कोविड की दूसरी लहर में कितने लोगों की मौत हुई? कितने लोग महामारी की भेंट चढ़े? यह कोई बैठे-ठाले का सवाल नहीं और ना ही ये सवाल घाव को कुरेद-कुरेद कर दर्द महसूस करनेवाली रुग्ण मानसिकता का परिचायक है। मौतों के सही आंकड़ों से सार्वजनिक स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, राजनीति और मानवता के व्यापक वृत्त से जुड़े महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
पिछले कुछ हफ्तों से मैं यह सवाल बार-बार पूछ रहा हूं। सवाल पूछने के पीछे अपना व्यक्तिगत अनुभव है और यह अनुभव ज्यादातर देशवासियों के अनुभव से कतई अलग नहीं है। मेरी तरह, ज्यादातर भारतवासी किसी ना किसी स्वजन या परिजन को खोने की पीड़ा से गुजरे हैं। बीते दो महीने में मैंने अपने रहबर को खोया, सहकर्मियों को खोने के दुख से गुजरा। मेरे कई बैचमेट, शिक्षक, आंदोलन के साथी और जान-पहचान के लोग महामारी की भेंट चढ़े। इस बार जितनी शोक-सभाओं में मैंने शिरकत की उतनी अब से पहले कभी नहीं की है।
हरियाणा के मेरे अपने छोटे से गांव में दो महीने से भी कम समय में 19 लोगों की मौत हुई है। इन्हीं घटनाओं से मेरे मन में सवाल कौंधा है कि आखिर महामारी की इस महाविपदा ने कितनी जानों की बलि ली? मैंने मौतों की तादाद जानने के लिए मीडिया में आयी रिपोर्टों को खंगालना शुरू किया, विशेषज्ञों के विश्लेषणों पर नजर रखी और मुहांमुंही के आधार पर चलनेवाला एक छोटा सा सर्वेक्षण भी किया। इन सारी कवायदों से यह तो समझ में आ रहा था कि कोविड महामारी में जान गंवानेवाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है लेकिन मरनेवालों की तादाद कितनी बड़ी हो सकती है, इसका अंदाजा नहीं हो पा रहा था।
मन को मथनेवाले इस सवाल के जवाब के लिए पिछला हफ्ता रोशनी की किरण की तरह साबित हुआ। अब यह बात साफ हो गई है कि हम जिस महामारी की चपेट में हैं उसने विगत सदी में किसी एक आपदा या महामारी से कहीं ज्यादा संख्या में लोगों की जान ली है। यह बात भी साफ हो गई है कि केंद्र सरकार और तकरीबन सभी राज्य सरकारें मौतों के आंकड़े छिपा रही हैं। विशेषज्ञों को अब साफ-साफ अंदाजा हो चला है कि कोविड महामारी में किस बड़ी तादाद में प्रभावित हुए और विशेषज्ञों को बस अब अपने आंकड़ों के सत्यापन के लिए कुछ और ठोस प्रमाणों की जरूरत है, इसके बाद ही वे अपना आकलन सार्वजनिक करेंगे।
इस बीच, मौत के आंकड़ों को लेकर मैंने अपना एक अंतरिम आकलन किया है।
क्यों अहम हैं नये आंकड़े
आइए, शुरुआत नये आंकड़ों से करें जो किसी विस्फोट से कम नहीं है।
बीते हफ्ते, डेटा जर्नलिस्ट एस. रुक्मिणी ने सरकारी सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में दर्ज मौतों के आंकड़े स्क्रोल नाम की वेबसाइट पर प्रकाशित किये। इसमें मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश में हुई सारी मौतों के आंकड़े हैं जबकि तमिलनाडु के आंकड़े इस सूबे के कुछ हिस्सों से संबंधित हैं। अब हमारे पास इन राज्यों के हर जिले और अंचल में हुई मौतों के सरकारी पंजी में दर्ज माहवार आंकड़े मौजूद हैं। इन आंकड़ों के आधार पर हम इस बड़े सवाल का जवाब तलाश सकते हैं कि कोविड महामारी में कितने लोगों की मौत हुई है।
अभी तक हमारे जेहन में यही दहशतनाक तस्वीर दर्ज थी कि किस तरह श्मशान घाटों में लाशें कतारबद्ध जलायी जा रही हैं और कैसे गंगा के पानी में लाशें बेतरतीब तैर रही हैं। समाचारों के जरिए हम यह जान चुके थे कि कैसे कुछ शहरों में कोविड से हुई मौतों के बारे में आंकड़े तोड़-मरोड़ कर बताये जा रहे हैं, इन आंकड़ों को दबाया जा रहा है और किस तरह किसी-किसी गांव में बड़ी संख्या में लोगों की कोविड महामारी से मौत हो रही है। लेकिन इन चुनिंदा उदाहरणों से हम कोविड महामारी में हुई मौतों की तादाद के बारे में किसी ठोस आकलन तक नहीं पहुंच पा रहे थे। इतने भर उदाहरण किसी ठोस आकलन के लिए पर्याप्त नहीं थे। हम यह भी देख चुके हैं कि द इकोनॉमिस्ट, द न्यू यार्क टाइम्स और कुछ अकादमिक संस्थानों ने कोविड महामारी से भारत में हुई मौतों को लेकर आकलन प्रकाशित किये। लेकिन, इन आकलनों में मौतों की तादाद को कम करके आंका गया क्योंकि सबने अपनी गणना का आधार बीमारी की संक्रमण-दर और मृत्यु दर की बाबत सरकारी आंकड़े को बनाया।
डेटा जर्नलिस्ट रुक्मिणी ने जो खुलासा किया है, वह हमें आकलन की इन बाधाओं के पार ले जाता है।
पहली बात तो ये कि रुक्मिणी ने जो आंकड़े जुटाये हैं वह अपने आकार में बड़ा है, उसमें पूरे आंध्र प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के आंकड़े हैं, सो हम आकलन का सही तरीका अपना सकते हैं। महामारी की संक्रमण दर क्या रही, कितने प्रतिशत ठीक हुए और कितनों की मौत हुई सरीखे बेमानी के सरकारी आंकड़ों की जगह अब हम अपना ध्यान इस बात पर लगा सकते हैं कि किसी समय-विशेष में कितनी मौतें ऐसी रहीं जिन्हें हम ‘सामान्य से ज्यादा’ कह सकते हैं। यहां हमारे सामने सीधा सा सवाल ये रहता है कि किसी समय-विशेष में होनेवाली सामान्य मौतों के बरक्स कितनी मौतें ज्यादा हुईं? जरूरी नहीं कि जिन्हें हम सामान्य से ज्यादा मौतों की श्रेणी में गिन रहे हैं उन सबका कारण कोविड महामारी ही हो। हम जानते हैं कि अस्पताली खर्च के बोझ और ऑक्सीजन की कमी के कारण भी अतिरिक्त संख्या में मौतें हुई हैं और इनका जरूरी संबंध कोविड महामारी से नहीं भी हो सकता है। फिर भी, मौतों की तादाद में सामान्य से ज्यादा की जो बढ़ोतरी नजर आ रही है, कोविड महामारी को उसका प्रधान कारण माना जा सकता है।
सबसे अहम बात यह कि ये आंकड़े प्रामाणिक स्रोत यानी जन्म और मृत्यु को दर्ज करने की जो सरकारी पंजी (सीआरएस) है, उससे से लिये गये हैं। आंकड़ों का यह समुच्चय (डेटा सेट) सर्वतोभावेन पूर्ण हो, ऐसी बात नहीं। कई दफे ऐसा भी होता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु का तथ्य घटना के कई महीने या साल के बाद दर्ज होता है। और, यह बात भी सच है कि मृत्यु की बहुत सी घटनाएं सीआरएस में दर्ज ही नहीं हो पातीं। लेकिन, आकलन के लिहाज से एक अच्छी बात यह है कि सैंपल रजिस्ट्रेश सिस्टम (एसआरएस) के कारण हम इस स्थिति में हैं कि किसी सूबे में सीआरएस में दर्ज होने से रह गई मौतों के बारे में गिनती निकाल सकें।
भारत में सांख्यिकीय गणना की जो मजबूत प्रणाली मौजूद है, उसी का एक अहम (और सरकारी) हिस्सा एसआरएस प्रणाली भी है। हम इसके सहारे जान सकते हैं कि आंध्र प्रदेश में तो मृत्यु की शत-प्रतिशत तादाद सीआरएस में दर्ज होती है जबकि मध्यप्रदेश में कुल मृत्यु का महज 78.8 प्रतिशत हिस्सा सीआरएस में दर्ज होता है। हम आंकड़ों की इस घटती-बढ़ती को अपने आकलन में एडजस्ट कर सकते हैं।
असल आंकड़े
अब जरा ये देखें कि ये आंकड़े कितने दहशतनाक हैं।
तालिका संख्या 1 में मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश के आंकड़े दिये गये हैं। मौतों के ये आंकड़े सीआरएस में दर्ज हैं और इन आंकड़ों में आप देख सकते हैं कि मध्यप्रदेश या फिर आंध्र प्रदेश में सामान्य तौर पर कितनी मौतें हुईं और फिर इसकी तुलना आप इस साल मई महीने में हुई मौतों से कर सकते हैं।
आपको दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर दिख पड़ेगा। मध्यप्रदेश में अमूमन हर साल मई के महीने में 34,000 मौतें दर्ज होती थीं लेकिन इस साल मई के महीने में यह आंकड़ा 1,64,000 के पार चला गया। इसका मतलब हुआ कि एक राज्य में एक महीने में 1.3 लाख की तादाद में ज्यादा मौतें दर्ज हुईं।
याद रहे कि पूरे देश के लिए सरकारी आंकड़ा पिछले साल के मार्च महीने से अब तक का 3.8 लाख मौतों का है। आंध्र प्रदेश में मौतों का औसत 27,000 से बढ़कर 1,30,000 के पार चला गया है। दोनों ही राज्यों में मौतों की तादाद सामान्य समय में हुई मौतों से 4.8 गुना ज्यादा है।
मौतों की इस दर्ज संख्या में कुछ सुधार की जरूरत है ताकि दोनों ही राज्यों में मृत्यु की घटना को दर्ज करने में हुई देरी और मध्यप्रदेश में कुछ मामलों में मौतों के दर्ज ना होने की घटना को ध्यान में रखते हुए एक ठोस आंकड़े तक पहुंचा जा सके। इस बात को ध्यान में रखकर आकलन करें तो नजर आएगा कि दोनों ही राज्यों में मौतों की तादाद सामान्य समय में हुई मौतों से 5 गुना (मध्यप्रदेश में 5.02 और 5.15 ) ज्यादा है। हां, यह बात सिर्फ सर्वाधिक मौतों वाले महीने यानी मई के बारे में सच है। इस डेटा से मौतों की तादाद के चरम तक पहुंचने के चार महीनों की तस्वीर का भी पता चलता है। इस साल जनवरी से अप्रैल तक मध्यप्रदेश में मौतों की संख्या सामान्य समय में हुई मौतों से 1.4 गुना ज्यादा रही।
अब जरा इस सूचना के आधार पर ये गणित करें कि पूरे देश में मौतों की तादाद क्या रही होगी। तालिका 2 में इस बाबत आकलन दिया गया है। हमने मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश का औसत लिया है और यह माना है कि पूरे देश के लिए भी यही औसत रहा होगा। बेशक यह एक बड़ी धारणा है लेकिन इस धारणा को मानकर चलने में बड़ा जोखिम नहीं है। जहां तक कोविड के प्रसार और सरकारी आंकड़ों में बतायी गई मौतों की संख्या का सवाल है, ये दोनों राज्य ना तो सबसे बेहतर राज्य की श्रेणी में रखे जा सकते हैं और ना ही कोविड महामारी की सबसे बुरी चपेट में आये राज्यों में।
दरअसल, 1 अप्रैल की तारीख को आधार मानकर चलें तो नजर आयेगा कि इन दोनों ही राज्यों में मौतों के राष्ट्रीय औसत की तुलना में मरनेवालों की तादाद कम रही है। इस कारण, हम मानकर चल सकते हैं कि भारत में इस साल मई महीने में मौतों की संख्या किसी भी अन्य साल की मई में हुई मौतों की संख्या (6.08 लाख) से 5.08 गुना ज्यादा रही होगी। इस आधार पर गिनती करें तो इस साल मई महीने में पूरे भारत में हुई मौतों की संख्या 30.9 लाख की आती है जिसमें 24.8 लाख की तादाद ऐसी मौतों की है, जिन्हें सामान्य समय में हुई मौतों की तुलना में ज्यादा कहा जा सकता है।
हम यह भी मानकर चलें कि शेष भारत में मौतों की तादाद का ग्राफ इस साल की जनवरी से अप्रैल तक वैसा ही रहा जैसा कि मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश में यानी सामान्य समय में हुई मौतों की संख्या से 0.4 गुना ज्यादा। साथ ही, यहां हम यह भी मान लें कि मई महीने के बाद के चार महीने यानी जून से सितंबर मौतों की तादाद की घटती के रहेंगे और ये घटती वैसी ही रहेगी जैसी कि जनवरी से अप्रैल के बीच रही। ऐसा मानने में कोई हर्जा नहीं भले ही देश के किसी राज्य में कोविड महामारी से होनेवाली मौतों की तादाद अप्रैल में चरम पर पहुंची हो तो किसी राज्य में जून में। इस तरीके से गिनती करें तो नजर आएगा कि मई से पहले के चार महीनों और मई के बाद के चार महीनों में देश में मौतों की तादाद 10 लाख की रही।
अब इन सबको आपस में जोड़ दें तो आपको एक कच्चा सा आंकड़ा मिल जाएगा कि महामारी की दूसरी लहर के नौ महीनों में पूरे देश में कितने लोगों की मौत हुई। ये आंकड़ा 44.3 लाख लोगों की मौत का है। इस आंकड़े को अंतिम आंकड़ा मानकर मत चलें। अन्य राज्यों से आनेवाले आंकड़ों से हमें पता चल पाएगा कि राष्ट्रीय औसत इन दो राज्यों की तुलना में कम है या ज्यादा। यहां जो पूरे देश में कोविड महामारी की दूसरी लहर के नौ महीनों में हुई मौतों का एक कच्चा सा अनुमान दिया गया है, उसे गणना के बेहतर मॉडल्स अपनाकर और ज्यादा सटीक बनाया जा सकता है। लेकिन इस सिलसिले में एक बात पक्की है : हम हजारों की संख्या या चंद लाख की तादाद में हुई मौतों के आंकड़े के बारे में बात नहीं कर रहे बल्कि हमारे सामने अब बात करने को मौतों के जो आंकड़े हैं वे दसियों लाख में हैं।
अब हम लोग मौतों की उस बड़ी तादाद के बारे में बात करने को मजबूर हैं जितनी बड़ी तादाद देश में 1919-20 में आये स्पेनिश फ्लू के बाद के सौ सालों में बंगाल के अकाल समेत किसी महामारी या आपदा में सामने नहीं आयी।
दुख की एक बात यह है कि यह सारी सूचना दिल्ली स्थित गृह मंत्रालय के कंप्यूटर में बंद है। गृह मंत्रालय के कंप्यूटर ही सीआरएस और एसआरएस के आंकड़ों की साज-संभार करते हैं। असल सवाल यह है कि क्या कोविड महामारी से हुई मौतों के आंकड़ों को झुठलाने में लगी मोदी सरकार सीआरएस में दर्ज पूरे देश में हुई मौतों के सभी आंकड़ों को सार्वजनिक करके स्थिति स्पष्ट करती है या नहीं, क्योंकि अभी की हालत में सीआरएस में दर्ज जो भी आंकड़ा हासिल है उससे यह तो साफ हो गया है कि देश में स्वास्थ्य के मोर्चे में सदी का सबसे बड़ा घोटाला हो चुका है?
( द प्रिन्ट से साभार )
Nice Information. Yogendra Bhai..😊🙏🌹