अथातो ज़िन्न जिज्ञासा

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ड्राइंग : प्रयाग शुक्ल

— राजेश प्रसाद —

– गुरुदेव, आदमी मरकर भूत बनता है और औरतें मरकर चुड़ैल बनती हैं। ये ज़िन्न कहां से…?

– तुम्हारी जिज्ञासा अत्यंत समीचीन है, वत्स। ज़िन्न एक अलग वायवीय तत्व है।

– वह किसका रूपांतरण है, गुरुदेव?

– अधीर मत होवो, वत्स। कथा-प्रवचन के मध्य बाधा उत्पन्न करने से सत्य का प्रकाशन कठिन हो जाता है।

– क्षमा, गुरुदेव! अब जिज्ञासाओं पर संयम रखूंगा। वैसे भी वर्तमान पौराणिक युग में बौद्धिक जिज्ञासा करने वाला पाप का भागी होता है।

– साधु वत्स, साधु! अथातो ज़िन्न जिज्ञासा। जब किसी राजकीय संस्थान जैसे कि दुर्लभ न्यायालय, सुलभ शौचालय, जाग्रत विश्वविद्यालय, करुण अनाथालय, ज्ञान-प्रकाशक अंध-विद्यालय, सांत्वनादायी मदिरालय, जीवनदायी चिकित्सालय, हरित वन, निर्मल जलयुक्त नदी आदि की राजकीय हत्या होती है अथवा निस्तेज कर दिया जाता है, तो वह भूत-चुड़ैलों की तरह तुच्छ वायवीय तत्व नहीं, अपितु विराट वायवीय तत्व ‘ज़िन्न’ बनता है!

– धन्य, हैं गुरुदे…ओह, बाधा के लिए क्षमा!

– प्रशंसा के शब्द बाधक नहीं होते हैं, वत्स! अस्तु, इन संस्थानों की रूहें ज़िन्न बनकर चिराग़ में समा जाती हैं। चिराग़ का धारक अलादीन की तरह परमपुंसत्व को प्राप्त होता है। ज़िन्न एकमात्र उसी चिराग़धारी का हुक्म-वादन करता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय आदि के निस्तेज होने से प्रजा की पीड़ा बढ़ जाती है। ‘अरब की रातें’ में अलादीन के चिराग़ और उसके ज़िन्न की कथा का तुमने अध्ययन किया है न, वत्स?

– जी, गुरुदेव! अद्भुत है! उन्नीसवां पुराण है।

– तुमने हमारे मुख की वार्ता का हरण कर लिया, वत्स! अस्तु, यूं समझो कि मृत राजकीय संस्थाओं का रूपांतरण ज़िन्न में होता है। ओके, वत्स?

– एक डाउट है, गुरुदेव, ये कायदे-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना भी किसी ज़िन्न फैमिली से…?

– साधु, वत्स! साधु! देश का छोटा हिस्सा मरता तो ज़िन्न बनता। पर पूरब और पश्चिम मिलाकर बड़ा हिस्सा मरा, इसलिए वह ज़िन्न नहीं, जिन्ना बना …ठहरो, वत्स! कहां पलायित हो रहे हो?

– शीघ्रता से सोशल मीडिया पर यह अनुसंधान प्रचारित-प्रसारित करवा देता हूं।

– ये भी जोड़ देना कि ज़िन्न-गणना से ज्ञात हुआ है कि गत सात वर्षों में देश में जिन्नों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। यदि ‘अरब की रातें’ पढ़ने के बाद भी प्रजा नहीं जागी तो भूतों-चुड़ैलों की संख्या अगणनीय हो जाएगी!

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