पदयात्रा की परंपरा और भारत जोड़ो यात्रा

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— गोपाल राठी —

भारत में पदयात्रा का अपना महत्त्व है। यह जनजीवन को करीब से जानने समझने और उनसे जुड़ने का आजमाया हुआ नुस्खा है।

आदि शंकराचार्य, वैष्णव आचार्य वल्लभाचार्य सहित लगभग सभी धर्माचार्यों ने पूरे भारत का भ्रमण करते हुए अपने आध्यात्मिक सन्देश को जन जन तक पहुंचाया। बुद्ध, महावीर और गुरु नानकदेव ने भी पदयात्राओं के माध्यम से अपना सन्देश जन जन तक पहुंचाया। उस समय सड़क नहीं थी, जंगल ही जंगल था, जंगली पशुओं का भय था, नदी थी मगर पुल नहीं था। फिर भी धर्माचार्यों ने सुदूर केरल से लेकर केदारनाथ तक कठिन पदयात्रा करते हुए अपने दिव्य सन्देश का प्रकाश फैलाया।

धर्माचार्यों की आध्यात्मिक पदयात्राओं के बाद आजादी के पूर्व अंग्रेजी राज में महात्मा गांधी का दांडी मार्च ऐतिहासिक पदयात्रा थी। महात्मा गांधी और उनके स्वयंसेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था- अंग्रेजों द्वारा बनाये गए ‘नमक कानून को तोड़ना। गांधीजी ने अपने 78 स्वयंसेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून तोड़ा। जब पदयात्रियों का जत्था साबरमती आश्रम से रवाना हुआ था तब सरकार ने कोई नोटिस नहीं लिया लेकिन जैसे जैसे यह कारवाँ आगे बढ़ा तो अपार जनसमर्थन जुटता गया। इस यात्रा के समर्थन में पूरे देश में पदयात्राओं की बाढ़ आ गई और जगह जगह नमक कानून तोड़े गए। जिस पदयात्रा को अंग्रेजी सरकार ने साधारण गतिविधि समझा था उसने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। पूरी दुनिया के अखबार गांधी और दांडी मार्च से भरे हुए थे।

जब देश आजादी का जश्न मना रहा था तब गांधी साम्प्रदायिक आग से झुलसे कलकत्ता में गली गली मोहल्ला मोहल्ला घूम घूमकर उस आग को शांत कर रहे थे। उन्होंने साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित क्षेत्र की पदयात्रा करते हुए शांति स्थापित की।

भारत में भूमि वितरण की विषमता के कारण आजादी के बाद कई क्षेत्रों में भूमि संघर्ष शुरू हो गए। संघर्षों ने हिंसक रूप ग्रहण कर लिया। भूमि वितरण को संतुलित करने के लिए सीलिंग एक्ट लाया गया। आचार्य विनोबा भावे ने पूरे भारत की पदयात्रा करते हुए भूदान यज्ञ चलाया, पूरे देश में अच्छा समर्थन प्राप्त हुआ। फलस्वरूप विनोबा जी को अपनी पदयात्रा के दौरान हजारों एकड़ भूमि दान में प्राप्त हुई। पदयात्रा के माध्यम से विनोबा जी ने ग्रामीण भारत को जगाया। यह सफल और सार्थक पदयात्रा मानी गई।

पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर भी एक ऐतिहासिक पदयात्रा के प्रमुख किरदार रहे। कन्याकुमारी से दिल्ली के राजघाट तक हुई पदयात्रा को बाद में भारत यात्रा कहा गया। 4260 किलोमीटर की यह पदयात्रा 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी और 25 जून 1983 को राजघाट दिल्ली में आकर समाप्त हुई। भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं पर प्रकाश डालना और सामाजिक असमानताओं और प्रचलित जातिवाद की असमानताओं को दूर करना था।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 7 सितंबर 2022 को कन्याकुमारी से भारत जोड़ो पदयात्रा शुरू की है। उन्हें लगभग 150 अन्य सामाजिक राजनैतिक समूहों और नागरिक संगठनों का भी साथ मिला है। वे सब भी पदयात्रा में साथ साथ हैं। इन लोगों में कई ऐसे लोग भी हैं जो गैरकांग्रेसी हैं, जिनका कांग्रेस की धारा और विचारधारा से पूर्व में कोई वास्ता नहीं रहा। ये लोग देश में बढ़ती या फैलाई जा रही नफरत को खतरनाक मानते हैं इसलिए भारत जोड़ो में उन्होंने नफरत छोड़ो को भी जोड़ा है और साथ हो लिये।

नागरिकों से व्यापक संवाद करती हुई भारत जोड़ो पदयात्रा लगभग 3700 किलोमीटर की दूरी तय करके श्रीनगर कश्मीर में समाप्त होगी। पदयात्रा से कांग्रेस को क्या राजनैतिक लाभ मिलेगा यह तो आनेवाला समय बताएगा लेकिन पदयात्रा के बाद राहुल जनता से जुड़े एक गम्भीर राजनेता सिद्ध होंगे यह तय है।

आजादी के बाद चन्द्रशेखर के बाद राहुल दूसरे राजनेता हैं जो पदयात्रा के माध्यम से इतनी लंबी दूरी तय कर रहे हैं।

संघ परिवार और भाजपा की कभी इस तरह की यात्राओं में रुचि नहीं रही। उनके किसी नेता में इतना साहस कभी नहीं रहा। दूरी तय करके पदयात्रा करना और ट्रक को अत्याधुनिक सुविधाओं लैस कर एसी रथ बनाना, फिर उसमें बैठकर रथयात्रा करने में जमीन आसमान का अंतर है। राहुल की यात्रा शुरू होते ही संघी ब्रिग्रेड ने उन पर निजी हमले करने शुरू कर दिए हैं। क्योंकि राहुल पदयात्रा का जो अनुष्ठान कर रहे हैं वह मोदी के बस की बात नहीं है। जैसे जैसे राहुल की यात्रा आगे बढ़ेगी वैसे वैसे इनके हमले तेज होते जाएंगे। गोदी मीडिया और आईटी सेल उनकी पदयात्रा को फ्लॉप बताएगा, उनका मजाक उड़ाएगा। इस पदयात्रा से हम दो (हमारे दो) बेचैन हैं और उनके समर्थक किंकर्तव्यविमूढ़। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि बढ़ते हुए कारवां को कैसे रोकें?

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