लौह पुरुष यूसुफ मेहर अली – दूसरी किस्त

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यूसुफ मेहर अली (23 सितंबर 1903 - 2 जुलाई 1950)
अच्युत पटवर्धन ( 5 फरवरी 1905 – 5 अगस्त 1992 )


— अच्युत पटवर्धन —

साम्यवादियों को 1938 में अपनी नीति बदलनी पड़ी और तब वे राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ जाने की स्थिति से बचने के लिए भारतीय राष्ट्रीय-ब्रिटेन, फ्रांस, अमरीका के साथ युद्ध में कूद पड़ने पर उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध को जन-युद्ध घोषित कर दिया, और अलगाववादी मार्ग पर लौट कर एक नये भारत के निर्माण में संलग्न भारतीय शक्तियों के विरुद्ध कार्य करना आरंभ कर दिया। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी युद्ध- प्रयासों में भाग लेने का घोर विरोधी थी तथा उसने इस तर्क का खंडन किया कि पाश्चात्य शक्तियाँ नैतिक दृष्टि से हिटलर की अपेक्षा श्रेष्ठतर हैं। यह दृष्टिकोण उस समय सही सिद्ध हुआ जब मित्र राष्ट्रों ने हजारों निर्दोष जापानी स्त्रियों, पुरुषों तथा बच्चों पर घातक अणुबम गिराकर उन्हें नष्ट कर दिया। असंलग्नता की हमारी नीति को सही ठहराने वाले तथ्यों को इस घटनाक्रम ने एक ठोस आधार प्रदान किया।

तरुण भारत की चेतना को जगानेवाले युवा सत्याग्रह-जन्य क्रांति की उपज थे। उनमें यूसुफ मेहर अली का एक विशिष्ट स्थान था।

उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे भारी बहुमत से बंबई नगर निगम के महापौर चुने गये। मेहर अली में महत्त्वाकांक्षा लेशमात्र न थी। उन्हें जीवन में जो भी पुरस्कार मिला वह समूचे भारत की जनता के सभी वर्गों के स्नेह और आदर का फल था। समाजवादी दल में मेहर अली का योगदान विश्लेषणात्मक रीति द्वारा अभिव्यक्ति की सीमाओं से कहीं अधिक परे और महान था।

साम्यवादी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को भीतर से नष्ट करने के प्रयोजन से संयुक्त मोर्चे का नाम लेकर उसमें सम्मिलित हुए थे। इस खतरे को भाँपने तथा उससे दल को भारी क्षति पहुँचने से पहले ही उक्त भंडाफोड़ करनेवाले मेहर अली ही थे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की एकता को जब-जब आंतरिक कलह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, तब-तब मेहर अली और आचार्य नरेन्द्रदेव कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के इन दो संरक्षकों ने आंतरिक संकट के उन क्षणों में उसकी नौका पार लगायी।

उनके देहावसान के पश्चात रिक्तता उत्पन्न हो गयी जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकी तथा व्यक्तिगत अहंमन्यता दे दल को खंडित कर डाला।

मेहर अली ने एक ऐसा कार्यक्रम प्रस्तुत करने का प्रयास किया था जिसके द्वारा कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी एक ऐसा लघु सक्रिय कार्यकर्ता-आधारित संगठन बन सकती थी जो नयी समाज व्यवस्था के निर्माण के लिए प्रथम कोटि का नेतृत्व प्रदान करती। उन्होंने अध्ययन मंडलों की एक श्रृंखला बनायी और सामाजिक अध्ययन का एक पाठ्यक्रम तैयार किया। प्रत्येक जनाधारित कार्यक्रम के लिए ऐसे अंतरंग कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। दुर्भाग्यवश यह संकेत परवर्ती काल में दृष्टि से ओझल हो गया तथा कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को श्रम संघ क्षेत्र में होनेवाले गुटीय संघर्ष में गंभीर पराभव का मुँह देखना पड़ा।

भारत छोड़ो आंदोलन में समाजवादियों की भूमिका का श्रेय भी मुख्यतया यूसुफ मेहर अली को ही जाता है। उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत से पहले ही मनोरथों के निर्णायक संघर्ष की अपरिहार्यता की पूर्व कल्पना कर ली थी। व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन ने प्रतिरोध की लौ को प्रज्वलित रखा था, तथापि उग्र संघर्ष से बचा नहीं जा सकता था।

मेहर अली को अग्रिम पंक्ति के नेताओं की गिरफ्तारी के परिणामस्वरूप उत्पन्न होनेवाले नेतृत्व के शून्य की पूर्वकल्पना हो गयी थी। उन्होंने आंदोलन का अभिक्रम प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिरोध के सुस्पष्ट कार्यक्रम के अनुसार कार्य करनेवाले सक्रिय दलों को हस्तांतरित करने का प्रयास किया। मेहर अली ने शिरुभाऊ लिमये तथा छोटू भाई पुराणी व कतिपय अन्य कार्यकर्ताओं की सहायता से अनेक राज्यों में जन-स्तर पर विद्रोह फैलाने तथा ब्रिटिश युद्ध प्रयासों से संचार माध्यमों में व्यवधान डालने की दृष्टि से एक सघन कार्यक्रम की व्यूह-रचना के विषय में छोटे-छोटे दलों को प्रशिक्षित करने के लिए गुप्त समूह गठित किये। 1942 में नेताओं की गिरफ्तारी के बाद इन सक्रिय दस्तों ने ही अपने कार्य़ों द्वारा आंदोलन को जीवित बनाये रखा।

परन्तु उनकी इन सब गतिविधियों से चकित होकर हमें इस अत्यन्त प्रेमिल व्यक्ति के दूसरे पक्ष की उपेक्षा नहीं कर देनी चाहिए। वे एक महान मानवतावादी थे। संकीर्ण धार्मिक निष्ठाओं का उनके जीवन में कोई स्थान न था।

वे भारत की अतीत-कालीन संस्कृति के प्रति गहन प्रेम पर पले थे। उन्होंने हैवेल, कुमारस्वामी और बाशम से भारत-विद्या के पाठ पढ़े थे। मानवीय अस्तित्व के अर्थ की खोज के लिए किया गया मानव का प्रत्येक प्रयास मनुष्य को समाज में गरिमा प्रदान करता है। वे वनों तथा प्रकृति के महान प्रेमी थे तथा उन्होंने दूर-दूर की यात्राएँ की थीं।

उन्होंने गाँवों में भारत की महत्ता तथा औद्योगिक कस्बों और नगरों की अनियोजित दरिद्रता में उसकी हेयता का दर्शन किया था। हिमालय की पर्वत श्रृंखला के सम्मुख पहुँचकर मेहर अली सम्मोहित हो गये थे तथा उन्होंने उन गोपनीय रहस्यों को जान लिया था जिन्हें विराट अंबर उन चिर युवा हिमाच्छादित शैल-श्रृंगों के कानों में फुसफुसाता रहता है, जिस पर मनुष्य के चरण कभी नहीं पड़े। मेहर अली पर्यावरण रक्षा आंदोलन के, जिसे अब समुचित महत्त्व दिया जा रहा है, प्रबल पक्षधर थे।

मेहर अली लौह पुरुष थे। कोई भी पद अथवा स्तर उन्हें जन साधारण से विलग नहीं कर सकता था।

मैं उनकी स्मृति को, दूसरों की व्यक्तिगत समस्याओं में हाथ बंटानेवाले तथा पृथ्वी पर मनुष्य मात्र के हित के प्रति संपूर्णतया समर्पित एक अत्यंत प्रिय साथी के रूप में, अपनी प्रेमपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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