क्यों भुला दी गई गोवा मुक्ति आंदोलन की वीरगाथा

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— डॉ सुनीलम —

ठारह जून भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का महत्त्वपूर्ण दिन है क्योंकि 1946 में इसी दिन गोवा की आजादी को लेकर मडगांव में आमसभा के दौरान समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया को पुर्तगाली शासकों ने हिरासत में लेकर गोवा राज्य के बाहर कर दिया था। लेकिन सभा के दौरान जब पुर्तगाली पुलिस अधिकारी ने रिवॉल्वर निकाली और डॉ लोहिया ने उंसको जिस तरह झिड़का और पुर्तगाली शासकों को ललकारा उससे  गोवावासियों को यह विश्वास हो गया कि जिस राममनोहर लोहिया ने 1942 की अगस्त क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है वह गोवा को आजादी दिला सकेगा।

यह सर्वविदित है कि डॉ लोहिया 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जयप्रकाश नारायण के साथ लाहौर जेल में बंद थे। उन्हें अंग्रेजों ने निर्ममता और अमानवीय तरीकों से प्रताड़ित किया था। गांधीजी के हस्तक्षेप के बाद जब वह जेल से रिहा हुए तब स्वास्थ्य लाभ के लिए गोवा के आसोलना गांव में डॉ जुलिओ मेनेजिस के पास गए थे। जब गोवा के अखबारों में खबर छपी कि 1942 की क्रांति के नायक गोवा आए हैं तब उनसे मिलने के लिए भीड़ लग गई। तब डॉ. लोहिया ने स्थानीय नागरिकों के साथ मिलकर मडगांव में 18 जून 1946 को सभा करने का निर्णय किया। सभा के दौरान पुर्तगाली पुलिस ने उन्हें रिवाल्वर दिखाकर डराने की कोशिश की। तब डॉ लोहिया ने पुलिस अफसर से संयम से काम लेने की सलाह दी। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉ लोहिया का लिखित भाषण पूरे गोवा और देश के अखबारों में प्रकाशित हुआ।

उल्लेखनीय है कि गोवा में 450 वर्षों से पुर्तगाली शासकों का राज था। कोई भी काम करने से पहले पुर्तगाली शासन से अनुमति लेनी पड़ती थी। इस डर के वातावरण को डॉ लोहिया ने तोड़ा। देश के समाजवादियों ने गोवा को मुक्त कराने का संकल्प लिया। नाना साहब गोरे और सेनापति बापट के नेतृत्व में जब जत्थे ने गोवा में प्रवेश किया तब पुलिस ने सभी सत्याग्रहियों को बेहोश होने तक पीटा तथा बीस-बीस साल की सजा दी गई। उसके बाद लगातार जत्थे जाते गए, गिरफ्तारियां और सजाए होती रहीं। नेशनल कांग्रेस गोवा और विमोचन सहायक समिति संगठन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। आंदोलन के दौरान कैसल रॉक गार्डन में गोलीचालन हुआ जिसमें 39 आंदोलनकारी शहीद हुए।

यह दुखद है कि अंग्रेजों के जलियांवाला कांड की चर्चा देश और दुनिया में होती है लेकिन कैसल रॉक गार्डन की नरसंहार की घटना को देश याद नहीं करता। राष्ट्रीय स्तर पर कैसल रॉक गार्डन के शहीदों को कभी श्रद्धांजलि नहीं दी जाती।

पुर्तगालियों के क्रूर शासन के खिलाफ गोवा मुक्ति संग्राम का इतिहास यों तो 450 वर्ष पुराना है परंतु जब भारत के आजाद होने का निर्णय हो गया तब से गोवा के निवासियों को गुलामी और ज्यादा सालने लगी। डॉ लोहिया की उपस्थिति से गोवा मुक्ति संग्राम में उबाल आ गया इसलिए डॉ लोहिया को गोवा मुक्ति के नायक के तौर पर देखा और माना जाता है। उन्हें गोवा का गांधी भी कहा जाता है ।

यह स्पष्ट करना जरूरी है कि आंदोलन में गोवा के हजारों नागरिकों और भारतीयों ने भाग लिया, सैकड़ों को सजाएं भी हुईं, बड़ी संख्या में गोवा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भी हुए। गोवा के साथ पूरा देश किस तरह खड़ा था यह जानने के लिए ‘गोवा मुक्ति संग्राम’ और ‘जबलपुर के सत्याग्रहियों’ नामक पुस्तक को पढ़ना जरूरी है। जिससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतवासियों ने गोवा मुक्ति के लिए किस तरह से बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की थी।

किताब के अनुसार 25 मई 1955 को मंजनलाल चंदसौरिया गोवा गए थे, उसके बाद 10 जुलाई 1955 को 10 सत्याग्रही, 15 अगस्त 1955 को 20 सत्याग्रही, 20 अगस्त 1955 को 18 सत्याग्रही गए थे। जिनमें दुर्ग के एनबी ताम्रकार भी शामिल हुए थे जो बाद में जस्टिस बने। सागर की सह्याद्रि देवी को गोली लगी, समाजवादी नेता यमुना प्रसाद शास्त्री की आंखें गोवा संघर्ष के दौरान चली गईं। आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में पीटर अल्वारिस, डॉ टीबी कुन्हा, शेरू भाई, त्रिदीब चौधरी, आत्माराम पाटिल, जगन्नाथ राव जोशी तथा समाजवादी नेता एसएम जोशी शामिल थे।

समाजवादी नेता मधु लिमये को बारह वर्ष की सजा आंदोलन के दौरान हुई थी। उन्होंने 19 महीने जेल में काटे थे।

पुर्तगाली शासकों की क्रूरता इस बात से समझी जा सकती है कि उन्होंने आंदोलनकारियों को पुर्तगाल और दक्षिण अफ्रीका की जेलों में कई वर्षों तक कैद रखा।

विश्वनाथ नारायण लवन्दे, तुकाराम काणकोलकर, राजाराम भिकारों नाईक गोवेकर, हिरबा राणे  को 28 वर्ष, टोनी डिसोझा (अंतोनियो जो डिसोझा) को 26 वर्ष, जयवंत शेणवी कुंद्रे, मोहन लक्ष्मण रानडे को 26 वर्ष, सूखा आगरवाडेकर, लाडू वायंगणकर, बाबला नाईक वेर्णेकर, श्रीपाद परशुराम साठे, अनंत तिळवे, सूखा शिरोडकर, बालकृष्ण भोसले, चंद्रकांत गायतोंडे  दत्ताराम देऊ देसाई, रघुनाथ मेरत, मनोहर पेडणेकर, तुकाराम मयेकर को 24 वर्ष, शंकर बंडो, राघोबा बंडो, सदानंद प्रभु को 23 वर्ष, कृष्णनाथ भट, रामदास गणपत चाफलकर, माधव शिवराम कोर्डे, पुंडलिक नाईक, बाबनी तारी, गोपीकृष्ण चोडणकर, दत्ताराम कुष्टा नागवेकर, देवीदास प्रभुदेसाई को 22 वर्ष, शंभू सोन पालकर को 21 वर्ष, प्रभाकर त्रिविक्रम वैद्य,जोझ अंतोनियो आद्राद उर्फ लक्ष्मण, डी सिल्वा को 20 वर्ष, पीटर अल्वारिस को 18 वर्ष 8 माह, शांताराम लाडोबा शेट्ये,गणेश पांडू परब, फटबा सदा नाईक, केशव विसु करबटकर को 18 वर्ष 7 माह, आत्माराम धाकटू नाईक मयेकर, विठू गोपाल नाईक, पांडुरंग भट फडके, पांडुरंग सीताराम करबटकर, नागेश दुलबा करबटकर को 16 वर्ष 7 माह, बलवंतराव विट्ठलराव देसाई, नामदेव विनायक रायकर, श्रीनिवास आचार्य को 16 वर्ष, लक्ष्मण बाला शिरोडकर, सखाराम पुतु पेडणेकर, तानाजी विष्णु माईणकर, नामदेव शंकर हरमलकर, वेंकटेश दत्ता कुंदे को 15 वर्ष, प्रभाकर विट्ठल सिनारी, कार्लिस्टो अरावजो को 14 वर्ष, अरविंद करापूरकर, भगवंत पेडणेकर, मित्रा काकोडकर, श्रीधर शिरसाट, रोग सांतान फर्नांडिस को 12 वर्ष, जोझ मैन्युअल व्हीएगस, राजाराम सखाराम कैंकरे को 11 वर्ष, सुधा ताई महादेव जोशी , एड.गोपाल अप्पा कामत, डॉ गणबा दुभाषी को 10 वर्ष, 29 आंदोलनकारियों को 9 वर्ष, 77 आंदोलनकारियों 8 वर्ष, 6 आंदोलनकारियों 7 वर्ष, 22 आंदोलनकारियों को 6 वर्ष, 33 आंदोलनकारियों 5 वर्ष, 31 आंदोलनकारियों को 4 वर्ष, 17आंदोलनकारियों को 3 वर्ष 4 माह, 30 आंदोलनकारियों को 3 वर्ष, 2 आंदोलनकारियों को 2 वर्ष 8 माह, 1 आंदोलनकारी को 2 वर्ष 6 माह, 11आंदोलनकारियों को 2 वर्ष की सजा दी गई थी।

गोवा मुक्ति संग्राम के बारे में भारत सरकार के द्वारा 18 -19 दिसंबर 1961 को की गई सैनिक कार्रवाई का काफी प्रचार किया जाता है लेकिन भारत के आजाद होने के बाद भी चौदह बरस तक गोवा को क्यों गुलाम रहना पड़ा, तथा भारत सरकार के द्वारा क्यों सैनिक कार्रवाई के क्यों चौदह वर्ष तक इंतजार किया गया यह रहस्य बना हुआ है। जिन सरदार पटेल ने 565 रियासतों का विलय आजादी के तुरंत बाद करवा लिया उन्होंने या देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने क्यों गोवा को पुर्तगाल का गुलाम रहने दिया? इस सवाल का जवाब गोवावासी चाहते हैं।

गोवा के प्रति भारत सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये का पता इस बात से भी चलता है कि 19 दिसंबर 1961 को गोवा के आजाद होने के बाद 1972 में पहली बार गोवा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पेंशन देने की घोषणा की गई, जो 1978 में मिलनी शुरू हुई। मध्यप्रदेश में 1985 में, महाराष्ट्र में 1988 में, राजस्थान में 1990 में, कर्नाटक और हरियाणा में 1992 में, उत्तर प्रदेश में 1997 में पेंशन देना शुरू किया गया। तीन साल बाद कर्नाटक में पेंशन देना बंद कर दिया गया। आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु में आज तक पेंशन नहीं दी गई। जम्मू-कश्मीर से जाकर गोवा मुक्ति संग्राम में शामिल होनेवाले सेनानी आज भी पेंशन का इंतजार कर रहे हैं।

अखिल भारतीय गोवा स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ 18 जून 1986 को बना। गोवा के नागेश करमाली जी अध्यक्ष हैं। इसके सचिव समाजवादी जगदीश तिरोडकर, गोवा मुक्ति आंदोलन के सेनानियों के परिवारों से आज भी सम्पर्क में  रहते हैं। रत्नागिरी के मेहबूब ने बहुत समय सेनानियों के सहयोग के लिए दिया है।

हाल ही में आईटीएम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रमाशंकर सिंह द्वारा गोवा मुक्ति आंदोलन पर तीन किताबें पुनः प्रकाशित की गई हैं।

गोवा क्रांति दिवस की हीरक जयंती पर हमें गोवा स्वतंत्रता संग्राम के उन शहीदों और जेल काटनेवाले आंदोलनकारियों को याद करना चाहिए, जिन्होंने पुर्तगालियों के 450 साल की गुलामी से मुकाबला किया था।

यह दुखद है कि गोवा स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास गोवा तथा देश के सभी स्कूलों और कॉलेजों में नहीं पढ़ाया जाता है।

गोवा मुक्ति संग्राम की महत्त्वपूर्ण तारीख 18 जून 1946 भारत सरकार और मुख्यधारा के मीडिया द्वारा वैसे ही उपेक्षित रही है जैसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम की 9 अगस्त 1942 की तारीख। गोवा की आजादी के दिवस 19 दिसम्बर 1961 और देश की आजादी के दिवस 15 अगस्त 1947 पर ही देश की निगाह अटक कर रह  गई है।

गोवा मुक्ति संग्राम का इतिहास आम भारतीयों  की नजर से आज भी ओझल है।

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