— डॉ. सुनीलम —
नौ अगस्त, 2021 अगस्त क्रांति दिवस की 79वीं वर्षगांठ है। समाजवादी चिंतक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. लोहिया चाहते थे कि 9 अगस्त देश में इतने जोरदार तरीके से मनाया जाए कि 15 अगस्त का कार्यक्रम उसके सामने फीका पड़ जाए लेकिन शासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने 9 अगस्त की महत्ता कभी देशवासियों के सामने नहीं रखी। जनक्रांति की जगह उन्होंने राजसत्ता के हस्तांतरण को महत्त्व दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन
पूरे स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा जन आंदोलन ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन था। इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी थे जिन्होंने मुंबई के तत्कालीन मेयर, सोशलिस्ट नेता यूसुफ मेहर अली के सुझाव पर ‘क्विट इंडिया’ (अंग्रेजो, भारत छोड़ो) का नारा देश को दिया था। गांधीजी ने कांग्रेस कार्यसमिति को संबोधित करते हुए कहा था कि आज से हर व्यक्ति खुद को आजाद समझे।
उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करने पर जोर दिया था। गांधीजी ने अपने भाषण में जिस आजाद भारत की कल्पना पेश की थी, उसमें हर किसी के पास समान आजादी और अधिकार होने की बात कही थी। जिसे बाद में भारत के संविधान में उल्लिखित मूलभूत अधिकारों में जोड़ा गया। परन्तु आज के सत्ताधीशों ने उसपर हमला बोल रखा है।
1942 का कांग्रेस अधिवेशन
अगस्त क्रांति के आंदोलन की खासियत यह थी कि इस आंदोलन के गांधीजी सहित लगभग सभी जाने-माने कांग्रेसी नेता जेल में थे। गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और उनके सचिव महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यु हो गयी थी।
सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल को लगा था कि अब आजादी का आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। लेकिन एकदम उलटा हुआ। देश भर में आजादी की चाहत रखनेवाली जनता विशेषकर युवाओं ने खुद इसका नेतृत्व किया था और इसे चलाया था।
इस आंदोलन की यह भी खासियत रही कि आंदोलनकारियों द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, प्रशासनिक कार्यालयों और पुलिस थानों पर झंडे फहराने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किये गये थे। हजारों आंदोलनकारी पुलिस की गोलियों से मारे गये लेकिन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ उन्हें जान का नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से हिंसा नहीं की थी। यह अहिंसा को लेकर गांधीजी के आग्रह का प्रभाव था। यदि भूमिगत क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की हत्या का इरादा बनाया होता तो यह आंदोलन जन आंदोलन नहीं हो सकता था।
इस आंदोलन को गांधीजी ने चौरी चौरा की तरह वापस नहीं लिया। यह आंदोलन आजादी मिलने तक जारी रहा। सभी कांग्रेसी नेताओं को 1946 में छोड़ा जाने लगा लेकिन अंग्रेज जेपी और डॉ. लोहिया को छोड़ने को तैयार नहीं थे। गांधीजी के सार्वजनिक बयान के बाद उन्हें छोड़ा गया। इस आंदोलन की यह भी खासियत थी कि इस आंदोलन में हिंदुओं और मुसलमानों ने एकसाथ आकर बड़े पैमाने आंदोलन में हिस्सा लिया था।
आंदोलन का एक केंद्र बम्बई था। बम्बई जैसे शहर का मेयर यूसुफ मेहर अली को चुना जाना, सरदार पटेल द्वारा यूसुफ मेहर अली को कांग्रेस का टिकट दिलाया जाना बतलाता है कि तब बम्बई में हिन्दू-मुस्लिम एकजुटता का माहौल था। सतारा, बलिया, मिदनापुर आदि जगहों पर तो समानांतर सरकार चलायी गयी।
गांधीजी ने विश्वयुद्ध के दौरान ही आंदोलन का समय चुना था। वे दोनों ही पक्षों की हार या जीत के पेच में भारत की आजादी को नहीं फंसाना चाहते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते हुए भी वे बार-बार यह कहते थे कि मैं अंग्रेजों से नफरत नहीं करता तथा किसी को भी नहीं करनी चाहिए और ना ही जापान और जर्मनी को प्यार से देखना चाहिए, क्योंकि वे गुलामी की अदला बदली नहीं चाहते थे यानी देश अंग्रेजों से आजाद हो जाए और जापान या जर्मनी का गुलाम बन जाए। अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देते समय गांधीजी का जो सपना था वही सपना अगस्त क्रांति दिवस के 79 वर्ष बाद डॉ.जी.जी. परीख जी आज भी देख रहे हैं।
जी.जी. की गवाही
1942 के आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल रहे 10 माह की अंग्रेजों की जेल काटने वाले डॉ. परीख, जो आजादी के बाद से आज तक हर वर्ष मुंबई के चौपाटी से तब के गवालिया टैंक तथा अब के अगस्त क्रांति मैदान तक पैदल मार्च करते हैं, कहते हैं कि आज का समय तब के समय से भी ज्यादा कठिन है क्योंकि आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे धर्म के आधार पर अंग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर सकते हैं। वे हिटलर से प्रेरणा लेकर देश में राज चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
डॉ.जी.जी. परीख चाहते हैं कि देश में फिर अगस्त क्रांति जैसा माहौल बने। 1942 में देश का हर दूसरा-तीसरा नौजवान देश को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार था, उसी तैयारी की आज जरूरत है।
गांधीजी ने 73 वर्ष की उम्र में अपने 2 घंटे के भाषण में अधिकतर समय हिंदू-मुस्लिम एकजुटता की आवश्यकता समझाने में लगाया था। वही डॉ. जी.जी. परीख की आज सबसे बड़ी चिंता है।
डॉ जी.जी. परीख बताते हैं कि मुम्बई के लोकप्रिय समाजवादी मेयर यूसुफ मेहर अली को मालूम हो गया था कि गिरफ्तारियां की जाएंगी। परंतु गांधीजी को लगता था कि अंग्रेज इतनी जल्दबाजी नहीं करेंगे। यूसुफ मेहर अली ने सभी सोशलिस्टों को भूमिगत होने की सलाह दे दी थी, जिसके चलते डॉ राममनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन,एस.एम. जोशी, शिरु भाऊ लिमये तथा सुचेता कृपालानी सहित कई कांग्रेसी नेता भूमिगत हो गये थे।
9 की सुबह सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गये। यूसुफ मेहर अली, अशोक मेहता आदि समाजवादी नेता भी गिरफ्तार कर लिये गये। जे.पी. पहले से ही जेल में थे।
जी.जी. 9 अगस्त को याद करते हुए बताते हैं कि उस दिन कस्तूरबा जी को तिरंगा फहराना था लेकिन उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था। अरुणा आसफ अली आयीं और राष्ट्रीय ध्वज फहराकर चली गयीं। आंसू गैस छोड़ी गयी। गोलियां भी चलीं।
सर्वविदित है कि 23 जून 1757 के दिन जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पलासी के युध्द में हरा दिया था तब से देश को गुलाम बनाने की शुरुआत की थी। तब से लेकर 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने तक अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन सबसे बड़ा जन आंदोलन था जिसमें 50 हजार राष्ट्रभक्त शहीद हुए और 1 लाख से ज्यादा को सजाएं हुईं।
डॉ जी.जी. परीख को 12 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। वर्ली (मुम्बई) में अस्थायी जेल बनायी गयी थी, वहां तीसरी मंजिल पर एक कमरे में उन्हें रखा गया था जिसमें अन्य 12 लोग पहले से थे। बिछाने के लिए जूट की दरी दी गयी थी।
डॉ जी.जी. बताते हैं कि वर्ली जेल में रोज सुबह बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लाया जाता था तथा अधिकतर को शाम तक छोड़ दिया जाता था। इससे उन्हें लगता था कि छात्र होने के कारण उन्हें भी छोड़ दिया जाएगा। एक दिन ऑर्थर रोड जेल से कुछ आंदोलनकारी लाये गये। वे कुछ मांगें कर रहे थे, रास्ते पर बैठ गए, शाम को जब वे अपने कमरे में गये तब हमें लगा कि मांगें मान ली गयी हैं, हमने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया। ज्यों ही वह नारा लगाया गया, जेल के कर्मचारियों ने आकर सभी को पीटना शुरू कर दिया।
जी.जी. को भी चोटें आयीं, खून निकला तब उन्हें यह समझ आ गया कि उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। वे कहते हैं कि तब से वे पक्के जेल वाले बन गये। उन्हें एक महीने के लिए ठाणे जेल में भी रखा गया। वर्ली जेल में रोहित दवे स्टडी सर्किल लिया करते थे। वे मार्क्सवाद से लेकर भारतीय संस्कृति तक पढ़ाया करते थे। ठाणे जेल में उन्हें दत्ता तमाणे के बारे में याद है।
दूसरे वर्ली जेल के सी.बी. वारद थे, जो उनका ख्याल रखते थे। एक और पारसी साथी थे जो बहुत रईस घराने के थे। उनके पिताजी जेल में बढ़िया खाना कभी-कभी लाया करते थे जो सभी मिलकर खाया करते थे। जीजी को मैंने पूछा कि तब क्या बाहर का खाना लाने की अनुमति थी?
तब उन्होंने कहा कि हम पहले जब किताब, वॉलीबॉल या कैरम की मांग करते थे तब पहले मना किया जाता था, कई बार पीटा तक गया, बाद में जेल अधिकारी मान लेते थे। उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि काफी भारतीय पुलिस और सीआईडी के अधिकारी व कर्मचारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ हमदर्दी रखते थे, जो आदेश आता था उसका पालन तो करते थे लेकिन व्यवहार से पता चलता था कि उनकी हमदर्दी आंदोलनकारियों के साथ है।
1942 के आंदोलन में 10 महीने के जेल प्रवास के बारे में खास बातें पूछने पर वे बताते हैं कि जेल में तीन नये संगठन बनाने का निर्णय लिया गया। एआईटीयूसी छोड़कर राष्ट्रीय मज़दूर सभा बनाने का निर्णय लिया गया।
सांस्कृतिक समूह इप्टा की जगह इंडियन नेशनल थियेटर तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की जगह स्टूडेंट्स कांग्रेस बनाने का निर्णय लिया गया थ।
जी.जी. बताते हैं कि इंडियन नेशनल थियेटर कमलादेवी चट्टोपाध्याय तथा रोहित दवे के जेल से निकलने के बाद उनके नेतृत्व में गठित किया गया। वे बताते हैं कि लंबे समय तक इंडियन नेशनल थियेटर चला, बाद में बिड़ला ने उसपर कब्जा कर लिया। उन्हें यह भी याद है कि बंगाल के अकाल को लेकर इस ग्रुप का ‘भूख’ नामक एक नाटक बहुत लोकप्रिय हुआ था।
जी.जी. बताते हैं कि स्टूडेंट्स कांग्रेस के गठन में उनके साथ रामसुमेर शुक्ला,प्रभाकर कुंटे तथा रवि वर्मा की बड़ी भूमिका थी। डॉ जी.जी. परीख 1947 में स्टूडेंट्स कांग्रेस की मुंबई शाखा के अध्यक्ष थे।
मौन जुलूस
जेल से आने के बाद 42 ग्रुप तथा समाजवादियों ने तय किया कि वे गिरगांव चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान तक का मौन जुलूस नियमित निकाला करेंगे। इस कार्यक्रम में मधु दण्डवते, रोहित दवे, नरेंद्र पंड्या, चंद्रकांत दलाल, दामू झवेरी, ललित मोहन जमुनादास किनारीवाला, निरुपमा मेहता, हिम्मत झवेरी आदि शामिल हुआ करते थे।
एक बार 9 अगस्त को जब उषा मेहता, मृणाल गोरे, मंगला परीख के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाला जा रहा था तब नाना चौक पर पुलिस ने उसे रोक दिया। हल्का लाठीचार्ज भी हुआ। विरोधस्वरूप सत्याग्रह हुआ। तब से आज तक कभी मौन जुलूस को महाराष्ट्र पुलिस और प्रशासन ने नहीं रोका।
यह मौन जुलूस डॉ जी.जी. परीख के नेतृत्व में 9 अगस्त 21 को बाल गंगाधर तिलक और विट्ठल भाई पटेल की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान के स्तंभ के लिए निकलेगा।
आज की चुनौती
इस बार का 9 अगस्त विगत 79 वर्षों में सबसे महत्त्व का है। क्योंकि फिर एक बार देश के किसान और मजदूर मैदान में हैं। 550 किसान संगठनों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा की अगुआई में कॉरपोरेट भगाओ, भारत बचाओ आंदोलन किया जा रहा है। देश के केंद्रीय श्रमिक संगठन 4 लेबर कोड रद्द करने, श्रम कानूनों की बहाली, निजीकरण पर रोक जैसे मुद्दों को लेकर भारत बचाओ आंदोलन कर रहे हैं।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने 9 अगस्त को 300 स्थानों पर स्वतंत्रता आंदोलन के 75 वर्ष पूरे होने अवसर पर एक वर्ष तक लगातार कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है।
अगस्त क्रांति का लक्ष्य किसानों और मजदूरों की मुक्ति हासिल करना था। अगस्त क्रांति के शहीदों का वह सपना साकार नहीं हो सका है। आइए हम अगस्त क्रांति के शहीदों को याद करते हुए उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें।