19 अगस्त। समाजसेवी व स्वतंत्रता सेनानी राममोहन राय के नेतृत्व-निर्देशक में12-15 अगस्त 2021 तक दिल्ली राजघाट से शहीद समाधि, हुसैनीवाला तक पहुंची आग़ाज़ ए दोस्ती यात्रा, जिसमें देशभर के 24 संगठनों के 42 प्रतिनिधि रहे, जिन्होंने विश्व शांति व दक्षिण एशिया विशेषकर भारत और पाकिस्तान की जनता के बीच लोगों की ओर से अमन व दोस्ती के प्रयासों के लिए एक नया कीर्तिमान रचा।
सन 1980 के दशक में भारत और पाकिस्तान के शांतिकर्मियों ने भारत-पाकिस्तान सीमा वाघा अटारी बॉर्डर पर पहुंचकर शांति के लिए मोमबत्तियां जलाकर पहल की थी, जो इस बात का सूचक थी कि दोनों देशों की न केवल साझी विरासत है समान संस्कृति भी है। आजादी के लिए संघर्ष भी साझा रहा और उनके नायक भी। विगत 40 वर्षों की यात्रा ने इस बात को और अधिक पुख्ता किया। सरहद पर ही शहीदों का स्मारक बनाया गया जिस पर लोग जाते और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते। सरहद पर ही दोनों देशों की परेड का भी आकर्षण रहता जो आनंद का कम बल्कि आपसी तनाव का ज्यादा सबब रहता।
पर इस बार की यात्रा उससे अलग थी। यह यात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि से चलकर दिल्ली के शहीद पार्क होते हुए मुरथल, सोनीपत, गन्नौर,समालखा, पानीपत, घरौंडा, करनाल, तरौरी, नीलोखेड़ी, कुरुक्षेत्र, शाहबाद, अम्बाला, रोपड़, खटकड़ कलां, जालंधर, मोगा होते हुए फिरोजपुर में भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की संयुक्त समाधि, उनके साथी बटुकेश्वर दत्त तथा भगतसिंह की माता की समाधि पर पहुंचे।
पूरी यात्रा रोमांच व ऊर्जा से भरी थी। यह कोई साधारण सफर न होकर एक मायने में ऐतिहासिक था जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक पाठशाला के पाठ बस में ही चल रहे थे तथा उसके प्रैक्टिकल स्मृति स्थानों तथा लोगों से मुलाकातों के दौरान हो रहे थे। इस पाठशाला के शिक्षक थे शहीद भगतसिंह के भांजे प्रो. जगमोहन सिंह, इतिहासवेत्ता सुरेंद्र पाल सिंह, रवि नितेश, सदीक अहमद मेव, संजय राय, दीपक कथूरिया, छोटा बालक भुवनेश आदि मजदूर-किसान, विद्या भारती स्कूल, पानीपत, सेंट कार्मेल स्कूल,रोपड़ के छात्र, ज्ञान विज्ञान आंदोलन के नेता, मोगा के डॉ थापर दम्पति व अन्य। इसकी प्रयोगशाला रही महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ का पूरा प्रांगण, गांधी दर्शन (दिल्ली), भगतसिंह का गांव खटकड़कलां, ग़दर पार्टी के नेताओं की याद में जलंधर में बना देशभक्त यादगार हॉल और अंत में समाधिस्थल हुसैनीवाला।
इसके भागीदार विद्यार्थी भी जिज्ञासु व जागरूक रहे। यात्रा का लोगों ने जिस अपनेपन से स्वागत-सत्कार किया वह तो भुलाया ही नहीं जा सकता। यात्रा के प्रति उनका स्वागत व अपेक्षाएं ही उनकी अध्यात्मिक शक्ति थी। एक के बाद एक होने वाली लगभग 27 छोटी-बड़ी सभाओं में बेशक यात्रीगण शारिरिक व मानसिक रूप से थकावट में थे पर उन्हें लोगों से मिलने की इच्छा अजीब तरह का साहस दे रही थी।
यह यात्रा एक दूसरी तरह से भी ऐतिहासिक रही। जब यात्रा-दल में शामिल लोग स्थानीय लोगों के साथ मिलकर समाधिस्थल पर देशभक्ति, अमन और दोस्ती के नारे लगा रहे थे तभी सीमापार पाकिस्तानी मित्र कसूर में बाबा बुल्ले शाह की दरगाह पर और बांग्लादेशी दोस्त नोआखाली स्थित गांधी आश्रम में अपने-अपने ढंग से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे। भारतीय दल के लोग भी अपने-अपने हाथों में दक्षिण एशियाई नेताओं के चित्रों के साथ ही अमरीका के डॉ ए.ई. डब्ल्यू बॉयस, मार्टिन लूथर किंग जूनियर के चित्र लिये थे।
समाधि स्थल पर प्रो. जगमोहन सिंह ने महात्मा गांधी तथा भगतसिंह एक दूसरे के पूरक, आजादी की भावना पर डॉ पवन थापर, मालती थापर व सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव अशोक अरोड़ा ने भी विचार रखे। इस अवसर पर सैटरडे फ्री स्कूल, अमरीका के अग्रणी डॉ एंथोनी मरटेरिओ, प्रसिद्ध गांधीवादी सुब्बाराव, पद्मश्री धर्मपाल सैनी, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मोहनी गिरि, महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष शंकर कुमार सान्याल के प्राप्त शुभकामना संदेश पढ़कर सुनाये गये।
– सुज्ञान मोदी