8 सितंबर। देश की जेलों में 77 फीसदी विचाराधीन कैदी हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। विचाराधीन या अंडर ट्रायल कैदी वो होते हैं, जिनके खिलाफ अभी मामले कोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिय में हैं, आरोप साबित नहीं हुए हैं। साल 2021 के आँकड़ों की बात करें तो देश भर की जेलों में बंद साढ़े पाँच लाख (5,54,034) कैदियों में से 4,27,165 यानी 77 फीसदी कैदी ऐसे हैं, जो अंडरट्रायल हैं।
देश भर की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों के साल 2020 के आँकड़ों पर नजर डालें तो यह संख्या 3,71,848 के करीब की थी। यानी कि साल 2020 से 21 के बीच आँकड़ों में 14.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 3,71,848 विचाराधीन कैदियों में लगभग 20 फीसदी मुस्लिम हैं, जबकि लगभग 73 फीसदी एससी, आदिवासी या ओबीसी हैं। इनमें से ज्यादातर गरीब या सामान्य परिवारों से हैं।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, जिला जेलों में विचाराधीन कैदियों की सबसे ज्यादा संख्या है, जो कि करीब 51 फीसदी के करीब है। जिला जेलों के बाद सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदी सेंट्रल जेलों व सब-जेलों में है। सेंट्रल जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या 36.2 फीसदी है, जबकि सब जेल में में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या 10 फीसदी है। यानी आँकड़े बताते हैं, कि देश में विचाराधीन कैदियों की संख्या बढ़ रही है।
देश में लगातार विचाराधीन कैदियों की संख्या में बढ़ोत्तरी के पीछे वकील लंबित पड़े मामलों को मानते हैं। अधिवक्ताओं के अनुसार, अगर देश की शीर्ष अदालत के आदेश का पालन किया जाए, तो जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या कम की जा सकती है। साल 2021 के आखिर में 1 करोड़ 44 लाख से ज्यादा मामले देश की अलग-अलग अदालतों में लंबित थे। आँकड़ों के अनुसार भारतीय अदालतों में कुल लंबित मामलों का अनुपात 91.2 फीसद था।
एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा है। यूपी की अलग-अलग जेलों में बंद 90,606 कैदी ऐसे हैं जिनके मामले विचाराधीन हैं। साल 2020 में यही आँकड़े 80 हजार के करीब थे। यानी कि यूपी में विचाराधीन कैदियों में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। यूपी के बाद इस लिस्ट में बिहार, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा का नाम शामिल है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2020 के आँकड़ों के अनुसार देश की सभी जेलों में लगभग 76 फीसदी कैदी विचाराधीन हैं, जिनमें से लगभग 68 प्रतिशत या तो निरक्षर हैं या स्कूल छोड़ चुके हैं। दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की जेलों में विचाराधीन कैदियों का उच्चतम अनुपात 91 फीसद पाया गया। इसके बाद बिहार और पंजाब में 85 फीसद और ओड़िशा में 83 फीसद, जबकि मुसलमान भारत की आबादी का 14 फीसदी हिस्सा हैं और वे कुल विचाराधीन कैदियों के लगभग 20 फीसदी हैं।