया में फैला है। चीन सरकार द्वारा कोरोना को एक महामारी स्वीकार करने के कई माह पूर्व वुहान लैब के तीन वैज्ञानिकों ने नवंबर 2019 में ही इस बीमारी की शिकायत की थी और अस्पताल में भर्ती हुए थे। यह अमरीका की एक गुप्त रिपोर्ट है जो ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने छापी है।

यह उल्लेखनीय है कि लवलॉक ने अपना शोध मंगल ग्रह पर जीवन खोजने के प्रयोग में किया था। उन्होंने बताया कि किस तरह के वातावरण में जीवन संभव होता है। अतः इसके बाद पृथ्वी की तरह के वातावरण वाले ग्रहों की खोज शुरू हुई। दूसरे ग्रहों पर आदमी और पशु तो नहीं खोजे जा सकते परंतु पानी और आक्सीजन खोजा जा सकता है।

लवलॉक का मानना है कि पृथ्वी का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो पृथ्वी रहने लायक नहीं रह जाएगी। ऐसा अगली दो-तीन शताब्दियों में हो सकता है। इसीलिए पृथ्वी के अनुकूल वातावरण वाले ग्रहों की खोज की जा रही है ताकि वहां मानव कॉलोनी बसाई जा सके। चीन का भी पहला रोवर इस मई माह में मंगल ग्रह पर उतर गया है। मंगल ग्रह पर कुछ पौधे और कांटे भी भेजे गए हैं।

यह उल्लेखनीय है कि ‘गाया सिद्धांत’ की सबसे बड़ी उपलब्धि है- 1970 के दशक से पूरे विश्व में पर्यावरण-आंदोलनों का खड़ा होना, उनमें ‘ग्रीन पीस’ सबसे बड़ा आंदोलन है। भारत में भी बड़े बांधों, वनों को काटे जाने, कोयला से बिजली, कारखानों के प्रदूषण और रासायनिक खेती के विरुद्ध आंदोलन 1970 में शुरू हुए थे। जो किसान जैविक खेती करते हैं वो पृथ्वी माता की सेवा करते हैं। क्योंकि वे पृथ्वी का तापमान बढ़ने से रोकते हैं।

अमरीका और यूरोप के स्कूलों में लवलॉक की पुस्तकें और उनकी ‘गाया-थियरी’ पढ़ाई  जाती है। किसी भी प्राणी को चोट लगने पर जैसे वह बिलबिला जाता है, ठीक इसी तरह पृथ्वी माता को भी चोट लगती है। अपने प्रतिशोध में पृथ्वी अपने को ही स्वस्थ बनाए रखने का प्रयास करती है ताकि पृथ्वी पर जीवन बचा रहे। जेम्स लवलॉक के इस वाक्य से लेख समाप्त करना अच्छा होगा- ‘जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए मनुष्य बहुत मूर्ख है।’

1 COMMENT

  1. आज ही बीबीसी
    हिंदी ने दिखाया कि मणिकर्णिका घाट के आसपास गंगा हरी हो गयी है!बनारस को इतना स्मार्ट बना दिया कि गंगाबहाव ही रुक गया। तालाब बन गई गंगा। जो सात हज़ार बरस में नहीं हुआ वह सात साल में कर दिखाया। और बनारस के साथ साथ 135 करोड़ का भारत ताकता रह गया।

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